Sazishen [part 108]

अब कल्पना को महसूस होने लगा था, कि शिवांगी का व्यवहार कुछ ठीक नहीं है। उसे तुषार से शिवांगी का ज्यादा घुलना -मिलना पसंद नहीं आ रहा था। पहले तो वह इस रिश्ते को, जीजा -साली का रिश्ता समझ कर नजरअंदाज करती रही किंतु उसने देखा, शिवांगी समझदार होने के पश्चात भी, बचकानी सी हरकतें कर जाती है। तुषार के कुछ ज्यादा ही नजदीक, जाने का प्रयास करती है।यदि तुषार ,कल्पना से कोई चीज मांगता या पूछता भी है ,तो शिवांगी आगे बढ़कर उसका काम कर देती। पहले -पहल तो ये सब कल्पना को अच्छा लगा ,चलो उसकी बहन ,उसके कार्यों में हाथ बँटा रही है किन्तु अब वो उनकी ज़िंदगी में कुछ ज्यादा ही घुसने का प्रयास कर रही थी।कभी -कभी दोनों अकेले में ,समय व्यतीत करना चाहते तो शिवांगी उनके बीच आकर ,हस्तक्षेप करती ,दोनों को बहुत ही बुरा लगता सबसे ज्यादा कल्पना को बुरा लगने लगा और उसे लगता,यह सब वह जानबूझकर कर रही है।  


कभी -कभी तुषार के सामने ,अपनी बहन को नीचा दिखाने का प्रयास करती।उसकी कमियां गिनाती या उसकी गलतियों को सुना -सुनाकर  हंसती। छोटी बहन, समझ कल्पना ने कुछ नहीं कहा ,किन्तु उसने देखा ,तुषार से उसकी नजदीकियां बढ़े या न बढ़ें किन्तु चांदनी से उसका मेलजोल काफी बढ़ रहा है। शिवांगी ,अपनी बहन से ज्यादा वह चांदनी के करीब रहती उससे बातें करती। कल्पना को देखकर दोनों चुप हो जातीं। एक दिन , कल्पना, शिवांगी से बोली -मैं देख रही हूं ,आजकल मेरी सास से तेरी ज्यादा नजदीकियाँ  बढ़ती जा रही हैं। 

मौसी जी है, ही इतनी अच्छी !

तूने उस औरत की क्या अच्छाई देख ली ? तू जानती है, उसे तुषार पसंद नहीं है, और न ही तुषार उसे पसंद करता है। उसका सगा बेटा नहीं है। 

हां ,मम्मी जी !ने मुझे बताया। शिवांगी की बात सुनकर एकदम से कल्पना चौंक गई और बोली -तूने अभी क्या कहा ?

 तब शिवांगी को अपनी गलती का एहसास हुआ और बात को संभालते हुए बोली -मौसी जी, कहते -कहते मम्मी जी मुंह पर आ गया, उन्होंने मुझे सब बताया है। 

क्या बताया है ? यही कि तुषार उनका बेटा नहीं है तब भी वह तुषार से बहुत प्रेम करती हैं।उनका कोई दूसरा बेटा  होता तो मुझे अपनी बहु बना लेतीं। 

ऐसा उसने कहा , तू उसके विषय में कुछ भी नहीं जानती है। वह हमारी दुश्मन है। तू नहीं जानती है ,कि वो ....... इससे पहले की कल्पना उसे कुछ बताती, शिवांगी बोल उठी -मुझे कुछ नहीं सुनना है, वह कब ,कैसी थी ? यह बात मायने नहीं रखती है। हां अब कैसी है ? मेरे लिए बस, यही महत्वपूर्ण है।

 क्या तू ,जानना नहीं चाहेगी ?उसने हमारे साथ क्या किया ? तुम्हारी नजर में उस बात का कोई महत्व नहीं है। तू जानती नहीं है, उसके कारण हमारे पापा...... 

पापा ,तो अब चले गए , उस बात को बरसों बीत गए , और उनकी इस बात से  चांदनी जी का क्या लेना देना ?

