क्यों नहीं, समझ पाते हो ? मेरे जज्बातों को ,
क्यों नहीं, समझ पाए ?आंखों के इशारों को,
क्यों नहीं, समझ पाते हो? मौन की भाषा को ,
क्या, कहना ही......... , सब कुछ होता है ?
क्यों नहीं, समझ पाए ? मेरे मौन निमंत्रण को ,
क्यों नहीं, समझ पाए ? हृदय की चंचलता को,
क्यों समझ, नहीं पाए ? अधरों के कंम्पन को,
यह' चंचल मन' ,बहुत कुछ कहना चाहता है।
क्यों नहीं झांकते ? वीरान होते स्थल में ,
पास हूँ , क्या होता नहीं ? पत्थर दिल में,
सोचती हूं ,तुमसे कुछ '' कहूं या ना कहूं !
क्या तुम सुन पाओगे?भावों की भाषा को !
शब्दों में बांध लूँ , इस उमड़ते तूफान को ,
क्या समझ पाओगे ? भावों की गहराई को ,
वक़्त से परे ,समझोगे वक़्त की नज़ाकत को ,
सोचती हूँ ,'कहूँ या न कहूँ'दिल के हालातों को
रुक जाती हूँ -
कुछ बातें कहना चाहती हूं।
मेरे लिए, वह पल चाहती हूं।
मैं, तुम संग जीना चाहती हूं।
''कहते-कहते'' रुक जाती हूं।
करीब से जानना चाहती हूं।
जब ठहरकर देखती हूं, तुम्हें,
क्योंकर ,सपनों में आते हो ?
दिल में सोये अरमान जगाते हो।
क्या, कभी, तुम समझ पाओगे ?
क्या ,ह्रदय से रूह छू जाओगे ?
मेरे मौन को कभी पढ़ पाओगे।
ह्रदय की गहराई में उतर पाओगे।
देख तुम्हें,उमड़ आये जज़्बात सभी ,
आज कह दूंगी ,दिल की बात सभी।
आगे ''बढ़ते -बढ़ते'' रुक जाती हूँ।
तुम मेरे कहते -कहते रुक जाती हूँ।