Shaitani mann [part 32]

कपिल बहुत थका हुआ था,कल रात्रि से ठीक से सोया भी नहीं था। घर आकर बोला -साहू ! फटाफट अदरक वाली गर्मागर्म एक कप चाय बना दे। तब तक मैं नहा कर आता हूं , काफी थका हुआ हूं, थोड़ी देर सोऊंगा। 

साहब! भोजन नहीं करेंगे , अभी तो नहीं, जब सो कर उठूँगा, तब खा लूंगा कहते हुए ,वह स्नानागार में घुस गया। कुछ देर पश्चात ,नहाकर बाहर निकला ,तब तक साहू चाय बना चुका था। साहू उससे बार-बार कुछ कहना चाहता था किंतु कपिल की व्यस्तता और थकान का सोचकर चुप हो जाता था। सोचा- जब साहब सोकर उठ जाएँ गें , तब बात करूंगा किंतु कपिल ने, यह बात महसूस की, साहू उससे कुछ कहना चाहता है, तब उसने साहू से पूछा -क्या कुछ कहना चाहते हो ?


हां साहब ! मैडम का फोन आया था, आपके विषय में पूछ रही थीं। 

अच्छा ! क्या स्वरा ने कुछ कहा ? उसके मन में एक आशा जगी। 

आपके विषय में ही पूछ रहीं थीं ,साहब !समय पर भोजन करते हैं या नहीं ,उनका ख्याल रखा करो !उसकी बातें सुनकर कपिल मुस्कुराया ,वह सोच रहा था -मेरी इतनी ही चिंता है ,तो यहाँ क्यों नहीं आ जाती ?मैडम थोड़ा उदास भी थीं , कह रही थीं -साहब !आए तो मुझे बता देना। 

उदास क्यों लग रही थी ?क्या उसने कुछ कहा ?

नहीं,बस मुझे उनकी आवाज से लगा।  

ओहो !अब तुम आवाज से पहचान लेते हो कि कोई परेशानी में है। अच्छा, अभी मैं सोने जा रहा हूं, उठकर बात करता हूं। 

तब तक मैं आपके लिए खाने में कुछ अच्छा सा बना लूंगा। 

ठीक है, कहकर कपिल अपने कमरे में चला गया किंतु स्वरा का स्मरण होते ही, विचारों का बवंडर उठ खड़ा हुआ। वह सोना चाहता था, किंतु मन में अनेक विचार उठ रहे थे , आखिर स्वरा परेशान क्यों लग रही थी, क्या कुछ हुआ है ? क्या कहना चाहती होगी ? आना तो नहीं चाहती होगी। हो सकता है, हृदय परिवर्तन हो गया हो। मैं कभी उसे ठीक से समझ नहीं पाया क्योंकि हमें साथ रहने का, मौका ही कम मिला था। जब मौका मिला, तब उसने अपनी न जाने कितनी बातें कह डालीं ?मैंने भी तो ज़िद नहीं की, उसे जाने दिया। जानेवाले को भला कौन रोक सका है ? रिश्ते प्रेम से बनते और बंधते हैं ,जबरदस्ती तो जानवरों को रखा जाता है ,जानवरों पर भी ज्यादती करो तो, वो भी सींग मारने लगते हैं। 

शाम के चार बज चुके थे ,साहू परेशान घूम रहा था। साहब को उठाऊं या नहीं ,कुछ समझ नहीं आ रहा था। कमरे के अंदर झाँका फिर वापस आ गया। साहब ने कहा था -दो घंटे के बाद जगा देना किन्तु अब तो ढाई घंटा हो गया,नहीं जगाया तो नाराज होंगे ,सोचते हुए उसके कमरे में गया ,धीरे से बोला -साहब !साढ़े चार बज चुके हैं। इतने पर भी जब कपिल नहीं उठा ,तब उसने अपना स्वर तेज किया और बोला -साहब !उठ जाइये !साढ़े चार बज गए। 

उसकी दूसरी आवाज ने असर दिखाया और कपिल तेजी उठा और साहू से बोला -तुमसे मैंने चार बजे उठाने के लिए कहा था। 

साहब !आया था किन्तु आप  गहरी नींद में थे। 

अच्छा, चलो ! जब तक मैं तैयार होता हूं, तुम खाना परोस दो ! अभी आता हूं , न जाने, कब आंख लगी ? सोचते हुए वह तैयार होने लगा, तभी सामने की दीवार पर उसकी दृष्टि पड़ी, जिसमें उसकी और स्वरा के विवाह की तस्वीर लगी थी। तब उसे वह सभी बातें याद हो आईं। वह तैयार होकर बाहर आया, और साहू से बोला -तुम्हारी मैडम का फोन आया था, क्या कह रही थीं  ?

