Balika vadhu [32]

आज तड़के ही, रामखिलावन और उसकी पत्नी बस में बैठ गए थे, मन ही मन खुश हो रहे थे, आज बच्चों से मिलना भी हो जाएगा और आमने-सामने बैठकर बातें  भी हो जाएँगी। वह तो अच्छा हुआ ,रामखिलावन ने बहुत पहले ही, उनके घर का पता ले लिया था। दोनों उसी पते  के आधार पर, घर जाने के लिए रिक्शा में बैठ चुके थे। 

तुम आज कॉलेज जाओगे या नहीं, सरस्वती ने प्रेम से पूछा। 

नहीं, आज कॉलेज में मेरा ज्यादा काम नहीं है, कुछ नोट्स बनाने होंगे, वह मेरा दोस्त ले आएगा। 

मन ही मन सरस्वती सोच रही थी- यह कब तक मेरी देखभाल करेगा ? अपने को ज्यादा होशियार और समझदार समझ रहा है , ऐसे व्यवहार कर रहा है ,जैसे मैं कुछ समझती ही नहीं। बना, बैठा रहे चौकीदार ! 'अरशद' से तो मैं बाहर भी मिल लूँगी,अपनी सोच पर स्वयं ही मुस्कुराई।

परिणीति में उत्सुकता से पूछा - तब आगे क्या हुआ ?

वही तो बताने जा रही हूं, रामखिलावन और उसकी पत्नी,अब घर पहुंच चुके थे, घर के सामने उन्होंने अपना रिक्शा रुकवाया और रिक्शे वाले को पैसे देकर, दरवाजा खटखटाया। प्रेम मन ही मन सोच रहा था, आज सुबह-सुबह कौन आ गया ? दीदी, तो अभी बाहर निकली है, कहीं वह' अरशद ही तो नहीं आ गया। उसने दरवाजा खोला, सामने माता-पिता को देखकर, अचंभित रह गया। अरे! आप लोग, कहते हुए, वह आगे बढ़ा-और दोनों के पैर छुए। 

'जीते रहो, खुश रहो ! बेटा ! भाव विभोर हो दोनों पति-पत्नी ने बेटे को आशीर्वाद दिया और घर के अंदर प्रवेश किया। उन्हें गिलास में, पानी देते हुए,प्रेम ने पूछा -आज अचानक कैसे आना हुआ ? आपने मुझे बताया भी नहीं। 

वही तो.... हम अचानक ही आना चाहते थे,हम तुम्हें ''सरप्राइज '' जो देना चाहते थे,मुस्कुराते हुए रामखिलावन बोला-  किन्तु तू तो यहीं है ,तू आज कॉलेज नहीं गया , रामखिलावन ने पूछा। 

आज मैं कॉलिज चला जाता तो ,दरवाजा कौन खोलता ?इसीलिए आज मैं यहीं रुक गया ,बहुत दिनों पश्चात आज वह मुस्कुराया है। सरस्वती के साथ तो गंभीर मुद्रा में रहते -रहते तो जैसे वह स्वयं ही अकड़ सा गया है। हमेशा  घर के वातावरण में एक खिंचाव सा रहता। तुरंत ही ,शांत होकर बोला - आज मुझे ज्यादा काम नहीं था, इसलिए घर पर ही रहकर पढ़ाई कर रहा था। 

तेरी बहन तो, अपने काम पर गई होगी माँ  खुश होते हुए बोली। 

हां अभी-अभी निकली हैं।

तब तक रामखिलावन की पत्नी ने, अपने सामान में से खाना निकाल लिया था, और बेटे से बोली -प्रेम! तूने नाश्ता किया, कुछ खाया है। अब वह क्या बताता ? अपने आप ही कुछ बनाकर खा लेता है, दीदी! अपना नाश्ता बनाकर ले जाती है, कुछ बचता तो उसे छोड़ जाती है,नहीं तो कह देती है -जो तुझे खाना हो ,बनाकर खा लेना।  कभी-कभी तो बनाती भी नहीं है। तब वह बोला -अभी तक तो नहीं खाया है।

9:00 बज रहे हैं, तब से भूखा बैठा है, ले !मैं कुछ बना कर लाई हूं , हमने भी नहीं खाया है, सोचा था- बच्चों के साथ ही खाएंगे, कहते हुए मां ने पूरी- भाजी तश्तरी में रखकर ,बेटे के सामने रख दी। सभी ने पेट भरकर भोजन किया। माता-पिता ने, उस घर में घूम -घूमकर, देखा कि बेटा और बेटी, कैसी जगह पर रह रहे हैं ?

