Shaitani mann [part 22]

साहिल का जन्मदिन मनाने के लिए, उसके सभी दोस्त,प्रणव के दोस्त के 'फार्म हाउस' पर जाते हैं। वे अभी वहां पहुंचे ही थे और वहां के पूल में मजे कर रहे थे। तभी श्याम ने वहां ऐसा कुछ देख लिया ,जिसके कारण सभी की हालत खराब हो गयी। ऐसा तो उन्होंने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि इस 'फॉर्म हाउस 'में ऐसा भी कुछ हो सकता है। पुलिस आकर छानबीन करती है। अब ऐसे हालातों में वहाँ किसी का भी, रुकने का मन नहीं था। तब वे लोग ,'इंस्पेक्टर कपिल' से अपने घर जाने की इजाज़त मांगते हैं। अभी वो लोग यही बातें कर रहे थे।तभी एक  सिपाही आकर बताता है - साहब ! वहाँ कोई लाश नहीं है ,वहाँ पर, किसी का हाथ ही है।




क्या बात कर रहे हो ? मिटटी में सिर्फ हाथ ही दबा हुआ था,वहां किसी की लाश ही नहीं है। यह हाथ , किसका हो सकता है ? इसका मतलब है ,जिसका ये हाथ है ,मारा तो  गया होगा, किन्तु लाश को कहीं और दफ़ना दिया होगा ,फिर बाक़ी का हिस्सा कहाँ है ? तब इन्स्पेक्टर ने पास खड़े साहिल की तरफ देखा और बोला -तुम लोग जा सकते  हो ,सभी अपना फोन नंबर और पता लिखवाकर जाना,जब भी आवश्यकता होगी ,तुम्हें बुला लिया जायेगा।  

इतना सुनते ही ,फटाफट सभी बच्चे तैयार होकर गाड़ी में बैठने लगे, तभी इंस्पेक्टर साहब बोले -इस 'फार्म हाउस' की देखभाल कौन करता है ? 

जी, 'मनोहर काका 'हैं  ? मैंने उन्हें फोन कर दिया है, उनका बेटा या वे थोड़ी देर में आते ही होंगे, कहकर सभी बच्चे गाड़ी में बैठकर चले जाते हैं।

आज तो...... साहिल का भला जन्मदिन मनता, लेने के देने पड़ जाते, वो  तो अच्छा हुआ लाश नहीं मिली, सिर्फ हाथ ही था, चैन की सांस लेते हुए विनय बोला। 

किंतु यह हाथ किसका हो सकता है ? यह भी तो हो सकता है, कोई इस फार्म हाउस में हमसे पहले आया हो, उसके साथ कोई लड़की हो और उसने ही यह कांड कर दिया हो। 

तू भी क्या बात करता है? वह क्या उसे मार कर उसका हाथ ही यहां दबाएगा। तूने देखा नहीं, उसके हाथ में अंगूठी थी, ऐसा लग रहा था -जैसे किसी के साथ उसकी सगाई हुई हो। यदि यह हाथ यहां पर है, तो फिर उसका शरीर कहां होगा ? या उसे टुकड़ों टुकड़ों में, अलग-अलग, दबा दिया होगा। 

यह कार्य पुलिस का है ,उसे ही करने दो ! प्रणव परेशान होते हुए बोला। 

वह बात तो ठीक है, किंतु एक हाथ ही, उस जंगल में मिला, बाकी का शरीर कहां होगा ?

हो सकता है, आसपास ही दबा दिया हो या पुलिस को गुमराह करने के लिए, कुछ और  किया हो। आजकल कातिल भी कुछ सनकी  होते हैं। उनकी  मनः स्थिति का पता नहीं चलता, कब, क्या सोच बैठे? और कब क्या कर दें ?

ऐसे में भूख भी नहीं लग रही, सोचकर तो पूरी रात्रि का, प्रोग्राम बनाकर गए थे किंतु इस तरह '' उल्टे पांव भागना पड़ा'' घर वाले पूछेंगे-इतनी जल्दी कैसे आ गए ?

