Sazishen [part 111]

कल्पना गर्भवती है , किन्तु कुछ दिनों से ,उसकी तबीयत खराब चल रही थी, उसे अपनी ससुराल में कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था।' चांदनी' पर भी उसे, विश्वास नहीं था। पहले तो उसने सोचा, शायद सब ठीक हो जाएगा किंतु धीरे-धीरे उसकी परेशानी बढ़ने लगी। तब वह नीलिमा के पास आ गई , शायद माँ से ही कुछ सलाह मिले। इस विषय में शिवांगी को कुछ भी नहीं मालूम था , जब शिवांगी ने कल्पना को अपने घर में देखा, तो उसे, कल्पना का वह व्यवहार स्मरण हो आया, जो उसने अपने घर में ,शिवांगी के साथ किया था। उससे बिना बातें किये ही, शिवांगी अपने कमरे में चली गई।

 कल्पना उसे देखकर बोली -अभी भी ,मुझसे नाराज है ,किन्तु शिवांगी ने कोई जबाब नहीं दिया। तब कल्पना बोली -अभी तेरी अकड़ गई नहीं है, देखा छोटू ! तू तो अभी इस संसार में आया भी नहीं है और तेरी मौसी ने अभी से ही, तेरी तरफ से मुंह फेर लिया है। तेरे आने से पहले ही ,तेरे दुश्मन भी हो गए ,जो तुझे मारना चाहते हैं। अब बता ! तू मौसी किसे कहेगा? मुझे लगता है -यह मौसी , अपनी बहन से नाराज है , अब तू बता ! यह अपनी बहन को माफ करेगी या नहीं !


क्यों, माफ नहीं करेगी ? आखिर यह भी तो मौसी है, यानी मां जैसी ,नीलिमा ने बात को संभालने का प्रयास करते हुए कहा। 

शिवांगी के कमरे तक उसकी आवाज जा रही थी, तब वह बाहर आई, और बोली -आप यहां क्यों आई हैं ?

यह मेरा भी घर है , तुम ही इस घर की मालकिन नहीं हो। 

नहीं, तुम हर जगह की मालकिन हो, घर नहीं है, तो मेरा ,कहीं पर नहीं है क्रोधित होते हुए शिवांगी बोली। 

यह घर किसी का भी नहीं है, नीलिमा हंसते हुए बोली -उस, 'मकान मालिक 'का है जो हर महीने किराया लेने आता है और तुम दोनों ही ,ये  झगड़ा छोड़ो ! और आगे, आने वाले बच्चे पर ध्यान दो ! ताकि वह इस संसार में आए ,तो उसकी कुछ मीठी यादें बनें  ,मीठी मुस्कुराटे ं हों , और हम सबके जीवन में खुशियां लेकर आए।

आप जब भी बोलती हो ,मुझे ही समझाने लगती हो ,आपने अभी सुना नहीं ,मैं इस बच्चे की दुश्मन हो गयी।जिसका मुझे मालूम भी नहीं।  

वो तेरे लिए नहीं था ,एक दुश्मन, उस घर में भी तो रहती है। 

वो आपका अपना मसला है ,आप जानो !कहकर फिर से कमरे में आ गयी। 

अगले दिन जब शिवांगी, तुषार से मिली तो बहुत नाराज हुई। तुम मेरे साथ दोहरा खेल ,खेल रहे हो ,एक तरफ मेरी बहन है, जो तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली है और दूसरी तरफ तुम  मुझसे  प्रेम की पींगे बढ़ा रहे हो, तुमने मुझे एक बार भी नहीं बताया - कि दीदी गर्भवती है। 

इसमें ऐसी कौन सी बड़ी बात हो गई ? गर्भवती है ,तो अच्छा ही हुआ मुस्कुराते हुए तुषार बोला।  

मतलब ,मैं कुछ समझी नहीं, अब वह मेरी ज्यादा जासूसी नहीं करती है , बच्चा हो जाने के पश्चात , वह उसके कार्य में व्यस्त हो जाएगी हम दोनों, अपने में व्यस्त हो जाएंगे कहते हुए वह उसको गले लगा लेता है। हम अपनी जिंदगी जीते रहेंगे, वह अपनी गृहस्थी जीती रहेगी , कैसी ?कही साली साहिबा !

