''वक्त'' रेत सा...... फिसलता रहा।
जिंदगी का सफर यूं ही, चला रहा।
उम्मीदों के दिए जला,मैं चलता रहा।
साल दर साल कैलेंडर बदलता रहा।
अवसान दिन कानहीं,साल बदलता रहा।
नवीन दिवस, नवीन सूर्य, उदय हुआ।
मौसम से,जीवन में बदलाव आते रहे।
जीवन के हर पड़ाव पर आगे बढ़ता रहा।
गिले -शिक़वे बढ़ते गए,विश्वास घटता रहा।
यादों का काफ़िला यूँ ही, बनता रहा।
जीवन का हर पल ,अनुभव बढ़ाता रहा।
हर साल, एक नया'' केक ''कटता रहा
उम्र बढ़ती रही, दिवस घटते रहे।
लोग मिलते और.... बिछड़ते रहे।
आशाओं के चिराग जलाएं रखे ,
उम्मीदों की नई उड़ान भरता रहा।
कर्मों का लेखा -जोखा बुनता रहा।
जीवन के गणित में , उलझता रहा।
वर्ष दर वर्ष सफर यूँ ही, चलता रहा।
कर्मों का इतिहास बनता औ बढ़ता रहा।