बेटा ! जगह तो अच्छी है। 

अब आप लोग थोड़ी देर आराम कर लीजिए, सफर से थके होंगे , मैं भी थोड़ी पढ़ाई कर लेता हूं , तब तक दीदी भी आ जाएगी। 

वह कितने बजे आती है ?

वो  तो 6:00 बजे आती हैं , चलो ! रात्रि का भोजन तो हम एक साथ ही कर लेंगे। मन ही मन प्रेम सोच रहा था, मम्मी -पापा का आना भी ,दीदी को अच्छा नहीं लगेगा। जब उसे अपने भाई के साथ रहना ही अच्छा नहीं लग रहा है, तभी उसे जैसे कुछ स्मरण हो आया और उसने पूछा - लड़के वालों ने क्या जवाब दिया ?

बेटे का यह प्रश्न सुनकर, रामखिलावन उदास हो गया और बोला -इसीलिए तो हम यहां आए हैं। 

उनका चेहरा देखकर प्रेम को कुछ शक हुआ और बोला -उन्होंने, क्या जवाब दिया ?

क्या बताएं? क्या सच है क्या झूठ ! उनके बेटे का कहना है-' हमारी बेटी ने ही, उससे विवाह से इनकार कर दिया है।' 

यह क्या कह  रहे हैं? दीदी ने मना कर दिया, उसे जैसे, सरस्वती से इस व्यवहार की कतई भी उम्मीद नहीं थी। 

हां, लड़के वालों ने तो यही कहा है, कि हमें तुम्हारी लड़की पसंद थी, किंतु लड़की ने ही मना कर दिया है। 

अबकी बार प्रेम को क्रोध आ गया और बोला- उसी के कारण यह सब हो रहा है। 

तू किसकी बात कर रहा है ? कुछ भी नहीं, अभी आप लोग आराम करिए ! बाद में बात करते हैं। 

माता-पिता को शंका हुई, अवश्य ही कुछ बात तो है, जो यह हमसे छुपा रहा है। 

रामखिलावन और उसकी पत्नी आराम करने के उद्देश्य से, जमीन पर पड़े गद्दे पर लेट तो गए किंतु उन्हें नींद नहीं आ रही थी। सुनते हैं , प्रेम ! किसकी बात कर रहा होगा ?आँखों को बंद किये लेटे रामखिलावन की तरफ देखते हुए बोली। 

मुझे क्या पता ? सरस्वती की मां, उसकी बातों से तो लग रहा है, जैसे वह हमसे कुछ छुपा रहा है ?शाम को सरस्वती आती है उससे ही पता चलेगा , क्या बात है ?

यही तो पता लगाने के लिए हम लोग यहां आए हैं , अवश्य ही कोई बात है, जो दोनों बहन- भाई हमसे छुपा रहे हैं। 

जब सरस्वती आ जाएगी तो सभी बातें, स्पष्ट हो जाएंगीं, भोजन करके रामखिलावन को नींद आ गई और वह सो गया किंतु उसकी पत्नी की आंखों में नींद नहीं थी वह उठी और बेटे के कमरे की तरफ गई।  दरवाजे से बाहर झांका,उसने देखा - प्रेम पढ़ नहीं रहा था किंतु कुछ सोच रहा था। प्रेम को दरवाजे के बाहर आहट  महसूस हुई, उसने बाहर की तरफ देखा, मां की धोती उसे दिखाई दी , लेटे-लेटे ही बोला -मम्मी ! क्या आप  बाहर खड़ी हैं , अंदर आ जाइए !

बेटे की इतना कहते ही, अंगूरी अंदर आ गई, उसे देखते ही प्रेम बोला- मम्मी ! क्या आपको नींद नहीं आई ?

नींद आये भी कैसे ?इक माँ पहले से ही ,किसी अनहोनी को भांप लेती है ,उसे लग रहा है -बेटी ने इतने अच्छे रिश्ते से इंकार कर दिया ,बेटा ,कुछ कहते -कहते रुक गया।  पति बाहर कमाता है किन्तु पत्नी घर पर रहकर,उस घर को जोड़ने के साथ -साथ रिश्तों के कुछ अनुभव भी कमाती है ,हालाँकि पुरुष के भी अपने अनुभव होते हैं किन्तु वो ,वह भी महसूस करने लगती है ,जो बाहरी चक्षुओं से नहीं देखा जा सकता। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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