इंस्पेक्टर कपिल , मनोहर से जानना चाहता है, जब तुम इस फार्म पर काम नहीं कर रहे हो, तुम्हारे न रहने पर , इसकी देखभाल कौन करता है ?
कोई नहीं करता है साहब ! बच्चे तो अपने में व्यस्त रहते हैं, किंतु आज मेरा बेटा यहां आया था , जब उन लोगों का फोन आया था ।
उस जंगल की देखभाल भी तो तुम ही करते होंगे।
उसमें तो बरसात ही उसकी सिंचाई करती है या कभी- कभार पानी मैं ही चला देता हूँ , अंदर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
आज जो लड़के,इस फार्म हाउस पर आए थे , उनसे पहले भी, कोई इस फॉर्म हाउस पर आया है।
नहीं साहब ! यहां बहुत दिनों से कोई नहीं आया।
इस' फार्म हाउस' के मालिक कब आते हैं ?
वे तो 6 महीने पहले आए थे, वह भी यहां नहीं , दिल्ली में किसी कार्य से आए थे, तो यहां भी देखने आ गए।
किस मिजाज के इंसान हैं? क्या उनके साथ कोई थी, क्या वे रात्रि में यहां रुके थे ?
नहीं, साहब !क्या बात कह रहे हैं ? वह तो बड़े सीधे हैं, वे तो दिल्ली में ही, किसी होटल में रुककर अपना कार्य करके अगले दिन चले गए थे।
तब यह हाथ किसका हो सकता है ? उसने प्लास्टिक की थैली में टांगे उस हाथ की तरफ इशारा करते हुए मनोहर से पूछा।
साहब ! मैं यह कैसे बता सकता हूं ? हाथ को देखकर तो कोई भी नहीं बता सकता, यह किसका हाथ हो सकता है ?
हो सकता है ,इसी बगीचे में, इस हाथ के साथ, अन्य टुकड़े भी हों। यह तो उस बच्चे को दिख गया।कुछ सोचते हुए कपिल बोला - ठीक है, अब तुम जाकर आराम करो ! कल सुबह जल्दी आ जाना। बाकी का कार्य भी पूर्ण कर लेंगे। दो सिपाहियों को वहां तैनात करके, इंस्पेक्टर कपिल, वहां से चला जाता है।
अगले दिन यह खबर, अखबार में छप चुकी थी, शहर से दूर एक फार्म हाउस पर, किसी लड़की का कटा हुआ हाथ मिला है ,वह हाथ किसका है? अभी इसकी जानकारी नहीं है। उस हाथ पर कोई पहचान चिह्न भी नहीं है। उस हाथ में सिर्फ़ एक कीमती अंगूठी है।
प्रणव के पापा ने जब यह समाचार पढ़ा, तब उन्होंने प्रणव को बुलाया और पूछा -इतनी बड़ी बात हो गई और तुमने हमें बताना भी, उचित नहीं समझा। कल तुम इसी फार्म हाउस पर गए थे न....... वहां क्या हुआ था ? तुमने हमें कुछ भी नहीं बताया।
क्या बताता ? पापा ! सिर्फ हाथ ही मिला है, बाकी के शरीर के अंग नहीं मिले हैं।
तुम्हें इतनी दूर जाने की आवश्यकता ही क्या थी ? क्या यहां आस-पास होटल -ढाबे कुछ नहीं है। बाग- बगीचे भी हैं।
पापा! हम सभी दोस्त साथ में थे, हमें क्या मालूम था? ऐसा कुछ हो जाएगा। वह तो मैंने ही पुलिस को फोन करके बुलाया था क्योंकि हम लोग घबरा गए थे, कहीं हमारा नाम ही न आ जाए किंतु यह तो अच्छा हुआ बाकी का शरीर नहीं मिला है। हो सकता है, बाकी का हिस्सा मिलने पर, इंस्पेक्टर हम पर ही शक करने लगता।
शक के दायरे में तो तुम, अब भी आ गए हो ,वो बार-बार तुम्हें बुलाएगा, परेशान करेगा,नाराज होते हुए बोले -तुम्हें पुलिस को सूचना देने की क्या आवश्यकता थी ? वहां से चुपचाप निकलकर आ जाते ,जब पुलिस परेशान करेगी ,तब बच्चू को पता चलेगा कि तुमने कितनी बड़ी गलती की है।
जो भी होगा, देखा जाएगा, प्रणव लापरवाही से बोला।
तुम पर क्या असर पड़ेगा ? असर तो, हम पर पड़ेगा, जब चार लोग पूछेंगे- आपका बेटा वहां क्या कर रहा था, तो मैं क्या जवाब दूंगा ? शहर से दूर अपने दोस्त का जन्मदिन मनाने गया था। एक बार शक के दायरे में आ जाओ ! इतनी आसानी से विश्वास नहीं बनता। लोग -बाग न जाने कितनी अटकलें लगाने लगते हैं ? 'कुछ तो आग होती ही है , धुआं उस आग को और बड़ा कर देता है।'
