प्रेम कब तक सरस्वती की रखवाली करता ? बहते जल को कब तक रोका जा सकता है ? उसका कार्य बहना ही है और वह अपने लिए कहीं न कहीं से मार्ग निकाल ही लेता है। सरस्वती भी, ऐसा ही कुछ कर रही थी , अब प्रेम घर पर ही रहने लगा था। जब वह इस बात से संतुष्ट हो जाता कि 'अरशद' के आने की उम्मीद ही नहीं है, तब कभी-कभी कॉलेज चला जाता। हालांकि यह सरस्वती को बहुत बुरा लग रहा था, किंतु उससे ज्यादा कुछ कह भी नहीं सकती थी वरना वह घर में भी ,बता सकता है और वह उसे यह दिखाने का प्रयास कर रही थी कि वह अरशद से नहीं मिलती है। अब तक तो प्रेम से छुपा था, किंतु अब तो उसने प्रेम के सामने ही कह दिया है-' कि वह अरशद से प्रेम करती है , और उसी से विवाह करेंगी। प्रेम के लिए तो , सरस्वती की चौकीदारी करनी रह गई किंतु सरस्वती भी कहां मानने वाली थी ? वह अरशद से बाहर मिलने लगी, जिसकी प्रेम को भनक भी नहीं थी। वह दफ्तर से छुट्टी लेकर, या कभी -कभार दफ्तर के बहाने जाकर, अरशद से मिलती।
अचानक गांव से फोन आ गया, प्रेम को पता चला कि माता-पिता ने एक लड़का ढूंढ लिया है। अच्छा -परिवार है, लड़का किसी बड़ी कंपनी में कार्यरत है और उन्होंने बताया -एक सप्ताह पश्चात, लड़के वाले, सरस्वती को देखने आ रहे हैं। प्रेम जानता था, इस चीज के लिए सरस्वती तैयार नहीं होगी किंतु उसे तैयार तो करना ही होगा। उसे अब लग रहा था -कि दीदी को बहुत ज्यादा छूट देकर हमने, बहुत बड़ी गलती कर दी, इतना विश्वास भी नहीं करना चाहिए था। यही सोचकर, वह दीदी से कहता है -अगले सप्ताह , घर में पूजा है और घर वालों ने, पूजा में सम्मिलित होने के लिए बुलाया है।
तुम चले जाओ !मैं तो नहीं जा पाऊंगी, सरस्वती बोली।
क्यों नहीं जा पाओगी ?
यह क्या बात हुई ? नहीं जा पाऊंगी तो नहीं जा पाऊंगी।मेरी इच्छा नहीं है ,मुझे नहीं जाना।
घर में पूजा है, क्या हमें जाना नहीं चाहिए ? यदि मैं अकेला चला भी जाता हूं तो क्या घर वाले नहीं पूछेंगे -कि सरस्वती क्यों नहीं आई ?
कह देना ,उसे दफ्तर में ,कुछ काम था।
वह हमारे माता-पिता हैं ,बेवकूफ नहीं है, उस दिन छुट्टी है। तुम्हें मेरे साथ चलना ही होगा ! तैयार हो जाना।
मन ही मन सरस्वती बुदबुदाई -क्या जबरदस्ती है ? मुझे कल ही उससे मिलने जाना होगा ,कल अरशद के साथ ,घूमने जाने का बहाना कर कल ही, उससे विवाह की बात करूंगी। अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं होता। प्रेम कुछ ज्यादा ही करने लगा है ,ऐसे में, सरस्वती को ,प्रेम भी दुश्मन नजर आने लगा है। सोचती है, प्यार करने वालों की तो दुनिया पहले से ही दुश्मन रही हैं। यह कोई नई बात नहीं है, इसका नाम प्रेम है किंतु प्रेम के विषय में कुछ भी नहीं समझता।
अगले दिन ऑफिस से निकलते समय, सरस्वती ने अरशद को फोन किया और पूछा -तुम कहां हो ?
कहां हो सकता हूं , अपनी दुकान पर ही हूं।
मुझे तुमसे मिलना है, बहुत जरूरी बात करनी है।
क्या कहना चाहती हो ?
