प्रेम को पता चल गया था ,कि उसकी बहन किसी लड़की के साथ बातें करती है, उसे लगता है ,कि उसी के कारण, उसका व्यवहार बदलता जा रहा है ? उसके मन में अनेक प्रश्न उठते हैं ,क्या उसे इसी दिन के लिए पढ़ाया- लिखाया गया था ? और वह सरस्वती से जानना भी चाहता है, कि उसका और' अरशद 'का क्या रिश्ता है ? दोस्ती करने के लिए ,क्या उसे इतनी बड़ी दुनिया में एक' अरशद 'ही मिला था ? किंतु तब भी सरस्वती को अपनी गलती का एहसास नहीं होता और वह प्रेम से तर्क -वितर्क भी करती है। उसके व्यवहार का उसके भाई पर क्या असर होगा ?और वह नहीं चाहती है, कि प्रेम उसके साथ रहे, वह अपनी आजादी चाहती है ,ताकि वह अपने दोस्तों से अच्छे से घुल मिल सके। घर के हालात देखते हुए तो प्रेम को लग रहा था, कि जो भी हो रहा है ,उचित नहीं है ,किंतु कुछ कह भी तो नहीं सकता था।
एक बार के लिए ,उसने सोचा भी था कि अपने पिता को फोन करके ,यहां के हालातों से अवगत करा दे, किंतु माता-पिता की उम्मीदों को ,इस तरह तोड़ना नहीं चाहता था। फोन तो उसने इसीलिए ही किया था ताकि वह सरस्वती की हरकतें ,उनसे बता सके किंतु अपने पर जज्ब कर गया और बोला -यहां सब ठीक है , वह सोच रहा था, यदि वह यहां आ ही गया है, तो अपने तरीके से, इस समस्या को सुलझा भी लेगा इसलिए पिता से कहता है -आप दीदी के लिए कोई लड़का ढूंढ रहे हैं ,या नहीं।
हां, बेटा ! ढूंढ तो रहे हैं, किंतु लड़के इतनी आसानी से नहीं मिल जाते।
घर जाकर,अपनी दीदी से बताता है-आज पिताजी से बात हुई थी।
तो....... तुमने मेरी चुगली लगा दी , चुगली लगाने के लिए ही तो फोन किया होगा।
मैं तुम्हारी तरह नहीं हूं, जो अपने माता-पिता की भावनाओं को ठेस पहुंचाउँ ।
मैंने उनकी कौन सी भावनाओं को ठेस पहुंचाई है , जरा मैं भी तो सुनूँ ।
तुमने, कौन सा अच्छा काम किया है ? जब उन लोगों को पता चलेगा ,कि तुम किसी 'अरशद। से मिलती हो तो जानती हो, क्या होगा ?
क्या होगा ?
तुम तो पढ़ी लिखी हो, समझदार हो ,समझ सकती हो, तुम्हारे विचार भी परिष्कृत हैं , तो क्या तुम्हें इस बात का भी इल्म नहीं है, कि जब उन्हें इस बात की जानकारी होगी ,तो उन पर क्या बीतेगी ?
यह मेरी जिंदगी है, मुझे अपनी जिंदगी को किस तरह से जीना है ,यह मुझ पर निर्भर करता है ? मैं कोई दूध पीती बच्ची नहीं हूं ,जो तुम मुझे समझाने चले हो, छोटे हो छोटे की तरह ही रहो !
तुम जैसी बहनें होगीं , तो हम जैसे छोटों को ,समय से पहले ही, बड़ा होना होगा।
तू बड़ा बन भी गया तो, मेरा क्या बिगाड़ लेगा ?ये मेरी ज़िंदगी है ,
मैं तुम्हारा तो कुछ नहीं बिगाड़ पाऊंगा, किंतु अरशद को अब तुम्हारे करीब नहीं आने दूंगा , यह मैंने अपने आप से वादा किया है।
तू हम दोनों के बीच में आने वाला होता कौन है ?
और अरशद तुम्हारा क्या लगता है? जो उसके लिए तुम अपने भाई से ,इस तरह लड़ रही हो। दोस्त ही तो है, दोस्ती तोड़ी भी जा सकती है और मैं आपसे यही कह रहा हूं, समय रहते ही संभल जाओ !घर वालों को पता चल गया तो भूकंप आ जाएगा , न जाने क्या-क्या अपने साथ ले जाएगा? क्या इसीलिए तुम्हें पढ़ा - लिखा कर, अपने पैरों पर खड़ा किया था कि तुम हमारी ''नाक कटवा सको.''
