Sazishen [part 110]

लगभग छह  महीने पश्चात , डॉक्टर साहब !आप जल्दी आ जाइए ! मेरी बेटी की तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है। कल्पना ने नीलिमा को जो नंबर दिया था ,उस नंबर के आधार पर, वह उस डॉक्टर को फोन करती है।

क्यों, उसे क्या हुआ है ? 

मेरी बेटी पेट से है ,उसको पेट में थोड़ी तकलीफ़ है। 

क्या आपकी बेटी चलने की , हालत में नहीं है , आप उसे मेरे क्लीनिक पर ला सकती हैं। देखती हूं, यदि लाना संभव हुआ तो ले आऊंगी कहते हुए नीलिमा ने फोन काट दिया। 

मम्मी !डॉक्टर ने आपसे क्या कहा ? 


वह कह रही हैं , कि अपनी बेटी को मेरे क्लीनिक पर ही ले आईये !

 आप देख नहीं रही हैं , मेरी तबियत कितनी बिगड़ गई है ?मैं अपने घर से ही यहाँ तक न जाने कैसे आई हूँ ?शायद इस कारण भी दिक्क़त बढ़ गयी है। मुझे लगता है ,मैं नहीं जा पाऊंगी। 

 चल बेटा ! हिम्मत कर...... कल्पना ने उसे उठाने का प्रयास भी किया।

 किंतु कल्पना बोली -मैं नहीं जा पाऊंगी। 

ठीक है, मैं दोबारा डॉक्टर को फोन लगाती हूं और यहीं बुला लेती हूं। घबराते हुए निलिमा बोली - न जाने , अचानक से तुझे क्या हुआ है ?

यह अचानक नहीं हुआ है, थोड़ा मीठा-मीठा दर्द पहले से ही हो रहा था किंतु मुझे लग रहा था ,कहीं कुछ गलत न हो रहा हो इसलिए मैं आपके पास यहां चली आई ,आप तो जानती ही हैं, वो ,[सास ] न तो तुषार को पसंद करती है और न ही मुझे ! कहीं ऐसा न हो, उसने ही कुछ मुझे खाने में या किसी चीज में दे दिया हो, हालांकि मैं बहुत सावधानी बरतती हूं किंतु कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें किसी की हानि करनी होती है वह मौका ढूंढ ही लेते हैं और उन्हें मिल भी जाता है। अब आप बताइए !डाक्टरनी ने क्या कहा ?

आधा घंटे में पहुंच रही है,क्या तुझे कुछ खाना है। 

नहीं ,अब तो डॉक्टरनी को दिखाकर ही कुछ खाउंगी ,कमर के पीछे तकिया  बैठने का प्रयास करते हुए बोली - हमारी छोटी [ शिवांगी ]कैसी है ? अब अपनी दीदी से नाराज तो नहीं है। 

नहीं ,अब तो उसकी नौकरी भी लग गई है, खुश रहती है। 

मुझे लगता है, जिस तरह से वह चांदनी की प्रशंसा कर रही थी, चांदनी ने ही उसे बरगलाया होगा। 

हां लगता तो यही है, किंतु मैंने उसे समझाना चाहा, मेरी बात भी नहीं सुनी। 

अब उन 'गड़े मुर्दों को मत उखाड़ो !' जो हो गया सो हो गया। बस अब तो यह उम्मीद करो !कि अच्छे से तुम्हारा बच्चा ठीक-ठाक हो जाए। 

कुछ देर पश्चात ही डॉक्टर, घर में प्रवेश करती है, पेशेंट कहां है ?

वह अंदर कमरे में है , यह सुनकर वह अंदर जाती है और वहां लेटी हुई कल्पना को देखती हैं और पूछती है क्या परेशानी है ?

मुझे कई दिनों से, पेट में मीठा-मीठा सा दर्द हो रहा है। 

ऐसी हालत में होना तो नहीं चाहिए ,वह उसकी जांच करती है। उसे कुछ शक होता है, और उससे पूछती  है तुम क्या दवाइयां ले रही हो ?

तब वह दवाई के विषय में बताती है, और कुछ लिया है। मैं तो ऐसा कुछ भी नहीं ले रही,जिससे मुझे किसी भी प्रकार की दिक्कत हो। 

क्या तुमने गर्भपात की दवाई ली ?