कहीं तो 'सोलह आने सही'' किंतु क्या मैं ताम्र आपकी साली बनकर ही रहूंगी, क्या हम कभी विवाह नहीं करेंगे ? विवाह के पश्चात वह वाली बात नहीं रहती।  

 हमारा यह रिश्ता ! नाजायज कहलाएगा। मैं इस रिश्ते में हीं बंधकर नहीं रह सकती ,अब मैं विवाह करना चाहती हूं और वह भी तुमसे। 

तुम्हें मुझसे विवाह करना ही था, तो पहले ही क्यों नहीं बताया ? मैंने पहले कभी तुम्हें उस दृष्टि से देखा ही नहीं था। 

फिर से वही बात...... जब नहीं देखा था किंतु अब तो देख रहे हो। 

जब तुम करीब आईं , तब मुझे एहसास हुआ कि तुम मेरे लिए बनी हो , क्यों, इस प्रेम में खलल डाल रही हो ?कहते हुए ,उसको अपने क़रीब खींच लिया। 

किंतु इस रिश्ते का कोई, परिणाम तो होगा। 

वह तो समय बताएगा, क्यों अपना मूड खराब करती हो ? चलो, आओ !आज कोई अच्छी सी पिक्चर देख लेते हैं। 

क्या आपको मालूम है ? दीदी घर पर आई हुई हैं ।

 हां !

और आपने आने दिया, वहां उसकी मां है, बहन है ,महिलाओं की बातें महिलाएं ही जानती हैं तुम तो जानती ही हो। उसकी मेरी सौतेली मां से नहीं पटती है। 

 तुमने ऐसा क्या जादू किया है ? वह तो ,तुम्हारे ही गुण गाती रहती है। 

तुम भी  गाने लगोगी ,जब हम और करीब आ जाएंगे। जब तुम्हारी बहन के बच्चा होगा ,तब तुम ही ,उसकी देखरेख के लिए आ जाना क्योंकि उसे उन [ चांदनी ]पर विश्वास नहीं है ,तुम उसकी सगी बहन और तब हम दोनों...... कहते  हुए ,उसे बाँहों में भर लिया।

छोडो मुझे !कहते हुए शिवांगी तुषार के पास से उठ जाती है। 

क्या हुआ ?ऐसे हट रही हो ,जैसे मैंने कोई करंट लगा दिया हो।

शिवांगी को, करंट ही तो लगा था ,जब उसे पता चला ,उसकी बहन माँ बनने वाली है और तुषार उसे अपने करीब तो चाहता है किन्तु उससे विवाह नहीं करना चाहता। अपनी इसी चाहत के चलते ,शिवांगी ने एक उम्मीद से तुषार से सम्पर्क बनाया था ,यह आश्वासन उसे चांदनी से ही मिला था किन्तु आज उसे लग रहा था ,जैसे उसको इस्तेमाल किया गया है। वह कुछ भी समझ नहीं पा रही थी आख़िर उसकी जिंदगी का क्या होगा ? उसे लग रहा था ,जैसे उसके तन में जान ही नहीं रही। 

तुषार ने शिवांगी को आवाज लगाई और बोला -चलो !ये सब छोडो !आज कहीं और चलते हैं। किसी होटल में, कहते हुए उसने शिवांगी की तरफ आँख मारी किन्तु शिवांगी उसे सिर्फ देखे जा रही थी। उसे एहसास हो रहा था ,उसने जीवन में कितनी बड़ी गलती कर दी है ?उसे नहीं लग रहा था ,तुषार कभी भी, उसे अपनाएगा या उससे प्यार करने लगा है। वो तो अपने मज़े  के लिए ही मेरा इस्तेमाल कर रहा है। जब दीदी या मम्मी को इस विषय में जानकारी होगी ,तब वे क्या कहेंगी या सोचेंगी ?अपनी ही बहन का घर ,उजाड़ने चली थी। काश !मैं उस दिन मर ही गयी होती कुछ दिनों तक याद रहती ,फिर सब भूल जाते किन्तु अब अपने साथ -साथ मैंने ,अपनी बहन की राह में भी कांटे बोने चाहे किन्तु आज लगता है ,एक -एक कांटा उसके अंदर धंसता जा रहा है। 

दो बहनें ,जिन्हे नीलिमा ने बड़े परिश्रम से पाल -पोषकर बड़ा किया ,उनके सुंदर भविष्य की कल्पना की किन्तु आज दोनों की ज़िंदगी में हलचल मची है। नीलिमा को, यदि पता चला तो वह क्या करेगी ?आइये आगे बढ़ते हैं। 

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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