Sazishen [part 116]

आज पूजा से ,नीलिमा ने चम्पक के विषय में बात की। इतने वर्षों से ,वह अपने मन के तूफान को थामे हुए थी किन्तु आज नीलिमा ने ,उसके शांत मन में ,हलचल मचा दी। अभी वह अपने को संभालने का प्रयास कर ही रही थी , बेटा परम भी, अपने पिता के विषय में जानना चाहता है। पूजा ने कभी उसके पिता के विषय में उससे बुरा भी नहीं कहा। बालमन है ,मन में तरह -तरह की अटकलें लगाता रहता है। तब परम को लगता है ,शायद माँ ,मेरे पिता से नाराज है ,इसीलिए आज उससे यही प्रश्न करता है ,क्या आप ,मेरे पिता से नाराज़ हैं। 

पूजा मुस्कुराई और बोली -अपनों से ही, नाराज हुआ जाता है। 

 न जाने अचानक ये शब्द, उसके मुँह से कैसे निकल गए ?वह स्वयं भी  अचम्भित थी। 

किंतु इतनी दूर भी नहीं जाया जाता, कि उनसे कभी मिला ही न जाए मैंने तो कभी उनकी शक्ल भी नहीं देखी। यदि मेरे पिता ही, मेरे करीब से निकल जायें  तो मैं उन्हें पहचान भी नहीं पाउँगा। आपने कभी उनकी एक तस्वीर भी मुझे नहीं दिखाई।  

पूजा ,चंपक की तस्वीर तो तब दिखाती ,जब उसके पास चंपक की कोई तस्वीर होती ,जब चंपक उसे छोड़कर गया था और उसके साथ केेसा व्यवहार किया था ?सोचकर ही उसका ह्रदय फिर से घृणा से भर गया। तब उसने चंपक की सभी तस्वीरें, उसका फोन नंबर सब अपने फोन से हटा दिए थे। परम न जाने क्या -क्या बोल रहा था ?किन्तु पूजा का ध्यान उस ओर नहीं था। यह नाराजगी कभी-कभी इतनी बड़ी हो जाती है, न जाने ये जिंदगी, उन दूरियों को कभी दूर कर भी पायेगी या नहीं। पूजा का मन, परेशान हो उठा और वह बेटे के पास से उठकर अपने कमरे में आ गई।

 मन ही मन सोच रही थी -मैं क्या थी, क्या से क्या हो गई ? उसके लिए उसने अपना घर -बार छोड़ा, अपना परिवार छोड़ा और वह मुझे ही छोड़ कर चला गया। क्या उसकी इतनी बड़ी गलती माफी के लायक है  ? अपने आप से ही प्रश्न पूछ रही थी। नीलिमा की इन बातों ने उसके शांत मन में,हलचल मचा दी।  मैं पूजा नहीं [पैम ]थी , वही मेरा स्टाइल था। अब तो यह सब सोच  कर दुख ही होता है। न जाने चंपक, कैसा होगा ? नाम भी क्या रख लिया, चंपकलाल!' चंपक' ही ठीक था।अब कुछ भी रखे ,मेरी बला से ,सोचकर मन में आये उन विचारों को झटक देना चाहती थी। 

किन्तु विचार हैं ,कि सागर की लहरों की तरह,उसकी यादों में लौट जाने को आतुर हो रहे हैं। आज वह अपनी औलाद को ढूंढ रहा है, किंतु जब वह मुझे छोड़कर चला गया था, एक बार भी पलट कर नहीं देखा। सोच कर ही, उसे क्रोध आ गया, कुछ ऐसी यादें हैं, जो मन को झंकझोर देती हैं। कहते हैं- समय, मरहम का कार्य करता है, किंतु मैं तो जब भी इन बातों को स्मरण करती हूं, मेरे जख्म तो और हरे होने लगते हैं। उसकी तरफ से मेरा' बेटा और मैं ''जियूँ या मरूं'' उसे क्या ? वह तो हमें छोड़ कर चला ही गया था अब उसे औलाद की आवश्यकता है, तो वह मुझे ढूंढ रहा है। 

पंद्रह दिनों के पश्चात, नीलिमा फिर पूजा से मिली, कल्पना की जांच भी तो करवानी ही थी , किंतु आज पूजा उससे इस तरह नहीं मिल रही थी, जैसे पहले मिलती थी।वह उससे नजरें चुरा रही थी। नीलिमा को थोड़ा अजीब सा लगा, तब नीलिमा ने पूछा -कहीं, आप मेरी उस बात से नाराज तो नहीं हो गई हैं। देखिए ! मेरा उद्देश्य आपको परेशान, करने का नहीं था किंतु मेरा उद्देश्य यह अवश्य था कि यदि आप चंपक की पूजा होतीं  तो कितना अच्छा होता ? दो बिछुड़े प्रेमी मिल जाते, बरसों से वह उनकी तलाश में है, आप उसकी पूजा नहीं हैं , आपको तो बुरा मानने का, हक़ ही नहीं बनता है। 

सही कह रही हैं- जब मैं उसकी पूजा ही नहीं हूं, तो मुझे,उससे नाराजगी कैसी ? किंतु मैं आपसे पूछती हूं, यदि आपके साथ ऐसा हुआ होता कि आप गर्भवती हैं, और ऐसे में जिसके सहारे अपनी सम्पूर्ण दुनिया भुला दी हो ,अब आपके लिए वही,आपकी सारी दुनिया बना बैठा है। वही आपको छोड़कर चला जाए तो आप, क्या करेंगीं ?