क्या बात कर रहीं हैं ?डॉक्टर ! यदि मुझे दवाई लेनी ही थी ,तो पहले ही परहेज करती।  अब तो हमें बच्चा चाहिए। इतने समय पश्चात क्यों लूँगी ?

तुम्हारी बात भी सही है ,कहीं न कहीं ऐसा तो कुछ हुआ है, जिससे तुम्हारे बच्चे को, हानि पहुंची है। 

मतलब !दोनों माँ -बेटी एक साथ बोलीं। 

मतलब यही ,तुमने यदि दवाई नहीं ली तो किसी ने कोई ऐसी चीज दी है, जिससे तुम्हारा बच्चा इस दुनिया में न आये।   

क्या कह रही हैं ?आप ! आश्चर्य से कल्पना बोली। हां ,मुझे लगता है, दवाई में या किसी ने देसी नुस्खा या कुछ ऐसा दिया है जिसके कारण, तुम्हें परेशानी हो रही है। 

कैसी दवाई ?

गर्भपात की दवाई !

दोनों मां बेटी का मुंह आश्चर्य से खुला रह जाता है। मैंने तो ऐसी कोई भी दवाई नहीं खाई है, तब तुम्हें खाने में मिलाकर कुछ दिया गया होगा। उस दवाई का प्रभाव धीरे-धीरे हो रहा है , जिससे तुम्हें पता भी न चले, दिन भी ज्यादा हो गए हैं इसलिए यह शुरुआत होनी आरंभ हुई है। 

अब आप इसका इलाज तो बताइए! घबराते हुए नीलिमा ने पूछा।

 अभी मैं कुछ दवाइयां लिखकर दे देती हूं, किंतु आगे से ध्यान रहे ,कोई भी ऐसी चीज मत खाना जिससे तुम्हें दिक्कत हो। गर्भपात भी हो सकता है, और तुम्हारी जान को खतरा भी हो सकता है। 

मम्मी !अवश्य ही, उसने कुछ दिया होगा, मैं तो बड़े ध्यान से, सावधानी से, आहार लेती हूं। मैं जिस डॉक्टर की दवाइयां खा रही थी ,तब भी मुझे आराम नहीं हो रहा था ,तब मैं मम्मी के पास चली आई। 

अब तुम परेशान मत हो ! ईश्वर ने चाहा तो सब ठीक हो जायेगा। अब तुम, जब तक बच्चे के आने का समय नहीं आ जाता तब तक यहीं पर रहो !

मैं तुषार को क्या जवाब दूंगी ?

क्या जवाब देना है ? कह देना, पहला बच्चा हमारे यहां मायके में ही होता है। बात खत्म ! 

बात यहीं पर समाप्त नहीं होती है, पता तो चलना चाहिए आखिर मुझे क्या दिया गया था ? अब तुम यह व्यर्थ की चिंता छोड़ो समय रहते संभल जाओगी तो यह चीज बाद में भी देख लेना। 

जब वह मेरे बच्चे को गर्भ में मारने का प्रयास कर सकती है, तो बाहर आने पर भी ,तो मारने का प्रयास कर सकती है। 

यदि ऐसा कुछ हुआ, तो उसे अपने कर्मों का परिणाम भुगतना होगा, अचानक नीलिमा के चेहरे के भाव बदल गए ,उसके कर्मों का दंड उसे यही पर भुगतना होगा। 

शाम को जब दफ्तर से, शिवांगी घर पर आई तो उसने कल्पना को देखा , मन में खुशी तो हुई थी किंतु तुरंत ही क्रोध भी आया उसके उस व्यवहार को स्मरण करके, जो उसने अपने घर से निकालते समय उसके साथ किया था और मुंह घुमा कर, अपने कमरे में चली गई , कल्पना से कुछ नहीं बोली।

क्या शिवांगी अभी भी, कल्पना से नाराज है ? क्या वह उसकी बात मानेगी या नहीं, अपनी बहन को माफ कर देगी या नहीं। क्या दोनों बहनों में, झगड़ा बढ़ता जाएगा? क्या चांदनी अपनी साजिश में कामयाब होगी ? आखिर इस सब का क्या परिणाम होगा ? मिलते हैं ,अगले भाग में !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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