पापा !आप भी न जाने क्या -क्या अटकलें लगाने लगे ?लोगों को बताएगा ,कौन ? समाचार -पत्र में हमारा नाम है,नहीं न..... किसी को क्या पता चलेगा ? कहकर प्रणव चुपचाप अपने कमरे में आ गया, अपने दोस्तों को फोन करने लगा। जिसके पिता को कुछ भी मालूम नहीं था, उन्होंने अपने बच्चों से कोई सवाल- जवाब नहीं किया और जिन्हें मालूम था, उन्हें पुलिस से पहले अपने माता-पिता को जवाब देना पड़ रहा था।
हवलदार नंदू लाल ने, इंस्पेक्टर कपिल को आकर बताया- साहब !यहां तो किसी भी लड़की के, गायब होने की रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई है।
इसके ख़ूनी को तलाशने से पहले, हमें इस लड़की के विषय में जानना होगा, कि आखिर यह कौन है ?ये हाथ किसका है ?क्या 'फोरेंसिक रिपोर्ट' से कुछ जानकारी मिल सकती है ,उससे पहले हमें समाचार -पत्र में इस हाथ की एक तस्वीर निकालनी होगी ,ताकि कोई अंगूठी को ही पहचान सके। यहाँ आस -पास के स्वर्णकारों से भी पता लगाओ ! ये अंगूठी कहाँ बनी है ?
जी !कहकर नंदूलाल जाने ही वाला था ,तभी इंस्पेक्टर ने उसे रोका।
नंदूलाल ! सुबह के चार बज गए ,चाय मंगवा लो !उसके पश्चात थोड़ा आराम करके फिर से उसी ' फॉर्म हाउस' पर चलते हैं।
सुबह के चार बज रहे हैं ,वो अभी तक बेहोश थी ,जब उसकी आँख खुली तो उसने अपने को एक अनजान स्थान पर पाया। उसने आसपास नजर दौड़ाई , आखिर वह कहां है ? एक बंद कमरा है, जिसमें से अजीब सी दुर्गंध आ रही थी, कुछ समझ नहीं आ रहा था, वह कहां है ? उसे वहां कौन लाया ? याद करने का प्रयास कर रही थी किंतु कुछ भी स्मरण नहीं हो रहा था, वह जोर-जोर से चिल्लाई-कोई है , कोई है, प्लीज !मुझे यहां से बाहर निकालो ! फिर दरवाजे को देर तक खटखटाती है किंतु दूर-दूर तक भी उसकी आवाज सुनने के लिए वहां पर कोई नहीं था। हताश होकर वह फिर से वहीं बैठ जाती है। तब उसे थोड़ा-थोड़ा याद आता है, वह तो' पलाश' के साथ थी। पलाश ! उसका दोस्त ! जिसको वह चाहने लगी थी, उसी के साथ तो होटल में थी फिर यहां कैसे आई ? उसने उसके साथ खाना खाया था उसके पश्चात उसे कुछ भी याद नहीं।
पलाश ! एक बार उसे, उसके कॉलेज के रास्ते पर मिला था, वह अपनी बाइक से उधर से ही जाता था और उसे देखकर रुक जाता था। पहले उसने एक -दो बार ध्यान नहीं दिया, किंतु पलाश ने भी, उससे कुछ नहीं कहा और चुपचाप उसके पीछे चलता रहता था। ए मिस्टर ! मैं कई दिनों से देख रही हूं , तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो ?
मैं आपका पीछा नहीं कर रहा हूं, बल्कि आप मेरे आगे- आगे चल रही हैं, कहते हुए वह मुस्कुराया।
मैं कोई मजाक नहीं कर रही हूं , मेरे पीछे आने का तुम्हारा उद्देश्य क्या है ?
भंवरा, फूलों पर क्यों मंडराता है ? 'फूल' खिलते क्यों है ? 'बहार' क्यों आती है ? दो 'दिल' धड़कते क्यों हैं ?
मुझे क्या मालूम ?वह आगे बढ़ते हुए बोली।
एक जवान लड़का ,एक सुंदर बाला की तरफ क्यों आकर्षित होता है ?यदि उस सुंदर 'बाला 'के उस सुंदर तन में एक प्यारा सा दिल होगा तो वो समझ ही जाएगी कि पलाश ! खिलता क्यों है ?
दिव्या ने उसकी तरफ देखा और मुस्कुरा दी ,तब वो बोला - इस दिवाने को 'पलाश 'कहते हैं।