Shaitani mann [part 30]

इतनी बड़ी संपत्ति है, बड़े-बड़े लोग हैं संपत्ति की देखभाल भी नहीं होती कमाने के लिए बाहर निकल जाते हैं। और उसे प्रॉपर्टी की देखभाल, कोई और ही कर रहा होता है। उसे पूरे फार्म हाउस पर दुबे एक नजर डालते हुए बोला। उनकी प्रॉपर्टी के अंदर क्या हो रहा है क्या नहीं उन्हें पता ही नहीं है, कोई उनकी प्रॉपर्टी का सदुपयोग कर रहा है या दुरुपयोग ! उन्हें वेसे तो मनोहर पर शक होता है , किंतु उसकी उम्र, और सीधापन देखकर विश्वास नहीं कर पाते हैं। कि वह कुछ ऐसा भी कर सकता है। 

एक बात है, दुबे जी ! इस केस के सिलसिले में हम यहां आ गए हैं तो क्यों ना इस फार्म हाउस के स्विंग स्विमिंग पूल में तैर लिया ही जाए। तिवारी ने अपनी मनसा व्यक्त की। 



आपको तैरना ही था, तो सुबह ही तैर लेते अब तो सब आ गए हैं कैस की छानबीन कर रहे हैं ? कहेंगे ! या छानबीन में लगे हैं और यह पिकनिक बना रहे हैं। 

हमने कब मना किया ? सभी मिलकर पिकनिक बना लेते हैं, अगर कोई केस आगे नहीं बढ़ता है, फिर यहाँ आना ही कब होगा ?

वैसे बच्चों के साथ, अच्छा पिकनिक बन जाता।

 तब तक कपिल और राठौर भी आ चुके थे, दोनों उठ खड़े हुए और बोले -सर ! कुछ पता चला। 

अभी तो नहीं पता चला, मुझे तो लगता है कोई ऐसे ही, इस हाथ को उठा लाया है और उसके मुंह से निवाला छूट गया होगा। 

राठौर साहब यह बात भी जंची नहीं, अब थाने में ही चलना होगा। कुछ ऐसा नहीं मिला, देखते हैं किसी की गुमसुमगी की रिपोर्ट आई हो। वे सभी चलने के लिए तैयार होते हैं, तभी दुबे कपिल से कहता है -सर यहां आए हैं तो थोड़ी सी स्विमिंग हो जाए। 

अभी हम ड्यूटी पर हैं, कपिल ने जवाब दिया। 

हम तो रात भर से ड्यूटी पर हैं, हमारी ड्यूटी का कोई समय नहीं होता। आप भी रात्रि में सोए नहीं थे, तिवारी जी की तो यही तमन्ना है। आपको तिवारी जी नहा कर आ जाइए अभी हम चलते हैं कहकर कपिल अपनी मोटरसाइकिल की तरफ बढ़ा , सभी रुक कर बोला -राठौर जी और नंदू लाल आप भी नहा कर आ जाइए !मैं चलता हूं। 

साहब मैं आपके साथ ही आया हूं और आपके साथ ही चलूंगा। नहाने का प्रोग्राम कभी और दिन रख लेंगे कहते हुए मुस्कुराया और कपिल की मोटरसाइकिल के पीछे बैठ गया।

 तभी राठौर बोला -आप चलिए हम आते हैं। मुस्कुराते हुए कपिल आगे बढ़ गया। 

साहब अब तो दोपहर हो रही है, रात्रि में भी नींद नहीं पूरी हुई थी, भूख भी लगी है कुछ खा लेते हैं। हम वहां पहुंचेंगे तब यह लोग भी आ जाएंगे। उसके बाद नहाना और खाना दोनों ही कर लेंगे। कपिल और नंदू रास्ते में किसी ढाबे पर बैठकर, खाना खाने लगते हैं। 

सर इस ढाबे का खाना का खाना बहुत अच्छा है, मैं तो पहली बार खा रहा हूं, क्या तुमने पहले कभी खाया है ? हां एक बार इधर से गया था तब खाया था।

तुम भला यहाँ क्यों आये थे ?