यह बात मिलकर ही होगी।
ठीक है मैं आधा घंटे में, के.पी. मॉल पहुंचता हूं, तुम मुझे वही पर मिलना।
सरस्वती मॉल में पहुंचती है, कुछ देर पश्चात उसे ढूंढते हुए अरशद भी आप पहुंचता है।
क्या बात है ?कुछ परेशान नजर आ रही हो।
हां ,परेशानी तो है ही, प्रेम को अब हम पर शक हो गया है। अब वह कॉलेज भी कम ही जाता है।घरवाले अब विवाह के लिए लड़का ढूंढने में लगे हैं।
ढूंढने दो !बाद में तो हम दोनों की ही शादी होगी।
बाद में कब ?जब वो लोग लड़का ढूंढकर रिश्ता तय कर देंगे। इस सप्ताह गांव में पूजा भी है मुझे वहां जाना होगा। मैं सोच रही थी -कि अब हमें विवाह कर लेना चाहिए। मुझे डर है ,कहीं वह मम्मी- पापा के सामने, अपना मुंह ना खोल दे !
मुंह खोल दिया तो क्या हो जाएगा, एक न एक दिन तो उन्हें पता ही चल ही जायेगा।
नहीं ,मैं नहीं चाहती हूं कि घर वालों को अभी कुछ भी पता चले।
तो तुम क्या चाहती हो ?कहो !तो तुम्हारे भाई को उठवा दूं।
तुम यह क्या कह रहे हो ? हालांकि वह हमारे प्यार का दुश्मन है लेकिन मेरा भाई है।
तुम हमारे प्यार के लिए क्या कर सकती हो ?
यह बात तुम मुझसे अब पूछ रहे हो , मैंने तुमसे पहले ही बताया था, अब हम इतना आगे बढ़ गए हैं, पीछे हटना नामुमकिन नहीं है।
हम तो कब से तैयार बैठे हैं ? तुम कहो तो कल ही, निकाह पढ़वा दें !
''निकाह ''नहीं, मुझे ''रजिस्टर मैरिज'' करनी है।
कोर्ट में भी कर लेंगे और बाकायदा 'निकाह' भी करवाएंगे, अरशद मुस्कुराते हुए बोला। बोलो !कब शादी करना चाहती हो ?
अगले हफ्ते गांव जाऊंगी, उसके बाद वहां से आकर, हम दोनों कोर्ट में जाकर शादी कर लेंगे।
मन ही मन प्रेम सोच रहा था -अच्छा हुआ मैंने, सरस्वती को कुछ नहीं बताया , हो सकता है ,घर न जाने के लिए , वह किसी तरह का विवाद खड़ा कर देती ,घर पहुंच कर ही जो होगा ,तब देखा जाएगा।
एक सप्ताह पश्चात, घर में साफ सफाई हो रही थी और नई चादर में बिछाई जा रही थी। हलवाई बैठाया गया था मिठाई, और तरकारियों की खुशबू से, आसपास का वातावरण महक उठा था। प्रेम के पिताजी सुनते हो! अभी तक तुम्हारे बच्चे नहीं आए लड़के वाले भी आने वाले ही होंगे।
क्यों परेशान हो रही हो आते ही होंगे, कह तो रहे थे- आज सुबह ही आ जाएंगे।
एक दिन पहले बुलाना चाहिए था।
मैंने ज्यादा जबरदस्ती इसीलिए नहीं की ,बच्चों को परेशानी होती, बिटिया की नौकरी है, बेटे का कॉलेज है आज तो, रविवार है इसलिए छुट्टी वाले दिन तो आराम से आ सकते हैं यही सोचकर मैंने कहा था।
माता-पिता अपने बच्चों के लिए क्या-क्या सोचते हैं ,उन्हें किसी भी प्रकार की परेशानी न उठानी पड़े किंतु बड़े होकर कुछ बच्चे, इतने स्वार्थी हो जाते हैं, अपना और अपने लाभ के विषय में ही, सोचते हैं। इसका उनके साथ जुड़े लोगों पर ,क्या असर होगा? यह सोचना और समझना ही नहीं चाहते।
आज के हालात देखते हुए तो यही लगता है ,सरस्वती भी कुछ ऐसी ही होती जा रही है। चलिए आगे बढ़ते हैं-