kismat rekha

 जीवन सफ़र के ,राही सभी ,

मंजिल सबकी अपनी-अपनी। 

राहें  सब की , जुदा - जुदा ! 

सोच औ कर्म की इस भूमि में,

कुछ लिख दी जातीं , मंज़िलें !

रेखांकित हो आईं, करतल पर,

कुछ ' मानस पटल'' की रेखा। 

किस्मत का खेल किसी ने न देखा। 

तय मंजिल सभी की, अपनी -अपनी।

चलें, किस राह ? अनजान सफ़र !

दिखती नहीं, वह क़िस्मत रेखा !



दो राही -

हम दो राही.......  , 

रस्ते थे,न्यारे -न्यारे ! 

आज मिले दो पथिक...... , 

लगे, इक दूजे को प्यारे !

 मंजिल की तलाश में ।

 मंजिल अबूझ पहेली ,

नहीं यह किसी की सहेली !

 धुंधले से , आकार हैं ,

 सोच का आधार है 

 पहुंचना कहां ?ये सवाल है। 

 तुम ! राह में, साथी बने,

 ''हमराही ''हो गए।

 आलंबन न दे ,मुझको , 

 तुम ,बेवफ़ा हो गए । 

राही बन, हम साथ थे, 

मंजिलें थीं, जुदा-जुदा ! 

तुम ही नहीं,

 मंजिल पाने की धुन में,

 क्या,कुछ  छूट गया ? 

रिश्ते छूटे ,बंधन टूटे । 

  अनजान मंजिल की ओर,

 हम बढ़ते चले  । 

पहुंचे कौन ,कहाँ ?

 मंजिल ,अपनी -अपनी। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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