जिंदगी की तरह, तू साथ निभाती रही।
पल-पल मुझको , मुझसे मिलती रही।
जीवन के संघर्षों में, साथ चलती रही।
शब्दों के सागर में डूब, समाती रही।
भावों की गहराई की, स्याही लगाती रही।
कभी सुख -दुख का अनुभव दिलाती रही।
ज्ञान तीर चला ,दिलों में नश्तर चुभोती रही।
समय के संग-संग चाल अपनी बदलती रही।
विचारों के समंदर में गोते लगा, मोती लाती रही।
विचार मेरे, तू मुझे, अपने इर्द -गिर्द घूमाती रही।
ए कलम !तू, मेरा मानसिक सुकून बढ़ाती रही।
समय के धरातल पर उम्मीदों के चिराग जलाती रही।
अत्याचार ,शोषण देख न थम सकी।
अपनी धार तेज़ औ तेज करती रही।
आंधी, विषम हालातों में थमी नहीं।
मोहब्बत के दिए ,सदा जलाती रही।
कटार बन, दिलों में उतरती रही।
विभिन्न रंगों में तू, इठलाती रही।
ए कलम !तू थकी नहीं, चलती रही।
वक़्त के पन्नों पर मोती सजाती रही।
क़लम उठा -
समय देखा,
न देखा, पल !
मन में इक भाव उठा !
अविराम उठा।
ज्वार, उठा !
विवश हो उठा !
उठाने को कलम !
बहुत समझाया !
दिल को बहलाया !
'दर्द ए सैलाब' उठा।
हंसी की फुलझड़ी !
ज्ञान का भंडार उठा !
चहक उठा,
भावों का बवंडर !
संघर्षों का तूफान उठा।
मचलते अरमान उठे।
तोेलते अभिराम उठे।
साक्षात्कार कर उठा।
लड़ने को तैयार उठा।
मन यूँ , बोल उठा।
मौन ! क्यों है ?
उठ ! अब कलम उठा !