तू सुनेगी ,तभी तो, तुझे बताऊंगी। 

मुझे कुछ भी सुनना नहीं है ,बस में इतना जानती हूं। कि यह आपका ससुराल है। वह तुषार की मां है और तुम मेरी बहन हो ! यह बात और उसका व्यवहार कल्पना को अच्छे नहीं लगे।  तब वह शिवांगी से बोली - अब तुझे घर जाना चाहिए और मम्मी के साथ रहना चाहिए ताकि उनके कार्य में उनका हाथ बंटा सके। 

 शिवांगी को कल्पना का इस तरह कहना अच्छा नहीं लगा ,उसे बहुत क्रोध आया और वह कल्पना से नाराज हो जाती है। तुम मुझे अपने घर से निकालना चाहती हो क्योंकि तुम्हारी सास तुम्हें नहीं मुझे पसंद करती है। 

तू गलत समझ रही है ,तुझे अपनी बहन के साथ रहना था ,मैंने मना किया...... अब मम्मी के साथ भी, तो रहना चाहिए। दूसरे के घर पर कब तक पड़ी रहेगी ?

मैं तो इस घर को पराया नहीं समझती किन्तु आज आपने यह सब कहकर पराया कर दिया और क्रोध में , वह अपने बैग में अपने कपड़े लगाने  लगती हैं। 

आंगन में बैठी ,दोनों बहनो की नोकझोंक चांदनी,छत से ही सुन रही थी ,जब देखा बात बढ़ रही है ,तब ''आग में घी डालने के लिए  चांदनी आती है और शिवांगी से कहती है - शिवांगी !तुम कहां जाने के लिए तैयार हो रही हो ?

अपने आंसू पूछते हुए शिवांगी, चांदनी से कहती है -घर जा रही हूं ,ऐसा मेरी बहन का कथन है -कि मैं उसके घर पर रह रही हूं , उसे यह बर्दाश्त नहीं हो रहा है। 

यदि तुम्हारा मन नहीं है, तो तुम्हें यहां रहने से, कौन मना करता है ? यदि तुम्हारी इच्छा नहीं है ,तो तुमसे कोई जबरदस्ती नहीं करेगा। कहते हुए ,चांदनी ने उसके आंसू पोंछने के लिए आगे आई ,धीरे से कान में बोली -यदि तुम चली जाओगी, तो तुम्हारी लड़ाई यहीं  पर समाप्त हो जाएगी। तुम अपने अधिकार के लिए कैसे लड़ोगी ? 

अब  कल्पना तक सतर्क हो चुकी थी , उसे लग रहा था- कहीं न कहीं। 'कुछ तो खिचड़ी पक रही है।' तब वह शिवांगी को देखने के लिए, उसके कमरे में आई, और चांदनी को देखते ही,उसका माथा ठनक गया। कल्पना सोच रही थी -इसने आज तक मुझसे ठीक से बात नहीं की, किंतु मेरी बहन से, बड़ा घुट घुटकर बातें कर रही है , उसके दिमाग में अवश्य ही कुछ न कुछ चल रहा है। तब वह शिवांगी से बोली -क्या तुम अभी तक तैयार नहीं हुई ? मम्मी का फोन आया था, वे कह रही थीं  -क्या तू ,अपनी बहन को वहीं  रखेगी ? अब उसे यहां भेज दे ! उसकी अपनी भी जिंदगी है , उसे नौकरी भी ढूंढनी है। फटाफट अपने कपड़े रख, और बोली -क्या तू अकेली चली जाएगी या मैं तुझे लेकर जाऊं। 

देखना बच्ची ! कितनी रो रही है? अचानक से चांदनी, कल्पना से बोली। 

मन ही मन  कल्पना को, चांदनी का उन दोनों बहनों के बीच में आना,कल्पना की बात काटना ,उसे  अच्छा नहीं लगा, किंतु अपनी बहन के सामने ,वह कुछ भी ऐसा नहीं बोलना चाहती थी, जो उसके मन में, क्रोध, या कोई भी नकारात्मक भावना या विचार पनपे।  मैं जानती हूं ,यह मुझसे बहुत प्रेम करती है , किंतु वहां मम्मी का ख्याल रखना भी बहुत जरूरी है, इसलिए मैं चाहती हूं, यह घर जाए , यहां तो हम दोनों पति-पत्नी हैं ही , सब संभाल लेंगे। वहां मम्मी अकेली है ,उनके पास भी तो कोई होना चाहिएं। मैं इससे दूर कहां हूँ ? मैं इससे मिलने आती -जाती रहूंगी। हम  एक शहर में ही तो हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post