Sazishen [part 113]

सर्दी का मौसम था, 'जावेरी प्रसाद 'जी के घर में अचानक से ही, पुलिस का आगमन होता है। यह देखकर सब, आश्चर्यचकित हो जाते हैं। जब पुलिस घर में प्रवेश करती है, तब पता चलता है, कि जावेरी प्रसाद जी ने ही, अपनी पत्नी के गायब होने की, पुलिस को सूचना दी थी। उन्होंने ही पुलिस थाने जाकर रिपोर्ट लिखवाई थी। पुलिस छानबीन कर रही थी, किंतु कुछ भी हाथ नहीं लग रहा था। पहले घरवालों से ही पूछताछ की  जाती है, तब इंस्पेक्टर  जावेरी  प्रसाद जी से पूछता है -आपकी पत्नी कब से गायब है ? 

उसे लगभग पंद्रह दिनों से गायब है। 

आपकी पत्नी पंद्रह दिनों से, गायब है और आपने उसकी रिपोर्ट कल लिखवाई है,जावेरी प्रसाद को उसकी लापरवाही का एहसास दिलाते हुए इंस्पेक्टर कहता है।  

साहब !अभी तक तो मैं यही सोच रहा था -शायद ,अपने मायके गई होगी या अपनी सहेलियों के संग गई होगी, अक्सर वह ऐसे चली जाती है, किंतु पंद्रह दिन होने को आए, उसका फोन भी नहीं लग रहा है ,तब मुझे शक हुआ,कहीं उसके साथ कुछ गलत तो नहीं हो गया। 

 तभी इंस्पेक्टर साहब ने, एक छोटे से बच्चे को पालने  में खेलते हुए देखा, उसकी तरफ देखते हुए इंस्पेक्टर विकास खन्ना बोला - यह आपका पोता है, या पोती !

जी ,यह मेरा पोता है, अभी छह  माह  का ही तो हुआ है। 

इसकी मां कहां है ?

 वह रसोई घर में होगी, या किसी कार्य में व्यस्त होगी।

मुझे उससे मिलना है। 

उस बेचारी को क्या मालूम ! सारा दिन बच्चे में लगी रहती है , जावेरी प्रसाद जी कल्पना के प्रति सहानुभूति से बोले। 

वह तो ठीक है, किंतु हमें अपनी छानबीन तो करनी ही होगी , वैसे आपकी बेटे की बहू का व्यवहार आपकी पत्नी के साथ कैसा था ?

जैसा अक्सर सास -बहू में होता है ? चांदनी भी कम उम्र की थी, वह कल्पना को पसंद नहीं करती थी। उसके व्यवहार के कारण मेरा बेटा भी, अलग घर में रहता था किंतु जब से कल्पना आई, वह घर पर ही  रहने लगा ,मेरा पोता भी हो गया, मेरा घर खुशियों से भर गया किंतु चांदनी कल्पना से, प्रसन्न नहीं थी। दरअसल बात यह है, कि वह मेरे बेटे की सगी माँ नहीं है। मैंने  अभी कुछ वर्षों पहले ही, चांदनी से विवाह किया है ,वह मुझे हरिद्वार में मिली थी। 

क्या बात कर रहे हैं ? हरिद्वार में ही मेरी पोस्टिंग भी थी, अब यहां मेरा तबादला हुआ है। मैं जान सकता हूं आपकी पत्नी का क्या नाम था ?'' चांदनी '' इंस्पेक्टर विकास खन्ना सोचता है ,हरिद्वार में तो कोई चांदनी नाम की लड़की नहीं थी। हो सकता है ,कोई और हो ,मेरी पहचान में तो नहीं है। 

तब तक कल्पना भी आ जाती है, जी !सर कहिए !

जब तुम्हारी सास गई, क्या वह तुमसे कुछ कह कर गई थी ? या फिर घर में कुछ झगड़ा वगैरह हुआ था।

 हम दोनों में बातचीत ही कम होती थी वह अपने कार्य में व्यस्त रहती थीं और मैं अपने कार्य में, न ही मैं  उनसे कोई उम्मीद कर सकती थी कि मेरे किसी भी कार्य में मेरा सहयोग करेंगीं । न ही मैं ,उन्हें कहीं आने -जाने से टोकती थी, और न ही उनका हस्तक्षेप पसंद करती थी ,मुझे इतना समय ही नहीं था। 

उनका व्यवहार तुम्हारे प्रति ऐसा क्यों था ?

