सरस्वती,घर से अपने दफ्तर के लिए कहकर निकली थी, रामखिलावन जी ने एहतियात के तौर पर प्रेम को भी साथ भेजा था किंतु तब भी न जाने, सरस्वती कहां चली गई ? तीनों ही बड़े परेशान थे। रामखिलावन जी समझ रहे थे, सरस्वती, भाग गई है,वह भने से बाहर निकली है किंतु अभी भी उन्हें लग रहा था शायद वह वापस चली आए। तब उन्हें प्रेम बताता है - यह बात तो मैं बहुत पहले जान चुका था किन्तु मैं सोच रहा था ,शायद बात सम्भल जाये।
तब रामखिलावन जी उससे नाराज होते हैं और कहते हैं -यह बात तुमने हमें पहले क्यों नहीं बताई ?
तब प्रेम कहता है -उससे क्या हो जाता ? अब तो पता चल गया न...... अब भी हम क्या कुछ कर पाए हैं ?क्या कर रहे हैं ?क्रोधित होते हुए बोला। वो बहाना बनाकर,अब भी आँखों के आगे से ही निकल गयी न......
पूरा परिवार परेशान था, न जाने कहां चली गई है ? गांव जाना चाहते थे किंतु कैसे जाएं ? अब तक रामखि लावन स्यानी लड़की समझ प्यार से काम ले रहे थे किंतु अब उन्हें लग रहा था कि अब बात बढ़ गई है। मन ही मन सोच रहे थे गांव में लोगों को पता चलेगा, तो मैं क्या जवाब दूंगा ? सारे गांव में ''खिल्ली ''उड़ेगी।सरस्वती की माँ ,ये सब क्या हो गया ?अच्छी -खासी ज़िदगी चल रही थी।
न जाने,हमारे परिवार को किसकी नज़र लग गयी ? रोते हुए अंगूरी बोली -न जाने ,इस लड़की की बुद्धि कैसे भ्र्ष्ट हो गयी ?
परिणीति !अब तुम ही बताओ ! सरस्वती के माता-पिता ने, अपनी बेटी को पढ़ाकर ऐसी कौन सी गलती कर दी थी ? जो वो उनके मान- सम्मान से खेल गई।
मैं मानती हूं, उसने गलती की है, किंतु प्यार करना भी कोई गुनाह तो नहीं है।
इसका अर्थ तो यही हुआ, तुम उसके प्यार का समर्थन कर रही हो , यह चीज दूसरों पर लागू होती है, हम दूसरों को समझा सकते हैं किंतु जब अपने पर बितती है, तब एहसास होता है, कि उस मां-बाप पर क्या बीत ती होगी ? जिन्होंने उसको पाल-पोषकर इतना बड़ा किया। इसका अर्थ तो यही हुआ, जब तक उनकी जरूरत थी, उन्हें पूछती रही,शांत रही और उसकी आवश्यकता समाप्त हो जाने पर, उसने उनकी तनिक भी परवाह नहीं की। अरे ! इतना तो गैर भी समझ जाता है। जब कोई गैर पालता है, तो उसके शुक्रिया अदा करने के लिए भी, आदमी एक बार को उसका कहना मान लेगा। यहां तो मां-बाप ने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। उनका शुक्रिया अदा करना तो दूर, उनके जीवन से ही खेल गई।
एक सरस्वती थी, जिसने ऐसा कार्य किया ? तुम भी तो पढ़ी- लिखी हो, तुम भी उसी गांव में, अपने परिवार को छोड़कर नौकरी कर रही हो। तुम्हारा भी परिवार है, बच्चे हैं, उनसे दूर रह रही हो। पढ़ाई का तुमने कोई अनुचित लाभ तो नहीं उठाया। कोई सौ में से एक -दो लड़की ऐसी निकल जाती है, इसका अर्थ यह तो नहीं, कि उसका उदाहरण लेकर,अन्य बच्चियों को सपने देखने का अधिकार ही नहीं रहा। उड़ने से पहले ही ,उनके पंख कुतर दिए जाएं, परिणीति ने अपना पक्ष रखा। मुझे तो तुम यह बताओ ! सरस्वती दोबारा अपने घर वापस आई या नहीं , गई तो वह फिर कहां गई ?
