Safarnama

''वक्त'' रेत सा...... फिसलता रहा। 

 जिंदगी का सफर यूं ही, चला रहा। 

उम्मीदों के दिए जला,मैं चलता रहा।

साल दर साल कैलेंडर बदलता रहा।

 


अवसान दिन कानहीं,साल बदलता रहा। 

नवीन दिवस, नवीन सूर्य, उदय हुआ। 

मौसम से,जीवन में बदलाव आते रहे। 

जीवन के हर पड़ाव पर आगे बढ़ता रहा।


गिले -शिक़वे बढ़ते गए,विश्वास घटता रहा।

यादों का काफ़िला यूँ ही, बनता रहा। 

जीवन का हर पल ,अनुभव बढ़ाता रहा।

हर साल, एक नया'' केक ''कटता रहा 

     

उम्र बढ़ती रही, दिवस घटते रहे। 

लोग मिलते और.... बिछड़ते रहे।     

आशाओं के चिराग जलाएं रखे ,

उम्मीदों की नई उड़ान भरता रहा।


कर्मों का लेखा -जोखा बुनता रहा। 

जीवन के गणित में , उलझता रहा।  

वर्ष दर वर्ष सफर यूँ ही, चलता रहा।

कर्मों का इतिहास बनता औ बढ़ता रहा।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post