Ishver ki maya kahin dhoop kahin chhaya

''धूप और छाया''—बस यही तो ज़िंदगी का दूसरा नाम है। ईश्वर की माया भी कुछ ऐसी ही है—जहाँ किसी के जीवन में उजाला है, वहीं किसी के हिस्से में अँधेरा आता है। 

राजगढ़ गाँव में हरि और मोहन दो भाई थे। पिता के निधन के पश्चात दोनों के जीवन की दिशा ही बदल गई। हरि मेहनती, व्यवहार कुशल और ईमानदार था, जबकि मोहन आलसी , लालची और भाग्य पर अंधविश्वास करने वाला था।  पिता की छोड़ी ज़मीन दोनों में, बराबर-बराबर  बँटी थी, पर समय के साथ हरि की खेती लहलहाने लगी और मोहन की ज़मीन सूखने लगी।


गाँव के लोग कहते—“ईश्वर की माया है, किसी के खेत में सोना उगे, तो किसी के आँसू किन्तु इसमें उसका अपना कर्म भी तो है ,हरि देखो !कितना परिश्रम करता है। 

हरि प्रातः काल सूरज से पहले उठकर खेत जोतता, अपने हाथों से फसल काटता। मोहन सोचता—“जब किस्मत साथ नहीं, तो क्यों व्यर्थ में परिश्रम करना ?”
कुछ सालों में हरि का घर पक्का हो गया, दो बैल, एक ट्रैक्टर और खुशहाल परिवार।उधर मोहन का जीवन कर्ज़ और नशे की अंधेरी गली में उतर गया।

एक दिन बारिश के मौसम में, हरि के खेतों में बाढ़ आ गई, पूरी फसल बह गई , उसने कर्जा लेकर बीज,खाद इत्यादि में खर्चा किया था ,वो ज्यों का त्यों रहा ,अब घर में खाने के लिए भी दाने न बचे , वही लोग जो कल तक उसकी मेहनत की मिसाल देते थे, अब कहते—“देखो, ईश्वर की माया! कल तक इसके घर में  कितनी रौनक थी,और आज ये भी मोहन जैसा हो गया ,सब ईश्वर की माया कल धूप थी आज छाया !”

हरि टूट गया,बहुत दुःखी था किन्तु शीघ्र ही उसने अपने को संभाला ,और मन ही मन निश्चय किया ,मैं इस तरह निराश होकर नहीं बैठ सकता कुछ तो करना ही होगा। उधर मोहन, जो बरसों से खाली बैठा था, ने सोचा- कि इस बार वह हरि की मदद करेगा, उसने अपनी ज़मीन पर उगने वाले नीम के पेड़ों को बेचकर कुछ पैसे जुटाए और हरि के खेत के लिए बीज खरीद दिए।

पहली बार दोनों भाइयों ने साथ मिलकर खेत में काम किया, उस साल फसल ऐसी लहलहाई कि पूरे गाँव ने वाहवाही की और उनका कर्जा भी उतर गया। अब दोनों भाई प्रेम से साथ में रहने और खेती करने लगे। 

एक दिन दोनों जब बाजार से लौट रहे थे,लौटते वक्त रास्ते में मोहन पर बिजली गिर गई और उसकी मौत वहीं हो गई। यह देखकर हरि स्तब्ध रह गया।

गाँव के बुज़ुर्ग ने कहा—
“देखा बेटा ! ईश्वर की माया को आज तक कोई नहीं समझ पाया। जब तुम दोनों अलग थे ,तो उसने और उसी के हाथों से तुम्हारी सहायता करवाई ,जो अपने लिए कुछ न कर सका। तुम्हेँ एक करने का बहाना बना दिया ,जब मिलकर रहने लगे तो उसने,तुम्हारे भाई को अपने पास बुला लिया। अब तुम पर उसके कर्त्तव्यों का भार भी आ गया है। वो कभी सुख और खुशियां देता नजर आता है तो दूसरे ही पल लगता है ,जैसे खुशियां मुँह मोड़ गयीं। कल तक तुम दोनों भाईयों  के प्रेम की'' धूप, खिल रही थी,आज उसके बिछोह का अंधकार छा गया — यही सृष्टि का संतुलन है।”

हरि ने आसमान की ओर देखा,मानो , बादलों के पीछे से झाँकती धूप उसे मानो कह रही थी—
“कभी सुख, कभी दुख… यही जीवन का नियम है - ईश्वर की माया है बेटा, कहीं धूप, कहीं छाया।”

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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