Sazishen [ part 112]

आज' जावेरी प्रसाद जी' के महल जैसे घर में ,खूब धूमधाम हो रही है। घर को, छोटे -छोटे बल्बों की रौशनी  से सजाया गया है।सम्पूर्ण घर में जैसे खुशियां लहरा रहीं हैं ,हर किसी के चेहरे पर प्रसन्नता छाई है।  बात ही कुछ ऐसी है ,'जावेरी प्रसाद जी' दादा जी जो बन गए हैं। इतनी मुद्दतों के बाद ,उन्हें यह प्रसन्नता हासिल हुई है। उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है ,खुशी के कारण, सभी नौकरों से, घर की सजावट उसकी देखरेख, बहू और पोते के, स्वागत की तैयारी करवा रहे हैं। उनका इकलौता बेटा जो उनसे दूर होता जा रहा था ,वह उनके घर भी आ गया और अब वह एक पोते के दादा भी बन गए हैं। मन ही मन सोच रहे थे -'जब से कल्पना बिटिया आई है, तब से मेरे घर में खुशियां बढ़ती ही जा रही हैं।'' चांदनी से ,कल्पना के स्वागत की तैयारी में किसी भी प्रकार की कमी न हो ,कहकर कमरे से बाहर आ गए। 


उनकी फरमाइश सुनकर ,चांदनी को क्रोध तो आया किंतु अभी कुछ कर भी तो नहीं सकती थी, मौका भी ऐसा है, यदि वह कुछ कहेगी भी , तो 'जावेरी प्रसाद जी' का अविश्वास ही उसे मिलेगा। वह चुपचाप कल्पना और उसके बेटे की आने की तैयारी करती है। तुषार भी बहुत प्रसन्न है, उसके तो अब दोनों हाथों में लड्डू हैं किंतु बहुत दिन हो गए ,अभी वह शिवांगी से नहीं मिला है ,उस दिन के पश्चात , न जाने उसे क्या हुआ है ? वह उससे कटने लगी है। कई बार फोन कर चुका हूं, किंतु फोन ही नहीं उठा रही है। आज तो वह मौसी बन गई, कल्पना के साथ, अस्पताल में मिली थी। देखकर नज़रें चुराने लगी , न जाने उसके मन में क्या चल रहा है ?

पहले तो स्वयं ही आगे बढ़ रही थी , अपने प्रेम की कसमें खाती थी किंतु अब न जाने क्यों मुझसे  कतराने लगी है। जब अस्पताल में उसने शिवांगी को देखा, उसे देखकर अपने को रोक न सका और उसे पकड़कर  कोने  में ले गया, और उससे पूछा -आखिर तुम चाहती क्या हो ? क्या मैं तुम्हारी बहन को धोखा दूं। उसके विश्वास को तोड़ दूं। 

उससे अपना हाथ छुड़ाने हुए शिवांगी बोली- मैं कुछ भी नहीं चाहती हूं , जो हो गया ,उसे भूल जाओ !

कैसे भूल जाऊं ? जब मैं आगे बढ़ना नहीं चाहता था, तो तुम लिपटती  थीं  और जब मैं, आगे आया हूं तो तुम पीछे जा रही हो। शिवांगी चुपचाप उसकी बातें सुन रही थी , जवाब क्यों नहीं दे रही हो ?

मैंने कुछ और ही सोचा था, मुझे लगता है ,वह मेरी गलती थी कह कर वह आगे बढ़ गई। 

तभी तुषार ने उसका हाथ पकड़ कर उसे फिर से पीछे खींच लिया और बोला -तुम ऐसा क्यों कर रही हो ?

आगे बढ़ने का प्रयास कर रही हूं, अपने इस झूठे, खोखले रिश्ते से, निजात पाना चाहती हूं।

 यह हमारा रिश्ता झूठ और खोखला कैसे हो सकता है ?

ऐसे ही जैसे कि तुम हो, उसकी तरफ देखते हुए शिवांगी बोली -मैंने तुमसे कहा था -'मैं तुमसे प्रेम करती हूं, क्या तुम भी मुझसे प्रेम करते हो ? ''या मेरा इस्तेमाल ही कर रहे हो , तुमने कभी सोचा है, कि मेरी जिंदगी का क्या होगा ? तुम मुझे अपनाओगे नहीं, न ही ,मुझसे शादी करोगे , न ही ,दीदी को छोड़ सकते हो। मैं एक नाजायज रिश्ते में बंधकर रह गई हूं ,क्या यही मेरी जिंदगी है ?

