इंस्पेक्टर साहब ! क्या सोच रहे हैं ? यहीं पर तिवारी जी भी हैं, उन्हें भी साथ में ले लेते हैं।
विचारों में खोया कपिल, हकीकत की जमीन पर आ जाता है और नंदू लाल से कहता है -हां हां उन्हें भी साथ ले चलते हैं ,कहते हुए ,गाड़ी रोक दी। चौराहे के करीब जाकर, नंदूलाल ने तिवारी जी से कुछ बातें कीं और उन्हें भी साथ बैठा लिया।
साहब ! क्या केस है ?
'' फॉर्म हाउस '' कुछ बच्चे जन्मदिन मनाने आए थे . वहीं पर वह रहस्यमयी हाथ मिला . पता नहीं, किसका हाथ है ? अब वह इंसान जिंदा भी है या नहीं।
किसी पुरुष का हाथ है ,या स्त्री का !
किसी लड़की का हाथ है। देखने से तो लग रहा है ,शायद उस लड़की की सगाई हुई है ,उसके पश्चात ही ,या तो उन लोगों में झगड़ा हुआ या फिर लड़की कहीं फंस गयी। उसके हाथ काटने के पीछे, उस व्यक्ति का क्या उद्देश्य हो सकता है ?अभी ये अंदाजा लगाना मुश्किल है।हाथ यहाँ है ,तो बाकि का शरीर कहाँ है ?सोचते हुए कपिल बुदबुदाया।
क्या हाथ ही मिला है, पूरी बॉडी नहीं मिली।
अभी तक तो हाथ के सिवा, कुछ नहीं मिला, अब जाकर खुदाई करवाएंगे, तब जाकर पता चलेगा ,आस -पास कुछ मिलता है या नहीं। हो सकता है, वहां पर दुबे जी और राठौर को छोड़ा हुआ है , उन्होंने खुदाई करवाई हो। न जाने ,यह किसका कार्य हो सकता है ? बातों ही बातों में, वे 'फार्म हाउस' तक पहुंच गए। क्या हुआ ?दुबे जी ! कार्यवाही कुछ आगे बढ़ी या नहीं .
हमने संभावित कई स्थानों पर, खुदाई की है लेकिन हमें कुछ भी हाथ नहीं लगा।
हंसते हुए, राठौर बोला -हाथ ही तो, हाथ लगा है।
बातों का आशय समझ कर, सभी हंसने लगे . कपिल थोड़ा आगे गया और उस जंगल के अंदर घुस गया। तब वह सभी से बोला -सभी इस जगह की अच्छे से छानबीन कर लें !कोई भी जगह छूटनी नहीं चाहिए और दुबे से पूछा - दुबे जी !क्या' मनोहर' या उसका बेटा आया था।
नहीं, अब तक तो कोई नहीं आया।
थोड़ा इंतजार कर लेते हैं, बाकी यहां की जांच कर लेते हैं , कोई ऐसी संदिग्ध चीज मिले तो बताना।
छानबीन करने के पश्चात भी ,अभी कुछ हाथ नहीं लगा था। सभी एक जगह बैठकर वार्तालाप कर रहे थे। यहाँ इस हाथ के सिवा ,ऐसा कुछ भी नहीं मिला ,जिस पर संदेह किया जा सके।
क्या हत्यारा यहाँ हाथ ही लेकर आया और मिटटी में दबाकर चला गया ,तब बाक़ी का शरीर कहाँ गया ?
