अच्छा हुआ, तुम मुझे मिल गए, अब जल्दी ही ,यहां से निकल चलो ! आगे के गेट पर मेरा भाई खड़ा है, यदि उसने तुम्हें देख लिया तो हंगामा कर देगा। मैं तो सोच रही थी -तुम आओगे या नहीं , कहते हुए सरस्वती, तुरंत ही मोटरसाइकिल के पीछे की सीट पर बैठ गई। अरशद ने अपना हेलमेट लगाया , और पीछे के द्वार से बाहर निकल गया। यह सब पांच या दस मिनट में ही हो गया।
प्रेम 1 घंटे से उस इमारत के सामने खड़ा रहा, किंतु कोई परिणाम न निकला। सरस्वती बाहर नहीं आई तब उसने सोचा - अंदर जाकर देखना चाहिए किंतु यह सुनकर उसे आश्चर्य हुआ कि यहां कोई सरस्वती काम ही नहीं करती है, फिर वह कहां गई ? उसकी आंखों के सामने तो वह अंदर गई थी। वह परेशान हो उठा, वह स्वयं उस इमारत के अंदर गया और जहां तक भी उसे संभव लगा, उसने देखने का प्रयास किया, किंतु सरस्वती उसे कहीं भी दिखलाई नहीं दी। तब वह बाहर खड़ा होकर ही प्रतीक्षा करता रहा, कभी तो बाहर आयेंगी ।
वह क्या जानता था ? शहर में रहकर, उसकी बहन अब बहुत चतुर हो गई है अपनों को ही धोखा देने लगी है. निराश होकर वह घर वापस आ गया और उसने सम्पूर्ण बातें घरवालों को बताइ। रामखिलावन की अपने अनुभव के आधार पर समझ गए थे। की बेटी, जा चुकी है किंतु वे विश्वास करना चाहते थे शायद मैं वापस आ जाए। शाम होने को आई किंतु न ही उसका फोन लगा और न ही, वह वापस आई। विवश होकर, दोनों बाप -बेटा सरस्वती के गुम होने, की रिपोर्ट लिखवाने के लिए चल देते हैं।
थोड़ा और ठहर जाते शायद वह , घर वापस आ जाए। पुलिस और कोर्ट- कचहरी हुई, तो बहुत बदनामी हो जाएगी।अंगूरी अपने आंसुओं को रोकते हुए बोली।
तुम्हारी बेटी ने बदनामी करने में कौन सी कसरत छोड़ी है ? अब तो जो होगा देखा जाएगा ,तब तमतमाये हुए रामखिलावन ने प्रेम से कहा - चलो ! इससे पहले की कुछ, ज्यादा ही अहित हो जाए। पुलिस थाने चलते हैं।
तभी प्रेम को जैसे कुछ याद आया और बोला पापा 1 मिनट रुकना ! अभी आता हूं , कहते हुए अंदर गया और सरस्वती के सामान में, कुछ ढूंढने का प्रयास करने लगा। जिसकी उसे तलाश थी आखिर वह उसे मिल ही गया, एक कागज पर उसकी कंपनी का नाम लिखा हुआ था , हो ना हो यही उसकी कंपनी का नाम होगा यह सोचकर, वह बाहर आता है और अपने पिता को दिखाता है। देखिए ! यह किसी कंपनी का कागज है, यह नहीं जानता, कि इसी कंपनी में दीदी काम करती है या नहीं किंतु एक बार जाकर देखने में क्या बुराई है ?
रामखिलावन को भी एक उम्मीद जगी, और बोला -चलो !उसके दफ्तर जाकर देखते हैं।
ये बात तेरे दिमाग में पहले क्यों नहीं आई ?
कैसे आती ?उनसे ,इतने बड़े धोखे की उम्मीद नहीं थी ,ये बात हज़म करना ही मुश्किल हो रहा था। अब थोड़ा दिमाग़ चला है ,जरा समय तो देखिये !क्या बजा है ?
अभी साढ़े पांच बजे हैं ,क्यों ?