 कुछ ऐसी ही, दर्द भरी यादें हैं , जिनको भुलाया नहीं जा सकता, किंतु समय के साथ अपने को बदलना  पड़ता है, और समय के साथ ही, समय से टक्कर भी लेनी पड़ती है। यही जीवन है, आज हमारे साथ परेशानी है, कल बच्चों के साथ होगी किंतु हमें अपनी समझदारी से, उन रिश्तों को बनाए भी रखना है और उन्हें सुलझाना भी है, तोड़ने से तो कार्य नहीं बनता है। कहते समय ,नीलिमा को धीरेन्द्र का स्मरण हो आया।

  यदि आप सच में ही ,चंपक की पूजा होतीं तब मैं आपसे यही कहती -आपने जो झेला ,परेशानियां देखीं,आपकी नाराज़गी अपनी जगह सही है किंतु आपके बेटे ने तो कोई गलती नहीं की, उसका तो कोई दोष नहीं है। उसे किस जुर्म की सजा मिल रही है ? जो वह अपने पिता का भी चेहरा भी  देखने को तरस जाये या फिर उसे इस बात का एहसास कराये ,कि सब कुछ होते हुए भी वो अनाथों वाली ज़िंदगी जी रहा है। ऐसे में बच्चे को ,अपने पिता के विषय में जानने की इच्छा होगी ,उसने उसे न जाना ,न परखा ,तुम्हारे साथ जो हुआ ,उसे समझ भी नहीं सकता। तब तुम, उसकी नजरों में खलनायिका बन जाओगी। इन परिस्थितियों में यदि कोई उसे तुम्हारे विरुद्ध भड़कायेगा ,तो उस पर उसकी बातों का शीघ्र ही असर होगा क्योंकि वह सच्चाई नहीं जानता। 

उसे यह जीवन मैंने दिया है ,चम्पक को तो परम के आने की ख़ुशी ही नहीं हुई बल्कि उसने मुझसे गर्भपात करवाने के लिए कहा। वो उसे और मुझे अपनाना ही नहीं चाहता था। मुझे ही मालूम है ,मैंने क्या कुछ नहीं सहा ? जोश में आकर पूजा ने स्वीकार कर लिया कि वही चम्पक की पूजा है। 

यह देखकर नीलिमा अपनी चतुराई पर मुस्कुराई ,और सोचने लगी - मेरा अंदाजा सही था,तब पूजा को समझाते हुए बोली - सब तुम्हारे जैसे नहीं होते। हम दोनों की जिंदगी में जो लिखा था ,वह हम झेल चुके हैं, बच्चों को क्यों उसे जोड़ा जाए ? क्या आप जानती हैं , उसने ''अनाथ आश्रम' भी इसलिए खोला था, कि  चंपक से पूजा ने कहा था कि जब तुमने ही इसे नहीं अपनाया तो मैं भी इसे अपने पास नहीं रखूंगी , तब चंपक ने सोचा-' शायद, मेरा बच्चा किसी 'अनाथ आश्रम' में ही हो या फिर हमारे ही' अनाथ आश्रम 'में आ  जाए। उसे सड़कों पर धक्के न खाना पड़े। तुमने देखा ,अपने बच्चे की चाहत में ,उसने कितने अनाथ बच्चों को छत दे दी। 

जब तक परम पैदा नहीं हुआ था, तब तक मैंने भी, यही सोचा था, किंतु जब मैं मां बन गई,उसका वो मासूम चेहरा देख ! मुझसे अपने कलेजे के टुकड़े को, अपने से दूर नहीं किया जा सका, मैंने अनेक परेशानियां झेलीं। कुछ दिनों के लिए ,मेरी  पढ़ाई भी छूट गई थी और तब मैं अपने किसी सहेली के यहां चली गई थी, जिसने मेरी देखभाल की , और मेरा साथ दिया। तब मैंने अपने बेटे के लिए, उस पढ़ाई को पूरा किया और उस बच्चे को पाला।  मैं ही जानती हूं ,मैंने  किन परिस्थितियों  का सामना किया ,घर वालों ने भी मुझसे मुंह मोड़ लिया था। 

मेरा अंदाजा सही निकला, आप ही चंपक की पूजा हैं।

अब मैं , चंपक की पूजा नहीं हूँ,'परम' की माँ हूँ , किंतु मैं आपकी इस बात से सहमत हूं कि मुझे परम को उससे दूर रखने का कोई हक नहीं है इसलिए मैं परम को उसके पिता से मिलवा दूंगी।

 यह तो उस पर ,बहुत बड़ी मेहरबानी होगी।उस ख़ानदान को उस घर का वारिस मिल जायेगा। जिसके नसीब में जो होता है ,मिलकर ही रहता है ,इस बात को आप नहीं मानती होंगी तो अब मान जाएँगी। आपके बेटे परम को ही उस परिवार का वारिस बनना था ,तभी उनके कोई औलाद नहीं हुई। इसे परम की किस्मत भी कह सकते हैं। 

 यह मेहरबानी में चंपक पर नहीं कर रही हूं, अपने बच्चे  का भविष्य सोचकर कर रही हूं, इसमें उसकी क्या गलती है ? एक बात कहूं , इंसान, बहुत स्वार्थी जीव है , आज उसे परम की याद आ रही है, उसे ढूंढता है किंतु यदि  उसके, अपनी पत्नी से बच्चे हो गए होते , तो वह हमें नहीं तलाशता। 

एकदम सत्य कहा !तभी तो मैं कह रही थी -इसे परम की किस्मत कह सकते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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