अब ये मैं क्या बता सकती हूँ ?ये तो आप उनसे ही पूछ लीजियेगा। वे तो इस घर के बेटे को भी पसंद नहीं करती थीं , इसी कारण से तुषार, किराए के मकान पर अलग रहते थे किंतु पापा जी के कहने पर, मैं उसे इस घर में लेकर आई, ताकि सभी लोग मिलजुल कर रहें। 

तुमने उनसे कभी पूछा नहीं, कि वह तुमसे क्या चाहती हैं ?

ऐसी नौबत ही नहीं आई, उनके व्यवहार ने ही सब कुछ कह दिया , वह नहीं चाहती थीं  कि हम लोग यहां रहें।  

क्या घर में बाहर का कोई सदस्य आया था ?

जी नहीं, हम लोग ही हैं। 

तुम्हारा मायका कहां से है ?

अब तो कई वर्षों से हम यहीं रह रहे हैं, वैसे जब पापा जिंदा थे, तब हम लोग' हरिद्वार' में रहते थे। 

कल्पना की बात सुनकर इंस्पेक्टर, चौंक गया और बोला -क्या तुम जानती हो, तुम्हारी सास भी वहीं से है। 

जी...... यह तो मात्र एक संयोग है। 

क्या तुम लोग पहले से ही, एक दूसरे को जानते थे ?

कल्पना ने अपने ससुर की तरफ देखा और बोली - नहीं, वह तो मुझसे  पहले विवाह करके ,इस घर पर आई हैं। 

तुम्हारे माता-पिता का क्या नाम है ?

इस बात से मेरे माता-पिता का क्या लेना देना ? वैसे मैं बता देती हूं, कि मेरे पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। माँ  है ,वह हमारे साथ ही रहती हैं। 

ओह ! माफ कीजिए ! मुझे मालूम नहीं था। 

जावेरी प्रसाद की तरफ देखते हुए बोले -आपकी पत्नी ने,जाने से पहले आपसे कुछ कहा था। 

वो कब और कहाँ गयी ?मुझे पता ही नहीं है ,वो अक्सर बिना कहे ही चली जाती थी। जब वो गयी ,मैं घर पर नहीं था। अभी तो आपको बताया , उसने मुझे कुछ नहीं कहा था। हमने सोचा- वह बाहर या किसी पार्टी में, या अपने मायके गई होगी किंतु जब ज्यादा समय हो गया, और उसका फोन भी नहीं लग रहा है , तब मैंने सोचा- अवश्य ही, उसके साथ कुछ हुआ है। आप मेरी पत्नी को ढूंढ दीजिए !

हम पूरा प्रयास करेंगे। उनकी कोई तस्वीर आपके पास होगी। 

जी...... कहते हुए, जावेरी प्रसाद जी ने एक तस्वीर, उनकी तरफ खिसका दी। वैसे एक तस्वीर मैंने थाने में भी जमा की हुई है। 

हाँ ,किन्तु मैं उसे देख नहीं पाया ,इंस्पेक्टर विकास खन्ना ने जब उस तस्वीर को देखा तो वह चौंक गया, यह चेहरा कुछ जाना -पहचाना सा लग रहा है किंतु याद नहीं आ रहा कहां देखा है ? क्या ,आपका बेटा यहीं पर है ? 

जी नहीं, वह अपने काम पर गया है। 

घर में कोई नौकर हो, तो उसे भेज दीजिए। 

जी ,एक नौकरानी है, वह बहू के साथ, कार्य करवाती है ,कहते हुए उन्होंने आवाज़ लगाई -दमयंती ! जरा इधर आओ ! इंस्पेक्टर साहब कुछ पूछना चाहते हैं। 

नहीं, मैं उसे अकेले में ही, बात करना चाहूंगा , कहते हुए वह अंदर की ओर बढ़ गया। तब दमयंती को एक कुर्सी पर बैठाकर उससे पूछा- तुम्हारी मालकिन कैसी थी ? 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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