 इसी रास्ते होती हुई एक सड़क,''पुरा ''गांव को जाती  है ,गांव क्या ?अब तो वह कस्बा सा हो गया है। 

वहां पर क्या है ?मक्खनी दाल में अपनी रोटी के टुकड़े को डूबते हुए ,कपिल ने पूछा। 

सर आप '' पुरा महादेव '' के विषय में कुछ नहीं जानते, वहां पर एक शिवजी का बहुत पुराना मंदिर है , सुनने में आया है, वहां जाकर जो भी मन्नत मांगों, वह पूरी हो जाती है। कहते हैं- वहां पर जो शिवजी की पिंडी है, वह अपने आप ही, जमीन से निकलकर बाहर आई थी। लोगों ने उसे वहां से हटाने का बहुत प्रयास किया, किंतु कोई भी उसे हिला ना सका। तब वहीं ,शिव के भक्तों ने मंदिर बनवा दिया। तब से वहां' शिव भक्तों 'की भीड़ लगी रहती है।

 अच्छा ! तब तुम वहां दर्शन करने गए या मन्नत मांगने ,कपिल मुस्कुराते हुए बोला। 

सर जी !जब हमने ये सुना, कि वहां महादेव स्वयं प्रकट हुए हैं ,तो हमारी श्रद्धा जाग उठी और देखने की इच्छा भी बलवती हो उठी। वो तो 'त्रिकालदर्शी 'हैं , उन्हें जो देना होगा दे ही देंगे। अब तक जो भी है ,उन्हीं का दिया है। हम तो  दर्शन करने ही गए थे ,उनके दर्शन मात्र से ही ,सब कष्ट दूर हो जायेंगे ,हमारा तो यही मानना है। इच्छा तो महिलाओं की होती है , जीवन में कुछ न कुछ कमी तो उन्हें लगती ही रहती है। इच्छा पूरी करवाने के लिए पति तो क्या,वो भगवान को भी न छोड़ें। कहते हुए हंसने लगा ,जब लगता है ,पति नहीं सुन रहा है ,तो पति की शिकायत करने ही, भगवान के पास चली जाती हैं। भगवान ! ये तूने मुझे कैसा पति दिया है ? मेरी तो सुनता ही नहीं। ये औरतें भी न..... कभी संतुष्ट नहीं होतीं। 

नन्दूलाल की बातें सुनकर कपिल ने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा ,अपने परिवार के विषय में सोचकर ही ,उसके चेहरे पर कितनी ख़ुशी थी ? तब वो बोला - नंदूलाल ! 'विश्वास' और 'दर्शन' तक तो ठीक है ,किन्तु अन्धविश्वास नहीं होना चाहिए। 

क्या मतलब ?सर जी ! मैं कुछ समझा नहीं। 

मेरा मतलब है ,मंदिर जाओ ! श्रद्धा और भक्तिभाव् से पूजा करो !भगवान पर हमारी आस्था,विश्वास होना भी चाहिए किन्तु पूजा और आस्था के नाम पर बहुत से कर्मकांड और ढोंग होते हैं। वो नहीं होना चाहिए। 

सर जी !आपकी बात, अपनी जगह सही है किन्तु हम लोगों को इतना समय ही नहीं मिलता सरकार की ड्यूटी बजाएं फिर घर की। किन्तु महिलाओं को अपने परिवार की सुख -समृद्धि के लिए ,उन्हें भगवान से बहुत कुछ चाहिए होता है। ये बेचारी भी......  कितनी भोली होती हैं ?सारा दिन घर के कार्य करके ,भगवान का स्मरण करती हैं ,तब भी उन्हें अपने परिवार का ही ख्याल रहता है। पति की उन्नति हो ,बच्चे पढ़ाई में अच्छे हों ,यदि ये कामना पूर्ण हुई तो बच्चे की अच्छी सी नौकरी लग जाये ,उसका घर बस जाये।देखा जाये तो ,बस  उनकी यही छोटी सी दुनिया होती है और उन्हें अपने भगवान पर भी बहुत विश्वास होता है कि वो उनकी बात सुनता है। कभी कोई इच्छा पूर्ण हो भी जाये ,तो बहुत चहकती हैं ,देखा !भगवान ने मेरी सुन ली,उनके जीने की ललक ,ऊपरवाले पर विश्वास और बढ़ जाता है।  अच्छा सर जी !एक बात पूछूं। 

पूछो !

आप, अपनी पत्नी को घर कब ला रहे हैं ? 

नंदूलाल ! चलो ,बहुत देर हो रही है ,कहते हुए वह अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ। नंदूलाल खाने के पैसे देने चला गया ,जो कपिल ने खाने की थाली के पास रख छोड़े थे। दरअसल कपिल ,नन्दूलाल के प्रश्न से बचना चाह रहा था। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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