Sazishen [part 109]

कल्पना को शिवांगी की हरकतों से एहसास हो जाता है, कि उसका व्यवहार कुछ ठीक नहीं है। वह तुषार की तरफ खींच रही है, या यह कहा जाये -  वह तुषार को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रही है। पहले तो उसने , उन दोनों का हंसी -मजाक समझा किंतु एक दिन कल्पना ने शिवांगी से कह ही दिया -''अब तुम्हें घर पर जाना चाहिए।'' शिवांगी घर जाने के लिए तैयार नहीं थी,इसमें चांदनी भी उसका साथ दे रही थी। तब कल्पना ने जबरदस्ती, उसका सामान उसके बैग में रखा और उसे बाहर का रास्ता दिखाया। इतनी बेइज्जती के पश्चात भी, शिवांगी उस घर से जाना नहीं चाहती थी । 

 तब शिवांगी जैसे, विवशता से बोली-दीदी ! मेरा मन नहीं मान रहा है, मैं नहीं जाना चाहती हूं।आप यहाँ अकेली रह जाओगी। 

मेरी बहना ! तुझे जाना तो पड़ेगा ही, मन ही मन  कल्पना ने दृढ़ निश्चय कर लिया था ,अब शिवांगी को भेज कर ही रहेगी। तब वह बोली -तू तो इस तरह रो रही है, जैसे ससुराल जा रही हो। तेरे लिए भी कोई, अच्छी सी ससुराल ढूंढ देंगे। 


नहीं ,मुझे नहीं जाना है ,मुझे यहीं रहना है। 

चल !अपना बैग उठा, तुझे तुषार छोड़ कर आएंगे और मैं भी साथ चलती हूं। कहते हुए , उसने जबरन ही शिवांगी का बैग उठाया और कमरे से बाहर आ गई। लगभग उसे खींचते हुए, बाहर की तरफ चल दी , वह सोच रही थी -यह मेरी जिंदगी है, इस पर किसी को जबरदस्ती इस तरह अधिकार नहीं करने दूंगी। इससे ज्यादा शिवांगी कुछ कर भी नहीं सकती थी , कायदे से देखा जाए तो वह कल्पना का घर था। उसके घर में जबरदस्ती किस अधिकार से रुकती ? कल्पना तो पहले से ही चांदनी की नहीं सुनती थी। तुषार भी चांदनी को पसंद नहीं करता था,चांदनी  जबरन ही, शिवांगी को उनके रिश्ते के मध्य  में लाने का प्रयास कर रही थी। 

तभी तुषार घर में प्रवेश करता है, और कल्पना का इस तरह का रूप देखकर ,उसे बड़ा अजीब महसूस होता है ,कि अपनी ही बहन को किस तरह घर से बाहर कर रही है ?मन ही मन प्रसन्न भी होता है ,कल्पना मुझसे  कितना प्रेम करती है ?मेरे करीब अपनी बहन की मौजूदगी भी इसे बर्दाश्त नहीं है। तब वह कल्पना से पूछता है - तुम इसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हो ? 

अब इसे घर जाना चाहिए , वहां पर मम्मी अकेली हैं ,उन्होंने मुझे फोन किया था-' कि अब तो वहां रहते हुए बहुत दिन हो गए ,अब तो इसको भेज दो !

तब तो तुम्हें जाना चाहिए , मम्मी जी ,अकेली रहती हैं। तुषार भी शिवांगी की हरकतों से थोड़ा परेशान था किंतु कल्पना के कारण, कुछ नहीं कह पा रहा था। शिवांगी के कारण  असहज महसूस करता था। अब जब कल्पना ही, शिवांगी को भेज रही है, तो उसे बहाना मिल गया, हालांकि वह अब उसकी तरफ ध्यान देने लगा था ,'आग और फूंस 'को कब तक साथ रखेंगे ?कभी तो आग लगती। इससे पहले की उस अग्नि में कल्पना का घर जले, उससे पहले ही ,उसने दियासलाई को ही घर से बाहर करने का निर्णय ले लिया। इसीलिए कल्पना के सख्त रवैये के कारण ,तुषार सम्भल गया । 

नीलिमा ने कल्पना को कभी फोन नहीं किया था किंतु वह बार-बार नीलिमा का नाम लेकर, शिवांगी को उसे घर से बाहर कर देना चाहती थी।उसने कह तो दिया था -'कि तुझे तुषार छोड़ आएगा और वो आ भी गया किन्तु स्वयं ही उसे छोड़ने जाने के लिए चाबी लेने गयी ,तब तक तुषार और शिवांगी को एकांत मिला। 

जीजू ! दीदी से कहो न ! मुझे नहीं जाना है। तब तुषार उसके करीब आया और उसने शिवांगी के कान में कुछ कहा। तब तक कल्पना गाड़ी की चाबी लेकर आ गयी थी। अब उसने जोश से नहीं होश से काम लिया और नंदू को गाड़ी की चाबी देते हुए बोली -नंदू ! मैडम को घर पर छोड़ आओ !