इसमें मैंने , तुम्हारी कौन सी नाक कटवा दी ?
ये ''नाक कटवाना नहीं है '',घर की बेटी किसी पराये मर्द से मिल रही है और घरवालों को ख़बर ही नहीं। मेरा नहीं तो, घरवालों का तो ख्याल किया होता , जब रिश्तेदारों को पता चलेगा , तो क्या कहेंगे ?
क्या कहेंगे ? पढ़- लिख जाने के पश्चात, मेरा विवाह ही तो करेंगे, वह मैं' अरशद 'से कर लूंगी।
दीदी ! लगभग चिल्लाते हुए, प्रेम बोला।
यानी मेरा शक सही था, तुम लोगों का रिश्ता सिर्फ दोस्ती का ही नहीं है , इससे आगे बढ़ चुका है और जहां तक मेरा विचार है वह यहीं पर रहता था।
हाँ,तो क्या हुआ?
और अब मैं कह रहा हूं, उससे रिश्ता तोड़ दो ! आपके लिए यही बेहतर होगा।
मेरे लिए क्या बेहतर है ?क्या नहीं, मैं अच्छे से समझती हूं, अरशद और मैं एक दूसरे से प्रेम करते हैं और मैं उससे ही विवाह करूंगी।
घरवाले !!!!जो तुम्हारे लिए लड़का ढूंढ रहे थे हैं, उन्हें क्या जवाब दोगी ?
कह दूंगी ,मुझे विवाह नहीं करना है।
बस इतनी बार सी बात से, समस्या समाप्त हो जाएगी।
नहीं होती है तो मेरी बला से....... कहते हुए अपने कमरे में चली गई। प्रेम के मन में अनेक सवाल छोड़ गई , प्रेम अनेक विचारों में खोया हुआ यह सोच रहा था -किस तरीके से, इन दोनों की दोस्ती अलग की जाए। मन ही मन घबरा भी रहा था , कहीं घर वालों को बाद में पता चले तो नाराज होंगे ,तूने हमें पहले क्यों नहीं बताया ? मुझे क्या करना चाहिए ?कुछ समझ नहीं आ रहा था। मन में क्रोध तो बहुत था, किंतु बड़ी बहन थी और लड़की का मामला था इसलिए समस्या को समझदारी से सुलझाने का प्रयास कर रहा था। यह भी नहीं जानता था -कि उसकी बहन किस हद तक जा सकती है ? जब से उसने होश संभाला है, बहन के पास कम ही रहा है और जब साथ रहने का मौका मिला है तो उसके अनेक रूप देखने को मिल रहे हैं। उसे क्या करना चाहिए ? सोचते हुए अपने कमरे में गया और बिस्तर पर लेट गया। अनेक परेशानियों से उलझा, न जाने, कब उसे नींद आ गई ?
अगले दिन, कॉलेज भी नहीं गया, जानबूझकर नहीं गया था ताकि यह मकान, उस अरशद को खाली न मिले। आदमी अच्छा कर रहा हो या बुरा किंतु यह तो वही जानता है कि उसे क्या करना है और वह उस राह पर आगे बढ़ने के लिए, रास्ते भी ढूंढ लेता है किंतु जहां तक मैं समझ सकता हूं, प्रयास करूंगा, दीदी का अरशद से मिलना ना हो।
प्रेम यहां अपनी बहन के पास पढ़ने आया था, और न जाने क्या समस्या लेकर बैठ गया। कभी-कभी तो मन ही मन कहता ,-'यह अच्छा ही हुआ, वरना उसे क्या पता चला ,कि यहां शहर में क्या हो रहा है ? वह घर में तो रह गया, पढ़ाई घर से ही करने लगा नोट्स अपने दोस्त से ले लेता था। एक दिन उसके दोस्त ने पूछ ही लिया-आजकल तुम कॉलेज क्यों नहीं आ रहे हो ? बस ऐसे ही थोड़ी तबीयत ठीक नहीं रहती है ,इसलिए सोचा ,घर में ही बैठकर पढ़ लूंगा।