छह बजे तक तो उनका दफ्तर बंद हो जायेगा ,कहते हुए उसने दोस्त से लाई मोटरसाइकिल की रफ़्तार तेज़ कर दी। रास्ते में एक -दो जगह पूछना भी पड़ा किन्तु पांच मिनट पहले ही सही पहुंच तो गए। वह मोटरसाइकिल से उतरा और तेजी से अंदर गया। इस समय कुछ लोग बाहर आ रहे थे। भीड़ की परवाह किये बग़ैर वो उससे निकलता हुआ, अंदर जाने का प्रयास कर रहा था। बाहर पिता खड़े सोच रहे थे -क्या ऐसे मौक़े के लिए उसे पढ़ाया था ?उसके मन में क्या चल रहा है ?आज ये दिन आ गया ,उसके दफ्तर के सामने उसी की खोजबीन में लगे हैं।हम इस सबसे अनजान बने रहे। आने -जानेवालों को जासूस नजरों से देखते रहे ताकि जैसे ही वो सामने आये ,तुरंत ही उसका हाथ पकड़कर,घर ले जाऊँ किन्तु कहीं दिखे तो सही ,तभी प्रेम ने आकर पूछा -आपको कहीं दिखीं।
नहीं ,
मैं अंदर सभी जगह ढूँढ आया किन्तु कहीं दिखलाई नहीं दी।
मुझे देखकर छुप भी गयी हो तो कुछ कह नहीं सकते ,किसी से पूछ ही लेता कि आज वो यहाँ आई भी थी या नहीं।
पूछा था , उन्होंने तो जानने से ही इंकार कर दिया ,हमें नहीं पता।
तब रामखिलावन जी ,उस भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़े ,प्रेम कहता रहा -पापा !आप कहाँ जा रहे हैं ?तब वे मैनेजर ऑफिस में पहुंचे। वहां कोई व्यक्ति पहले से ही बैठा हुआ था ,किसी कार्य में व्यस्त था। शायद, उसे जाने की जल्दी नहीं थी। तब रामखिलावन ने दरवाजे पर खड़े होकर पूछा -साहब !क्या मैं अंदर आ सकता हूँ ?
जी ,आइये !उसने अपनी फाइलों से नजरें हटाकर कहा -आप कौन ?
जी मैं ,एक किसान हूँ ,मेरा नाम रामखिलावन है ,मेरी बेटी यहाँ काम करती है ?
आपकी बेटी का क्या नाम है ?
सरस्वती !ये नाम है।
तब, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ ?आप मुझसे क्या चाहते हैं ?
मैं ये पूछना चाहता हूँ ?क्या ,वो आज यहाँ आई है।
क्या मतलब ? ये कोई स्कूल नहीं है, कि बच्चे का पता बताना है ,आप देख लीजिये उसने अपनी एंट्री की है या नहीं।
मुझे इस सबके विषय में कुछ भी मालूम नहीं है ,आप मेरी थोड़ी सहायता कर दीजिये। तब उसने पास रखी घंटी बजाई तब एक आदमी अंदर आया। उसे देखते ही मैनेजर ने कहा -क्या आज सरस्वती आई है ?पता लगाकर बताओ !
वह वहां से वापस नहीं गया ,वहीं खड़ा रहा और बोला -वो आज आई थी ,आधे दिन के बाद छुट्टी लेकर चली गयी ,चार दिनों की छुट्टी और लेकर गयी है।
क्यों ?मैनेजर ने उसकी तरफ देखकर पूछा।
क्योकि उन्होंने बताया था मेरी शादी तय हो गयी है ,इसीलिए मिठाई लेकर आई थी ,सभी को मिठाई दी थी और बताया -शादी के लिए चार दिनों की छुट्टी चाहिए, किन्तु साहब !आप कौन हैं ?
मैं उसका पिता हूँ ,कहकर वो तेजी से बाहर निकल गए और बाहर जाकर प्रेम से बोले -शीघ्र ही पुलिस स्टेशन चलो !
क्या हुआ ?कुछ पता चला या नहीं,मोटरसाइकिल आगे बढ़ाते हुए प्रेम ने पूछा।
वो यहाँ आई थी ,किन्तु यहाँ से चार दिनों की छुट्टी लेकर गयी है ,उसने यहाँ बताया है, कि मेरा विवाह है।
यह विवाह कहाँ हो रहा है ?आपने ये पूछा।
नहीं ,पूछता भी कैसे ?क्या वे यह नहीं पूछते ?आप पिता हैं और आपको ही नहीं पता। कैसी दुविधा आन पड़ी है ?