शिवांगी की बात सुनकर ,अब तुषार को क्रोध आ गया, और बोला -इस रिश्ते में जबरदस्ती तुम ही बंधी थी मैंने नहीं बांधा था। तुम पहले से ही जानती थी कि मैं कल्पना से प्रेम करता हूं, किंतु तुम जबरदस्ती मेरे करीब आने का प्रयास करती रहीं , क्या तुम नहीं जानती थीं ? बोलो ! मैं कुछ पूछ रहा हूं। 

हां जानती थी, किंतु......  कुछ सोच कर वह चुप हो गई। वह कह देना चाहती थी -कि वह इस, रिश्ते से , अलग हो गई थी रिश्ते से क्या वह तो इस जिंदगी से ही, अलग हो जाना चाहती थी किंतु उसकी, सौतेली मां ने ही, उसे अपना अधिकार पाने की सलाह दी, जिसके कारण में आज इस दोराहे पर खड़ी हो गई हूं किसी की भी जिंदगी में ,मेरा कोई वजूद नहीं है , अनेक विचार उसके मन में आ जा रहे थे।  

तुषार उसके जवाब की प्रतीक्षा कर रहा था ,क्या हुआ ?अब तुम्हारे पास कोई जवाब नहीं है। 

शिवांगी की आंखों में आंसू भर आए, और बोली -यह मेरी ही जिद थी, मैं तुम्हें पाना चाहती थी। तुमसे प्रेम जो करने लगी थी ,आज से ही नहीं, बरसों से, जब हम दोनों साथ में, विदेश में रह रहे थे, किंतु कभी मैंने तुमसे कहा नहीं, मैंने सोचा -'जब मेरी पढ़ाई पूरी हो जाएगी ,तब मैं तुम लोगों से बात करूंगी ,तुम लोगों से मतलब मम्मी से और तुमसे भी बात करूंगी किंतु यहां आकर देखा तो मेरी दुनिया ही बदल चुकी थी। अब मैं क्या कर सकती हूं ?शिवांगी  बेबसी से बोली। 

अब तक तो सब ठीक चल रहा था फिर अचानक तुम्हें ऐसा क्या हो गया कि तुम इतना बदल गई तुम्हारे विचारों में इतना परिवर्तन आ गया क्या अब तुम्हें मुझसे प्रेम नहीं रहा। 

मुझे तो प्रेम है, किंतु तुम्हें नहीं ,तुम मेरे करीब रहना चाहते हो , मुझे पाना चाहते हो किंतु मुझसे  प्रेम नहीं करते, मैं जबर्दस्ती ही तुम दोनों के बीच में आ गई। 

अभी तक तो सब अच्छा चल रहा था, फिर यह बेफिजूल की बातें क्यों लेकर बैठ गई ? परेशान होते हुए तुषार ने पूछा। 

अब तक जो भी चल रहा था, अच्छा ही तो नहीं चल रहा था, तुम दोनों के मध्य मेरा कोई वजूद ही नहीं है। मेरे इस रिश्ते का कोई नाम ही नहीं है , कब तक मैं ऐसे तुम्हारे साथ रहूंगी? बोलो कब तक ? कल को मम्मी यदि मेरा विवाह करती हैं , तो मैं क्या कहूँगी ?

कह देना, मैं विवाह ही नहीं करना चाहती। 

कारण नहीं जानना चाहेंगी , कुछ दिन पश्चात ,बहन भी दबाव देने लगेगी। इतना तो मैं भी समझती हूं उसने मुझे अपने घर से क्यों निकाला? क्योंकि उसे भी एहसास हो गया था , हम दोनों के बीच कहीं कुछ गलत चल रहा है और जब मैं विवाह से इनकार कर दूंगी तो क्या वह, समझेगी नहीं ? क्या हमारे रिश्ते के लिए तुम उसे तलाक दे दोगे। जब वह पूछेगी ,कि तुम मुझे तलाक क्यों दे रहे हो ? क्या तुम्हारे पास कोई जवाब है ? क्या तुम सीना ठोककर  कह सकते हो , मैं तुमसे नहीं , शिवांगी से प्रेम करता हूं। यदि तुम लोगों का रिश्ता टूट भी जाता है तो उस बच्चे का क्या होगा ? जो अभी इस दुनिया में आया है। जब उसे हमारे रिश्ते के विषय में पता चलेगा,क्या उसके मन में, तुम्हारी तरह ही, घृणा के भाव पैदा नहीं हो जाएंगे। जैसे तुम अपनी इस सौतेली मां से करते हो, मैं तो उसकी सौतेली मां भी नहीं रहूंगी। मेरा तो कोई रिश्ता ही नहीं रहेगा ,जिन रिश्तों को मुझ पर विश्वास है ,वो भी समाप्त हो जायेगा। 

न जाने कैसी बातें तुम निकालकर ला रही हो ? पहले  यह सब क्यों नहीं सोचा था ? 

नहीं सोचा था, इसीलिए तो गलती हो गई, किंतु मैं उस गलती को दोहराना नहीं चाहती हूँ ,कहकर वह आगे  बढ़ गई। तुषार न जाने ,उसके विषय में क्या-क्या सोचे  बैठा था ? अचानक उसे लगा, जैसे कुछ छूटता जा रहा है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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