मन ही मन, नीलिमा प्रसन्न हो रही थी, चलो ! मेरे कारण दो बिछड़े हुए ,दिल तो मिल ही गए। जब कल्पना और नीलिमा को यह बात पता चली, तो वे दोनों भी , इस बात से अत्यंत प्रसन्न हुईं। दरअसल हुआ यूँ था -गर्भवती होने पर कल्पना को जब परेशानी हो रही थी ,तब वह अपनी मां के पास आ गई थी, और वहीं से वह, उस डॉक्टरनी से भी मिली। डॉक्टर पूजा ! से बार -बार मिलने पर और बातचीत करते हुए, उनके आपस में पारिवारिक संबंध हो गए। एक दिन जब नीलिमा को पता चला ,पूजा अकेली है और उसका एक बेटा भी है। तब न जाने क्यों ?नीलिमा को लगा ,ये कहीं चम्पकलाल की पूजा ही न हो ,वो वर्षों से उसे ढूंढ़ रहा है। उसकी पूजा भी तो डॉक्टर की पढ़ाई कर रही थी।
एक दिन बातों ही बातों में, नीलिमा ने पूजा से पूछ ही लिया - क्या तुम कभी हरिद्वार में कहीं गयी हो या तुम हरिद्वार में भी रहती थीं , या कहीं आस -पास ,क्या आप वहां किसी को जानती हैं ?
नहीं तो.... क्यों ,आप ये सब मुझसे क्यों पूछ रही हैं ,आपको क्या लगता है ? डॉक्टर पूजा ने पूछा।
कुछ नहीं, एक पूजा की तलाश ! हमारी संस्था के, संस्थापक '' चंपकलाल जी'' को भी थी। यह नाम नीलिमा ने जानबूझ कर लिया था। बेचारे !उससे बहुत प्रेम करते थे। उसकी तलाश में कहाँ -कहाँ नहीं भटके ?
उसके इस अंदाज का, पूजा पर असर भी हुआ, 'चंपकलाल' का नाम सुनकर, पूजा चौक गईं और बोली -मैं किसी चंपकलाल को नहीं जानती।
नहीं, मैं आपसे कह नहीं रही हूं, मैं तो उनकी प्रेमिका पूजा के लिए परेशान हूं। वे लोग जब मिले थे ,जब पूजा और वह डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे। समय ने उनके साथ, बहुत बड़ा धोखा किया। बेचारे ! दोनों प्रेमी मिल नहीं पाए। पूजा, कल्पना को देख चुकी थी किंतु वह नीलिमा की कहानी सुनने के लिए उत्सुक थी इसीलिए वहीं बैठी रही। नीलिमा भी उसको जानबूझकर, चंपकलाल की कहानी बताती रही -माता-पिता के दबाव के कारण, चंपकलाल ने, विवाह तो कर लिया किंतु वह अपनी पूजा को भुला नहीं पाया। उसे बाद में एहसास हुआ, कि उसने पूजा के साथ-साथ ही, अपने कुल के 'बीज' को भी खो दिया है। उसने पूजा और अपने बच्चे को बहुत ढूंढने का प्रयास किया किंतु दोनों नहीं मिले।
तभी नीलिमा कहानी के बीच में ही रुक गई और बोली -अरे डॉक्टर साहिबा !आपको तो जाना था, मैं भी न जाने ,किसकी कहानी को लेकर बैठ गई आपको तो देरी हो गई हो रही होगी।
नहीं, नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, किंतु मेरी एक बात समझ में नहीं आई, चंपकलाल का तो विवाह हो गया था न...... तब उसे पूजा की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
चंपकलाल ने अपने माता-पिता के दबाव में आकर, विवाह तो कर लिया था, किंतु बहुत सालों तक उनके कोई संतान नहीं हुई ,बहुत से पीर -फकीरों को दिखाया। गंडे -ताबीज़ बंधवाये ,डॉक्टरी की शिक्षा ग्रहण करने वाला लड़का ,इन सभी अन्धविश्वास में घिर गया। जिसके कारण उस पर मानसिक दबाब बढ़ रहा था ,यही हालत उसकी पत्नी की भी थी। घर का व्यापार को संभालने का दबाव अधिक पड़ रहा था ,उधर कोई भी संतान न होने के कारण, दोनों पति -पत्नी परेशान थे।
न जाने किसका श्राप लगा था ? उसकी पत्नी की मानसिक स्थिति बिगड़ती जा रही थी। एक -दो बार, वह गर्भवती हुई भी किंतु एक -दो माह होते ही ,तुरंत गर्भपात भी हो गया। कई लोग तो यही कहने लगे, किसी का श्राप लगा हुआ है। तब चंपकलाल को बच्चों की कीमत का एहसास हुआ, और अपने उस अनदेखे, बच्चे की तलाश में भटकने लगा। उसे न ही पूजा मिली और न ही ,वह बच्चा !
