Shaitani mann [part 18]

रचित के पिता ने, नितिन के पापा को फोन किया किंतु उन्हें भी, रचित की कोई जानकारी नहीं थी। तब वे नितिन को फोन दे देते हैं, किंतु नितिन, रचित की ,कोई भी जानकारी देने से इनकार करता है। यह बात उसके दादाजी, को समझ नहीं आई क्योंकि उन्होंने रचित को कल ही तो, अपने घर पर देखा था, तब नितिन ने उनसे, किसी भी तरह की जानकारी के लिए क्यों इंकार किया ? यह प्रश्न उनके मन में घूमने लगा ।  वे नितिन से पूछना  चाहते थे -आखिर उसने रचित के पापा से झूठ क्यों बोला है ?किन्तु नितिन वहां पर रुका ही नहीं, और तुरंत ही अपने कमरे में चला गया। जब से नितिन उनके लिए ' व्हीलचेयर' लेकर आया है, तब से, वे जब भी बोर होते हैं अपनी उस' पहिए वाली कुर्सी' पर बैठकर ,घर में इधर-उधर टहलने लगते हैं।

 यह तो बहुत ही बुरा हुआ , पद्मिनी जी ने, नितिन के पापा के पास आकर कहा -त्योहार के दिन चल रहे हैं, ऐसे में,उनका जवान लड़का घर से गायब है, उनका क्या त्यौहार मनेगा ?


न जाने, कहां चला गया है ? आजकल के बच्चे भी ,सुनते ही कहां हैं ? कम से कम घर से बाहर निकले तो माता-पिता को बताकर तो जाएं ,कि हम कहां जा रहे हैं ? नितिन, तो उसका सबसे अच्छा दोस्त है ,उसे भी  बता कर नहीं गया। गोविंद जी अपने 'गोविंद विला' में टहल रहे थे किंतु उनके मन में एक ही प्रश्न रह -रहकर घूम रहा था , वह चाह रहे थे, यदि नितिन नीचे आए तो मैं उससे, अपने सवाल का जवाब मांगू। कुछ देर पश्चात ही, नितिन नीचे आया उसके कंधे पर एक बैग था। उसे इस तरह देखकर पद्मिनी जी घबरा गई और बोलीं -क्या, तू कहीं जा रहा है ?

हां ,मैं सोच रहा हूं, अपने हॉस्टल के लिए ,आज ही निकल जाता हूं। 

यह क्या बात कर रहा है ? उसके इस निर्णय पर चौंकते हुए ,पद्मिनी जी बोलीं -आज तो त्यौहार ही है ,'दीपावली 'मनाने के पश्चात, 'गोवर्धन 'और 'भाई दूज 'भी आता है। इनकी तो सभी जगह छुट्टियां होती हैं ,फिर तू इतनी जल्दी क्यों जा रहा है ? आज तो तू कतई नहीं जाएगा पद्मिनी जी ने, उसे रोकते हुए कहा। जा अपना बैग ऊपर रख आ ! अभी 2 दिन की छुट्टी और बाकी है। क्या तेरा, अपने परिवार में मन नहीं लग रहा है। मैं, वही तो कह रही थी -जब बच्चा अपने परिवार से दूर रहने लगता है ,तब उसका मन अपने घर में , अपने लोगों के पास नहीं लगता है। क्या ,तू आज अपने दादाजी से मिला था ?

दादाजी ,घर में ही तो हैं, दूर थोड़े ही हैं , जो मुझे उनसे मिलने के लिए जाना पड़े। 

वह तुझे पूछ रहे थे, तेरे जाने का सुनकर नाराज हो जाएंगे , जाने भी नहीं देंगे। 

तभी नरेंद्र जी भी आ गए थे और बोले -क्या तू कहीं जा रहा है ?

 हां, अपने हॉस्टल जाना चाह रहा था। 

तब मैंने रोका, त्यौहार के दिन तो कोई भी नहीं जाता, त्यौहार  मनाने के लिए ही तो यह इतनी दूर आया है और आज कैसे चला जाएगा ? मैंने इससे मना कर दिया?