उन्हें ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी, कुछ देर पश्चात ही, मनोहर भी आ गया था। साहब !लीजिये कहते हुए उसने,चाय का एक गिलास,कपिल के सामने रख दिया और अन्य गिलासों में भी चाय करने लगा।
तुम सही समय पर आये ,कपिल चाय का घूंट भरते हुए बोला -अब मनोहर जी !हमें ये बताईये !क्या इन बच्चों से पहले यहाँ कोई नहीं आया था ।
नहीं साहब !ये बात तो आपको मैं, पहले ही बता चुका हूँ।
वो तो बताया है, किन्तु तुम बीमार थे ऐसी हालत में कोई आया हो और तुम्हें याद न रहा हो। हो सकता है ,तुम्हारे बेटे ने किसी को यहाँ की चाबी दी हो।
नहीं, साहब ! मुझसे पूछे बग़ैर वो ऐसे ही, किसी को चाबी नहीं देगा।
तो फिर ये हाथ! क्या तेरे पुरखे हवा में आकर इस जमीन में गाढ़ गए ,राठौर गली देते हुए मनोहर से बोला।
विनीत भाव से मनोहर बोला -साहब !मैं बाल -बच्चेवाला आदमी हूँ ,ऐसी बात मत कहिये !मेरा बेटा बाहर नौकरी करने जाता है ,उसे इतना समय ही नहीं ,कि यहाँ आकर देखे, वो तो मेरे कहने पर कभी -कभार साफ -सफाई के लिए चला आता था। अब इतने बड़े ''फॉर्म हाउस ''की देखभाल मुझसे नहीं होती ,वो तो उन लोगों को मुझ पर विश्वास है। मेरे पिता उनके पिता के साथ ही कार्य करते थे ,उन्हें हम पर विश्वास है इसलिए हम इसकी देखभाल करते हैं। यदि किसी को यहाँ ठहराना भी होता है,तो पहले फोन पर उनसे इसकी परमिशन लेते हैं।
और तुम लोगों ने उस विश्वास का ही लाभ उठाकर ,कांड कर डाला।
साहब !आप इतना बड़ा इल्ज़ाम तो मत लगाइये।
तो क्या ?कोई बंद गेट से ,यहाँ हाथ दबाने आया और चला गया।
साहब ! ये तो नहीं पता ,ये हाथ यहाँ कैसे आया ? इस हाथ के अलावा क्या यहाँ कुछ और भी मिला है जो आप हम पर शंका कर रहे हैं।
नहीं ,और तो कुछ नहीं मिला।
तो साहब ! कभी कोई जंगली जानवर ही यहाँ आया हो ,उसने बाकि का हिस्सा खाया हो और हाथ छोड़ दिया हो ,मनोहर ने अंदाजा लगाया।
यदि उस जानवर ने किसी को अपना भोजन भी बनाया तो यहाँ हड्डियां तो होतीं ,या वो हड्डियां भी चबा गया। जब ये 'फॉर्म हाउस 'बंद है तो इंसान तो क्या ,जानवर भी कैसे आ सकता है ?
तब तक चाय पकड़ाकर मनोहर वहीं जमीन पर बैठ गया और बोला -यहाँ जानवर तो आ सकता है।
वो कैसे ?कपिल ने पूछा।
आप शायद ,जंगल के ज्यादा अंदर नहीं गए ,वहां पीछे की दीवार थोड़ी टूटी हुई है ,मैंने मालिक लोगों से कई बार कहा भी था -उस दीवार को ठीक करवा दीजिये किन्तु कहने लगे -'उधर की तरफ सारा जंगल है ,वहां कौन आ रहा है ?करवा देंगे, कहकर बात समाप्त कर दी।
सभी एक साथ चौंके और बोले -यह जंगल भी काफी बड़ा है ,हो सकता है ,पीछे की तरफ लाश को दबाया गया हो ,हम आगे की तरफ देख रहे हैं। चलिए !उधर ही चलते हैं।
तब कपिल के साथ, राठौर भी मोटरसाइकिल पर बैठा और मनोहर को साथ लेकर, उसे पीछे के रास्ते की तरफ चल दिए। जंगल वास्तव में ही काफी बड़ा था, इतनी दूरी पर तो यहां बैठे किसी को पता भी नहीं चलेगा कि जंगल के दूसरे छोर पर क्या हो रहा है ? वहां तक पहुंचने में उन्हें 15 मिनट लग गए। टूटी हुई दीवार को देखकर, वह अंदाजा लगाने लगे कि यहां से, जानवर और इंसान दोनों ही आ जा सकते हैं, किंतु इतना बड़ा जंगल है यहां तो कोई छुप भी सकता है। हो ना हो उस कातिल ने, इसी रास्ते का उपयोग किया होगा। किंतु उसे, वही हाथ वहां ले जाकर दबाने की क्या आवश्यकता थी ? यहां भी तो दबा सकता था, किसी का ध्यान भी नहीं जाता।
राठौर आसपास की सभी चीजें ध्यान से देख रहा था, वह टूटी दीवार के उस पार भी गया और आसपास मिट्टी में, ध्यान से देखने लगा। हां, कुछ जानवरों के पैरों के निशान तो नजर आए। न जाने यह हाथ, कब यहां दबाया गया होगा ? सोचते हुए, वह टूटी दीवार से बाहर आ गया।
क्या कुछ मिला ? कपिल ने पूछा।
नहीं, मुझे तो ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिस पर शक किया जा सके। तब तो यह कार्य किसी जानवर का भी हो सकता है।
बात वहीं पर आकर अटक जाती है, यदि यह कार्य किसी जानवर का ही है तो यहां हड्डियां तो होनी चाहिए। अब तो फोरेंसिक रिपोर्ट से ही पता चल पाएगा, कि इस हाथ को कब मिट्टी में दबाया गया ? और यह जानवर का खाया हाथ है या किसी धारदार हथियार से काटा हुआ है।