तुम जो भी तर्क दो !किन्तु सरस्वती ने उनके साथ अच्छा नहीं किया।माता -पिता अपने बच्चे का कभी बुरा नहीं सोचेंगे। जिसमें कि वो लोग सरस्वती के भविष्य के लिए, पिता की इच्छा न होने पर भी ,सरस्वती को पढ़ने के लिए बाहर भेजते हैं और अब कोई अच्छा परिवार देखकर उसका विवाह भी कर देना चाहते थे किन्तु उसने क्या किया ?या कर रही थी।
अरे !विवाह करने के पश्चात ,तो उसे तब भी, अपने परिवार से दूर जाना ही है ,फिर चाहे' अरशद' से विवाह करके जाये या फिर किसी और से।
ये तुम कह रही हो ,विवाह करके, क्या हमारा अपने माता -पिता के साथ कोई संबंध नहीं रहा ? माता -पिता लड़का ही नहीं ,पूरा परिवार देखते हैं ,ताकि उनकी बेटी को कोई कष्ट न हो ,ऐसे में जब वो किसी अनजान लोगों और वातावरण में जाएगी तो क्या माता -पिता को ख़ुशी होगी ?ताली बजाते हुए बोली -वाह !तुम्हारी क्या सोच हो गयी है ?
वो सब मैं समझती हूँ ,किन्तु जब वो स्वयं ही, उस वातावरण में रहने के लिए तैयार है ,ये उसकी ज़िंदगी है ,ऐसे में घर का वातावरण बिगाड़ने से तो अच्छा है ,उसकी ख़ुशी में ही सबको खुश होना चाहिए।
मैं तुम्हारे विचार से सहमत नहीं हूँ ,अरे !माता -पिता का कर्त्तव्य है ,बच्चे को गलत राह से बचाकर ,उसे सही राह पर ले जाना और तुम कह रही हो ,बच्चा यदि कुएं में कूदना चाहता है ,तो उसे कूदने देना चाहिए। क्या उसे रोकना नहीं चाहिए। तुम भी न जाने क्या सोचने लगी हो ?
आजकल माता -पिता की सुनता ही कौन है ?उत्तेजित होते हुए परिणीति बोली - मैं तो आजकल के वातावरण को देखते हुए कह रही थी। यहां मैं प्रतिदिन लड़के -लड़कियों को साथ घूमते हुए देखती हूं, जिन्हें किसी से कोई मतलब नहीं है। न ही, उनके साथ कोई रोक-टोक है, बालिग़ जो हो गए हैं , अपनी इच्छा से जीना चाहते हैं। बड़ों का शर्म- लिहाज कुछ नहीं रहा है। पार्क में, हाथों में हाथ डाले ऐसे ही घूमते रहते हैं। पहले तो मुझे बहुत बुरा लगता था, किंतु अब धीरे-धीरे आदत पड़ गई है , अब यह समझदारी कह लो ! या फिर उस वातावरण से समझौता, कह सकते हैं। तब मैं भी, अपने विचारों में परिवर्तन लाई , सोचा , छोटी सी जिंदगी है, बच्चे अपनी जिंदगी अपनी इच्छा से जी रहे हैं, तो इसमें क्या बुराई है ?
समय के साथ विचारों में परिवर्तन होना स्वाभाविक है, किंतु इतना परिवर्तन भी नहीं होना चाहिए कि गलत को गलत और सही को सही न कह सकें। यहां का वातावरण थोड़ा खुला है, किंतु वह गांव है. दूर रहकर बच्चे क्या कर रहे हैं ,क्या नहीं ? यह माता-पिता को पता नहीं रहता, इस वातावरण के अनुसार ढालना नहीं कहेंगे बल्कि यह उनकी मजबूरी हो जाती है। पढ़ने के लिए या नौकरी के लिए बच्चों को बाहर भेजना। यहां जो भी माहौल, पल्लवित हो रहा है, स्वयं अपने अंदर झांक कर देखें, तो क्या यह सही है ? जबाब मिल जायेगा।
आजकल बच्चों में ''लिवइन '' चल रहा है। क्या तुम इसे सही ठहरा सकती हो ? इस रिश्ते में, कहीं भी सुरक्षा की भावना नहीं है। वही मतलबी रिश्ता हो गया, ऐसा ही कुछ बच्चों में, हर रिश्ते के साथ हो रहा है और इसी कारण से ही, विवाह भी टूट रहे हैं क्योंकि जो बच्चा, पहले ही धोखा खा चुका होता है , किसी का विश्वास खो चुका होता है , तो क्या वह आसानी से किसी अन्य रिश्ते पर विश्वास कर पाएगा। क्या ,वह किसी से विश्वास की उम्मीद कर सकता है? क्या वह खुद किसी का विश्वासपात्र बन सकता है ?सबसे पहले अपने अंदर झांक कर देखना चाहिए। हम किसी अन्य के लिए कितने विश्वास पात्र हैं ? उस रिश्ते से हमें, कितनी सुरक्षा की अनुभूति हो रही है, उस रिश्ते में अपने को सुरक्षित महसूस कर भी पा रहे हैं या नहीं। अनेक प्रश्न अनेक विचार मन में आते हैं। परिवार इसीलिए होते हैं, जो रिश्तों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।