मानव ! तू समय के संग -संग चल !
''समय चक्र'' चलता........ निरंतर।
मानव ! कभी ठहर ! चला सोचता।
कहां जाना, क्यों है ,मुझको जाना ?
कभी ठहरता, दौड़ता थक जाता।
समय संग,मंजिल तय न कर पाता।
कश्मकश में समय से पीछे रह जाता।
सोचता,क्यों ? 'समय नहीं ठहर जाता।
क्यों, जीवन की बातों में उलझ जाता ?
भावी पीढ़ी संग न.....आगे बढ़ पाता।
क्यों, बीती परछाइयों में सिमट जाता ?
क्यूँ 'वक़्त'वक़्त से पहले निकल जाता ?
'जीवनभर'' साथ चल थक जाता।
'' समय'' तेजी से आगे बढ़ जाता।
तीव्र दौड़ने की चाह में,अपनों से बिछड़ जाता।
समय चक्र न थकता,आगे बढ़ता जाता।
जी लो !
उम्र,इक पड़ाव पर ये बताती है।
अब, अपने लिए जिया करो !
रह - रहकर कुछ समझाती है।
दृष्टि की क्षीणता,गेसुओं की चांदी,
तोरा ह्रदय द्वार खटखटाती हैं ।
दिल कहता -अभी और उड़ना है।
दिल की उमंगें, बढ़ती जाती हैं।
थकने पर भी जीना सिखाती हैं।
हौसलों की हिम्मत बढ़ती जाती है।
जी लो !ज़िंदगी अभी उम्र बाकि है।