कहा तो कुछ नहीं, आपके विषय में पूछ रही थीं , स्वर से कुछ उदास सी लग रही थीं। 

ऐसा क्या हुआ होगा ? भोजन करते हुए वह सोच रहा था , तब बोला-कोई बात नहीं मैं उनसे बात कर लूंगा। 

भोजन समाप्त करके, तैयार होकर थाने की तरफ चल दिया। थाने में पहुंचकर उसने देखा, वहां पहले से ही बहुत भीड़ थी। 

यहां क्या हो रहा है? राठौर से पूछते हुए अंदर गया। 

कुछ नहीं साहब ! उनकी बेटी कई दिनों से गायब है,रिपोर्ट लिखवाने आये हैं। 

हाँ, तो इसकी रिपोर्ट लिख लो! किस बात की देरी है ?

जाधव रिपोर्ट लिखने बैठ जाता है ,जी,बताइये !क्या हुआ ?

साहब !हमारी बेटी कई दिनों से लापता है। 

और आप लोग अब रिपोर्ट लिखवाने आये हैं। 

अभी तक हम यही सोच रहे थे ,कि अपने काम के सिलसिले में बाहर गयी होगी।

तुम्हारी बेटी का क्या नाम है ?

दिव्या !

कहाँ काम करती है ?

पास के ही शहर में एस.एस. कम्पनी में काम करती थी। 

क्या मतलब अब नहीं करती ?

जी ,जब उसका बहुत दिनों तक कोई फोन नहीं आया ,तब हमने सोचा ,अवश्य ही कुछ हुआ है ,तब हमने उसकी कम्पनी में बात की तो पता चला वो तो कई दिनों से आ ही नहीं रही है। वे लोग सोच रहे थे ,बिना कोई कारण बताये ,उसने कम्पनी छोड़ दी। 

उनकी बात सुनकर ,कपिल बाहर आया और बोला -क्या आपकी बेटी की ,हाल -फिलहाल में ही सगाई हुई है। 

नहीं साहब !हम उसके विवाह की बात करते तो टाल जाती थी ,कह रही थी ,अभी मुझे थोड़ा समय दो !उसके पश्चात मैं अपने आप ही कह दूंगी। 

आपकी बेटी का किसी से...... 

क्या बात कर रहे हैं ? साहब ! वो ऐसी लड़की नहीं थी। 

सभी माता -पिता को ऐसा ही लगता है,आप यहाँ रहतीं हैं और आपकी बेटी दूसरे शहर में रहती है। आपको क्या मालूम, वो कहाँ आती है ,कहाँ जाती है ?

ये बात तो सही है ,किन्तु हमारी बेटी हमें सब बताती है। 

तब उसने ,ये क्यों नहीं बताया ,वो कहाँ जा रही है ?और कब आएगी ?कम्पनी में भी उसकी कोई जानकारी नहीं है ,वो लोग कह रहे थे, कि अचानक ही चली गयी। कम्पनी वाले भी अजीब हैं ,उनका एक कर्मचारी इतने दिनों से नहीं आया है ,इसकी जानकारी निकालने का प्रयास भी नहीं किया। 

मैं कुछ नहीं जानती साहब !किसने क्या किया ,क्या नहीं ? आप तो मेरी बच्ची को ढूंढ़ निकालिये। 

ठीक है ,हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे,जाधव ने उनकी रिपोर्ट लिखी और उन्हें आश्वस्त करके भेज दिया तब वह कपिल के पास आया। सर ! जो हाथ हमें उस 'फॉर्म हाउस ' में मिला था। क्या इनकी बेटी से तो उसका कोई संबंध नहीं होगा। 

बिना ठोस सबूत के हम कुछ भी नहीं कह सकते ,वैसे यही सोचकर ही, मैंने उनसे सगाई के विषय में पूछा था।   


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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