अच्छा !अभी मैं चलती हूं, कहते हुए पूजा ने अपना, सामान उठाया और बाहर निकल गई। उसकी आंखों में आंसू थे, मन ही मन सोच रही थी -उस समय तो चंपकलाल ने मेरी एक भी नहीं सुनी थी, और मुझे छोड़कर आ गया था। ये, यह नहीं जानती, उसने अपने परिवार के दबाव में नहीं, बल्कि उसे नई लड़की मिल गई थी, मुझसे मन भर गया था, इसलिए उसने मुझे छोड़ दिया था। उसने और लोगों को कितनी झूठी कहानी सुनाई होगीं ? मैं कभी भी, उसके बेटे से उसे मिलने नहीं दूंगी। उसने मुझे बहुत सताया है ,मुझे ऐसे समय में छोड़कर चला गया, जिस समय मुझे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। उसने यह नहीं बताया, कि वही झूठा और मक्कार था। लोग अपने स्वार्थ के लिए, कितने झूठे हो जाते हैं ,अब उसे जरूरत है तो उस बच्चे को तलाश रहा है ,मुझसे छीन लेना चाहता है. किंतु मैं उसे कभी भी ,अपने बेटे से मिलने नहीं दूंगी। दृढ़ निश्चय के साथ, उसने अपने आंसू पोंछें और वह बिस्तर पर लेट गई, चंपक मैंने तुम्हें कितना चाहा था ? मैं तुम्हारे बगैर अपनी ज़िंदगी सोच भी नहीं सकती थी। अपने घरवालों को भुला दिया, अपना तन -मन सब सौंप दिया किन्तु मुझे तुमसे क्या मिला ?बेवफाई !धोखा ! रोते -रोते न जाने वह कब सो गई ?
फोन की घंटी की आवाज से, वह हड़बड़ा कर उठी, उसने फोन देखा, उसके बेटे, परम का फोन था।
हेलो! पूजा ने फोन उठाया।
क्या ? मम्मी !आप कितनी गहरी नींद में सो रही हैं ,मैं इतनी देर से डोर बेल बज रहा हूं , आपने दरवाजा ही नहीं खोला। ओह ! घबराते हुए वह फुर्ती से उठी, और दरवाजा खोलने चली गई। दरवाजा खुलते ही, परम ने पूछा -आपकी तबीयत तो ठीक है।
हां, मेरी तबीयत को क्या हुआ है ? थोड़ी सी थकावट महसूस हो रही थी, बस लेट गई और लेटते ही नींद आ गई।
क्यों, आज संगीता नहीं आई ?
नहीं ,उसके यहां रिश्तेदारी में किसी का विवाह है ,वह विवाह में गई है। कहते हुए वह रसोई घर में गई और बेटे के लिए दूध और अपने लिए चाय बनाने लगी।
मां के हाथ में दूध देखकर परम बोला -क्या मम्मी ! आप अभी भी मेरे लिए दूध ही बना देती हैं ,अब मैं बड़ा हो गया हूं।
तभी तो तुझसे जूस पीने के लिए कहती हूं ,इसीलिए जूस भी पिया कर......
दूध की बात करते ,जूस की बातें करने लगीं ,आप ठीक तो हैं , मेरे दोस्त भी मुझ पर हंसते हैं और कहते हैं -''दूध पीता बच्चा''
उन्हें कहने दो ! मेरे लिए तो तुम मेरे बच्चे ही रहोगे, यह सेहत के लिए अच्छा होता है।
और आप यह जो चाय -कॉफी पीती हैं ,पूजा की चाय की तरफ इशारा करते हुए , परम ने पूछा।
वह तो थकावट दूर करने के लिए है, अभी तुम इतने बड़े भी नहीं हुए कि चाय और कॉफी पर निर्भर हो जाओ ! तुम्हारे पापा कभी भी, कॉफी नहीं पीते थे।
आप उनके विषय में मुझे बताती तो हो, लेकिन कभी उनसे मिलवाया नहीं है।
बस, इतना समझ लो ! तुम एक बड़े खानदान की वारिस हो, जब समय आएगा मिल भी लोगे।
क्या आप मेरे पिता से नाराज हैं ? परम ने अपनी माँ की तरफ देखा।
पूजा, अपने बेटे परम को क्या जबाब देती है ?आइये !आगे बढ़ते हैं।