अब शिवांगी चुपचाप गाड़ी में बैठ गयी ,तुषार की तरफ देख मुस्कुराई ,गाड़ी आगे बढ़ गयी। 

तब कल्पना ने अपनी मम्मी को फोन किया -मम्मी ! जरा शिवांगी का ध्यान रखना वो आ रही है। 

क्या हुआ ? इस तरह कैसे आ रही है ?

अब कल्पना ने  जो कुछ भी अपनी मां को बताया, उसे सुनकर उसकी मां को भी, आश्चर्य हुआ और बोली- तूने अच्छा किया, जो उसे भेज दिया। न जाने ,यह लड़की किसके बहकावे में आ गई है ? यह पहले तो ऐसी नहीं थी।

घर पहुंच कर शिवांगी बहुत रोई और बोली -मैं दीदी को कभी माफ नहीं करूंगी , उसने अपने घर पर मेरा अपमान किया है।

उसने तेरा क्या अपमान किया है ?

क्या यह आपको  अपमान नहीं लगता है , उसने जबरन ही मुझे अपने घर से निकाल दिया।

 वह उसका घर है, तू क्या वहां बसने  गई थी , तुझे तो समझदारी से स्वयं ही, उससे कहना चाहिए था कि अब मुझे अपने घर जाना है। वह तेरा घर नहीं है, अब तू भी अपने लिए एक अच्छा सा लड़का ढूंढ कर, अपना घर बसा ले। तूने भी तो मुझे बताया था -कि कोई लड़का है , मुझे बता मैं उसके परिवार से तुम दोनों के विवाह की बात करूंगी।

आप हमेशा से ही उनकी तरफ़दारी करती हो ,हमेशा वो ही सही होती हैं और मैं गलत ! कोई लड़का नहीं है, मैं तो मजाक कर रही थी, क्रोधित होते हुए, शिवांगी बोली। न ही ,मुझे विवाह करना है ,कहते हुए अंदर कमरे में चली गई।

 उसके पीछे-पीछे ही नीलिमा भी पहुंची, और बोली -सच्चाई से भागने से कुछ नहीं होता, उसका सामना करना सीखो ! वह तेरी बहन का घर है, तू तो ऐसी नहीं थी, फिर तेरा यह व्यवहार कैसे बदला ?

मेरा कोई व्यवहार नहीं बदला है, दीदी उस घर के लायक ही नहीं है, तभी उसकी सास भी, उसे पसंद नहीं करती है , वह मुझसे कितना प्रसन्न रहती थी ? दीदी ने हमेशा उसकी बुराई की है , उसने हमेशा ही मेरा साथ दिया है। 

कभी-कभी आंखों देखा भी ,गलत हो जाता है , उसे जैसा तुम समझ रही हो, वह ऐसी बिल्कुल भी नहीं है। यदि वह अच्छी भी है, तो अच्छी बात है तुम उस मायाजाल से बाहर निकालो ! कोई अच्छी सी नौकरी ढूंढ कर, अपने जीवन को व्यस्त कर लो !' खाली दिमाग शैतान का घर होता है। ' व्यस्त रहोगी तो यह बेफिजूल की बातें, तुम्हारे दिमाग में नहीं आएंगीं। क्या तुम्हें, मैंने पढ़ने के लिए, इसीलिए विदेश भेजा था कि तुम किसी के बहकावे में आकर, अपने जीवन का सर्वनाश कर लो !

मैं किसी के भी बहकावे में नहीं आई हूं, लगभग चीखते हुए, शिवांगी बोली। 

न जाने कौन, किसके लिए, कैसी साजिशें  कर रहा है ? क्या शिवांगी अपनी बहन का घर तोड़ देगी। घर से निकाल देने  के पश्चात भी, क्या वह तुषार से संबंध बना कर रखेगी ?तुषार भी उससे कब तक दूरी बनाकर रखेगा ? चांदनी अपनी चाल में कामयाब हो पाई या नहीं। यह तो समय ही बताएगा। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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