मेरे घर वाले कुछ नहीं पूछेंगे, बल्कि वो तो खुश ही होंगे, कि चलो, समय से आ गया ,साहिल मुस्कुराते हुए बोला। 

यार! मुझे तो अभी भी ड़र लग रहा है ,वह 'हाथ' मेरी नजरों के सामने, घूम रहा है, श्याम घबराते हुए बोला। 

अबे  ओ  डरपोक! वह सिर्फ हाथ ही था किसी की लाश नहीं थी,' लाश ' देख लेता तो.....  मुझे लगता है, यह वापस भी नहीं जा पाता, विनय हंसते हुए बोला। 

हां हां हंस लो ! जब पुलिस थाने के चक्कर लगवाएगी न और जब  घरवालों को पता चलेगा ,तब जवाब देते  रहना। 

 अब इसमें हम कर भी क्या सकते हैं ? मेरा उसूल तो एक ही है -' ना कर, ना डर' जब हमने कुछ गलत किया ही नहीं, तो डरना कैसा ! और जब अच्छे नागरिक बन ही गए हैं तो अच्छे नागरिक होने के नाते पुलिस की सहायता करना भी हमारा फर्ज बनता है। अच्छा ,अब यहाँ  कहीं बैठकर भोजन करना है या नहीं। नहीं तो, रात भर ''पेट में चूहे दौड़ेंगे।'' किसी पार्क में बैठकर, खाना खा लेते हैं, तब घर चलते हैं।

 भूख तो मुझे भी लगी है, किंतु मुझसे  खाना नहीं खाया जाएगा, श्याम बोला। 

उस समय तो तुझे सबसे ज्यादा भूख लग रही थी, अब भूख ही  समाप्त हो गई, ड़रपोक  कहीं का ! सुनील बोला -आजा ! थोड़ा सा खा ले। 

इस  समय, पार्क भी बंद हो जाते हैं, तब वे लोग पार्क के बाहर ही, एक छोटी सी दुकान पर बैठकर, खाना खाने लगते हैं। यार, साहिल ! तेरा यह जन्मदिन हमेशा याद  रहेगा। 

इसके बहाने से कम से कम, जिसका हाथ कटा है, उसके विषय में पता तो चल जाएगा वह कटा हुआ, हाथ किसका था ?

घर जाकर किसी को कुछ भी नहीं बताना है, वरना घरवाले घबरा जाएंगे,विनय ने सबको समझाया।  

नहीं बताएंगे, तो जब पुलिस का बुलावा  आएगा, तब तो बताना ही पड़ जाएगा।

हाँ, आराम से बता देंगे किंतु इस समय तो वह लोग घबरा जाएंगे।

 तू  सही कह रहा है, अब तो जाकर चुपचाप सोना ही है। 

मुझे नींद नहीं आएगी, श्याम ड़रते हुए बोला। 

मोटे !तू ऐसे ही थुलथुला  है, किंतु तुझ में थोड़ी सी भी हिम्मत नहीं है। बेफिक्र होकर जा और चुपचाप सो जाना !

इंस्पेक्टर कपिल सोच रहा था, आखिर यह हाथ किसका हो सकता है ? कातिल ने इस हाथ को यहां दबाया तो बाकी का शरीर कहां हो है ? या उसे भी उसने टुकड़ों में बांट दिया। यह तो सुबह ही, यहां की छानबीन करने से पता चलेगा, हो सकता है, अन्य हिस्सों को भी यहीं  दबाया गया हो। वह हाथ की तरफ देखता है ,उस हाथ में अंगूठी थी ,जैसे सगाई की अंगूठी हो।

तभी इंस्पेक्टर कपिल, हवलदार नंदलाल से कहता है -जरा पता लगाओ ! इस महीने में, कितने लोगों की सगाई हुई है ? और किसी लड़की के गायब होने की कोई रिपोर्ट है या नहीं। 

जी, कहकर हवलदार वहां से चला जाता है।

 तभी घबराता हुआ, मनोहर वहां प्रवेश करता है , क्या हुआ ?साहब !

क्या इस फार्म हाउस की देखभाल तुम करते हो ? 

जी हां, यह मेरी  ही जिम्मेदारी है किंतु मैं कई दिनों से बीमार था, इसीलिए यहां नहीं आ पाया। 

बीमार थे  या बीमारी का बहाना बना रहे थे। 

नहीं, साहब ! ऐसा कुछ भी नहीं है, मैं बीमार ही था, अभी भी मुझे कमजोरी के कारण चला नहीं जा रहा है किंतु आपने बुलावा भेजा था, इसलिए आना पड़ा। 

तुम्हारी बहुत मेहरबानी !अब मेहरबानी करके यह भी बता दो ! यह हाथ किसका है ?

क्या 'मनोहर काका 'उस हाथ के विषय में कुछ बता पायेगा ?या नहीं ,चलिए आगे बढ़ते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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