अच्छा लगता है !

 घने कोहरे से छनती ,वो  सर्दी की धूप ,

 सिमटे ,सुकड़े अंगों में ,जीवन भरती ,

 जैसे अंधियारे से निकला, कोई प्रकाश है।

ऐसे में तेरा, क़रीब आना अच्छा लगता है। 

 



तेरा छत पर आ, सिकुड़ते हाथों को फैला,

 अपने अंदर ताजगी समेटना अच्छा लगता है। 

तुम्हारा धूप में बैठ, मेरे लिए स्वेटर बनाना,

चाय की चुस्की संग,बातें करना अच्छा लगता है। 


मूंगफली छील ,अपनी हथेली से कुछ दाने !

 मेरी ओर कर देती ,मुस्कुराकर कहतीं , लो !

 तुम्हारी शिकायतों में ,मेरी परवाह नजर आती ,

धूप में अखबार पढ़, तुम्हें सुनाना अच्छा लगता है। 


तेरी बातों की गर्माहट सी,ये सर्दी की नर्म धूप ,

सर्दी की धूप में गुनगुनाते हुए, सहसा मुस्कुराना ,

नाप लेती हो मेरा ,फ़िक्र करती हो, इस सदन की ,

शॉल में लिपट तेरा , धूप में आना अच्छा लगता है। 


तुम्हारे हाथों से बने ,मेवे के लड्डूओं की महक़ ,

घर के हर कोने में ,जीवन में, तेरे होने का एहसास !

तेरी उमंगों का मफ़लर लपेट ,धूप में बैठ मटर छीलना ,

ठंड से कांपते बदन,को सुकून देती है तो अच्छा लगता है। 

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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