Samay ke sath chal

मानव ! तू समय के संग -संग चल !

''समय चक्र'' चलता........  निरंतर। 

मानव ! कभी ठहर ! चला सोचता। 

कहां जाना, क्यों है ,मुझको जाना ?



 कभी ठहरता, दौड़ता थक जाता। 

समय संग,मंजिल तय न कर पाता। 

कश्मकश में समय से पीछे रह जाता। 

सोचता,क्यों ? 'समय नहीं ठहर जाता। 


क्यों, जीवन की बातों में उलझ जाता ?

भावी पीढ़ी संग न.....आगे  बढ़ पाता। 

क्यों, बीती परछाइयों में सिमट जाता ?

 क्यूँ 'वक़्त'वक़्त से पहले निकल जाता ? 


'जीवनभर'' साथ चल थक जाता। 

'' समय'' तेजी से आगे बढ़ जाता। 

तीव्र दौड़ने की चाह में,अपनों से बिछड़ जाता।

 समय चक्र न थकता,आगे बढ़ता जाता। 


जी लो !

उम्र,इक पड़ाव पर ये बताती है। 

अब, अपने लिए जिया करो !

रह - रहकर कुछ समझाती है। 

दृष्टि की क्षीणता,गेसुओं की चांदी,

तोरा ह्रदय द्वार खटखटाती हैं । 

दिल कहता -अभी और उड़ना है। 

दिल की उमंगें, बढ़ती जाती हैं। 

थकने पर भी जीना सिखाती हैं। 

हौसलों की हिम्मत बढ़ती जाती है। 

जी लो !ज़िंदगी अभी उम्र बाकि है। 



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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