ठीक किया ,हो सकता है ,इसका दोस्त गायब हो गया है,इसी कारण घबराकर जा रहा हो। 

ये क्या बात हुई ?दोस्त गायब हुआ है ,तो इसे उसके घर जाना चाहिए ,उन लोगों से मिलकर बात करनी चाहिए ,उन्हें आश्वासन देना चाहिए कि हम रचित को ढूंढने में उनकी सहायता करेंगे। 

वो तो ठीक है, किन्तु मैं नहीं चाहती वह आज के दिन कहीं भी बाहर जाये ,आज के दिन' तंत्र -मंत्र 'वाले बहुत घूमते रहते हैं। हो सकता है ,रचित को भी...... 

तुम भी क्या बेसिर -पैर की बातें लेकर बैठ जाती हो ?कहते हुए,वे उठ खड़े हुए ,मन ही मन सोच रहे थे -यहां बैठा रहा था ,तो न जाने मन का क्या -क्या फितूर सुना देगी ? 

नितिन जब दादा जी के समीप पहुंचा तो उसने दादा जी को कुर्सी पर बैठे, खिड़की से बाहर देखते पाया ,उन्होंने नितिन को देखा और एक गहरी स्वांस ली। क्या आप मुझे ढूंढ रहे थे ?नितिन ने पास पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए पूछा। 

कौन कह रहा था ?

मम्मी ने बताया ,उन्होंने मन ही मन सोचा -मैंने तो उससे कुछ भी नहीं कहा ,तब उसे ऐसा क्यों लगा ?

क्या सोच रहे हैं ?

हाँ ,मुझे तुम्हारे दोस्त रचित के विषय में पता चला ,किन्तु मुझे एक बात समझ नहीं आई ,अब तक गोविन्द जी खिड़की से बाहर ही देख रहे थे। 

कौन सी बात..... ?

तब उन्होंने नितिन की तरफ देखा और बोले - कल मैंने रचित को तुम्हारे साथ ही देखा था ,किन्तु तुमने उसके पिता से फोन पर,उसके विषय में ,कुछ भी बताने से क्यों इंकार किया ?बल्कि तुम तो उसके संग ही गए थे ,उसके चेहरे पर अपनी अनुभवी नजरें गड़ाते हुए पूछा। नितिन ने उनकी तरफ देखा ,वो बोले -मैं यहीं से बैठा ,तुम लोगों को जाते हुए देख रहा था। 

हां, हम लोग साथ गए थे, किंतु मैंने उसे उसके घर के करीब ही छोड़ दिया था , उसके पश्चात वह कहां गया कहां नहीं यह मैं नहीं जानता इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने उनसे कहा। 

नहीं ,तुमने उनसे कहा था-'हम लोग परसों मिले थे,' यह नहीं कहा -कि हम कल भी मिले थे। देखो ! मैं तुम्हारा दादा हूं , क्या तुम दोनों के बीच कुछ हुआ है, उसे अभी भी संभाला जा सकता है। 

नहीं ,कुछ भी नहीं हुआ है, उसके गायब होने की बात सुनकर मैं, अचानक से घबरा गया था और मैं सोच रहा था यदि यह पुलिस केस हो गया तो व्यर्थ में ही, मैं फंस जाऊंगा इसीलिए मैंने, उनसे कल वाली बात नहीं बताई। 

बस यही बात है। 

 हां ,यही बात है। 

तब तो तुम्हें उनके घर जाना चाहिए था, पूछना चाहिए था किसी से कोई दुश्मनी या किसी के साथ गया हो। 

दादाजी !आप भी क्या बात करते हैं ? सबसे पहले तो मम्मी ही मुझे घर से बाहर नहीं जाने देंगीं  और जब से उन्होंने रचित के गायब होने की बात सुनी है तब से और घबराई हुई है। यह कार्य पुलिस का है, वह अपना कार्य करेगी। हो सकता है मेरी ज्यादा छानबीन से या मुझसे पूछने से , उन लोगों का शौक मुझ पर ही चला जाए। 

तुम्हारी बात भी सही है किंतु तुम्हें एक दो बार फोन करके तो पूछ ही लेना चाहिए। वैसे तुम कॉलेज कब जा रहे हो ? मैं तो आज ही जाना चाहता था किंतु मम्मी ने रोक दिया। कल चला जाऊंगा, आप चाय पियेंगे। 

हां ,पी लूंगा , यदि तुम्हारी मम्मी को परेशानी न हो तो, कहते हुए मुस्कुरा दिए। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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