Balika vadhu [35]

आज सरस्वती को मां का व्यवहार, कुछ बदला हुआ नजर आ रहा है। लग रहा है, मां का व्यवहार तो पहले ऐसा नहीं था। आज न जाने क्या हुआ है ? जो मां, के बर्ताव में परिवर्तन हुआ है।आज आप मुझसे  ऐसे  क्यों कह  रहीं हैं  ? आप मुझे आज कुछ ज्यादा ही समझा रही हैं , क्या प्रेम ने आपसे कुछ कहा है ?अपनी माँ को घूरते हुए सरस्वती ने पूछा। 

प्रेम, मुझसे क्या कुछ कहेगा ? यह तो तुम्हारा व्यवहार हमें दर्शा रहा है, बोली में, मिठास डालने का प्रयास तो कर रही हो लेकिन उस मिठास में भी कड़वाहट है जो सिर्फ मैं महसूस कर रही हूं। 

आप कुछ ज्यादा ही सोचने- समझने लगी हैं। 



तुम सही कह रही हो,'' उम्र और आस -पास के लोग अनुभव बढ़ा देते  हैं , और इंसान बिन कहे ही,बहुत कुछ समझने लगता है।'' दो थाली  लगाकर, अपने भैया और पापा को भोजन परोसो ! अपने पापा से पूछना - पापा, कैसे हैं ? कैसे आना हुआ ? खुश हो जाएंगे। 

मुझे किसी को खुश करने की आवश्यकता नहीं है , इसमें पूछना कैसा है ? जब आ ही गए हैं, बातचीत तो होगी ही, वैसे आप लोगों के यहां आने का कोई विशेष प्रयोजन !

वह बातें बाद में होगीं  कहते हुए अंगूरी ने, दो थालियों में भोजन परोस कर उसके हाथों में दे दी, जा !अपने पिता और भाई को दे आ। अंगूरी ने अब तक कभी भी, सरस्वती से कार्य करने के लिए नहीं कहा, वह हमेशा यही सोचती रही , अभी बालक है, फिर सारी उम्र इसे कार्य ही करना होगा। किंतु आज उसे एहसास हो रहा है, कि उससे थोड़ा बहुत कार्य करवाना भी चाहिए था ताकि उसे यह एहसास होता, कि  मां-बाप जो बच्चों के लिए परिश्रम कर रहे हैं , उसका कुछ मूल्य है , उनमें भी भावनाएं होती हैं। वे मात्र काम करने की और पैसा कमाने की मशीन ही नहीं हैं।  थाली में गरम गरमा- गरम भोजन देखकर, प्रेम की भूख बढ़ गई और प्रसन्न होते हुए बोला -आज बहुत दिनों पश्चात, पेट भरकर भोजन करूंगा। 

वैसे तो तू हमेशा भूखा ही रहता था, चिढ़कर सरस्वती बोली। 

तुमने कौन से दिन, इस तरह भोजन बनाकर खिलाया ?

सारा दिन खाली बैठा रहता है, तू भी कुछ कर लिया कर.....

पिता चुपचाप भोजन कर रहे थे और दोनों बहन- भाइयों को लड़ते हुए, देख -सुन रहे थे , तब वह बोले -सरस्वती ! तुम भी अपनी थाली ले आओ ! 

नहीं, पापा मुझे अभी भूख नहीं है, थोड़ी देर में खा लूंगी। 

सुबह से काम पर गई हुई हो, अभी भी ,भूख नहीं लगी, जाओ ! अपनी थाली ले आओ ! तुम्हारी मां क्या कर रही है? उन्हें भी बुला कर ले आओ !

सरस्वती इंकार न कर सकी और रसोई घर में गई माँ से बोली -अभी और कितना भोजन बनाना है ? पापा ! बुला रहे हैं 

तू अपना खाना लेकर जा, मैं अभी आती हूं। 

रामखिलावन जब भोजन करके उठा, बोला-इधर -उधर का कुछ भी खा लो ! किंतु तृप्ति तो घर के भोजन से ही मिलती है। देखो ! तुम्हारी मम्मी ने,कितना स्वादिष्ट भोजन बनाया है ? सरस्वती और अंगूरी दोनों साथ ही भोजन कर रही थीं। 

तभी रामखिलावन ने सरस्वती से पूछा - सरस्वती ! क्या तुम्हें वह लड़का पसंद नहीं था ?

 सरस्वती का कौर हाथ में ही रह गया, वह समझ नहीं पाई, वे यह प्रश्न क्यों पूछ रहे हैं ? हिचकिचाते हुए बोली -नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है। 

फिर कैसी बात है ?

क्यों, क्या कुछ हुआ है ?

उस लड़के ने, विवाह से इनकार कर दिया है। सरस्वती मन ही मन आश्वस्त हुई, और चुपचाप भोजन करने लगी, बोली -हो सकता है, उन्हें मैं पसंद न आई हों , सबकी अपनी-अपनी पसंद होती है, किसी से जबरदस्ती तो नहीं कर सकते। 

किंतु उन्होंने ऐसा नहीं कहा, वह तो कह रहे थे-' हमें तुम्हारी लड़की पसंद है।''

अच्छा ! नजरें झुका कर चुपचाप भोजन करती रही, उसे डर था, कहीं  उस लड़के ने मेरे विषय में कुछ बता तो नहीं दिया होगा। 

रामखिलावन सहजता से बोले -तुम्हें तो वह लड़का पसंद था, न..... सरस्वती ने कोई जबाब नहीं दिया। वह नजरें झुकाये भोजन करती रही ,तुमने तो उससे कुछ नहीं कहा, कहकर उसके जबाब की प्रतीक्षा करते  रहे। 

सरस्वती ने ,एक पल को नजरें उठाकर देखा ,पिता उसकी तरफ ही देख रहे थे। सरस्वती अपना बाक़ी का बचा, भोजन समाप्त करके उनकी नजरों से बचना चाहती थी। उसने भोजन समाप्त किया और थाली उठाकर ,उठ खड़ी हुई। तब रामखिलावन की आवाज गूँजी, तुमने कोई जबाब नहीं दिया। शायद वो भी उसके भोजन समाप्त होने की प्रतीक्षा में था। 

वो पापा !मैंने तो उससे सिर्फ़ इतना ही कहा था -मुझे अभी विवाह नहीं करना। 

क्यों ?अब क्या करना चाहती हो ?तुम पढ़ाई भी, पूरी कर चुकी हो ,नौकरी कर रही हो और क्या करना है ?

कुछ दिन नौकरी में ही व्यस्त रहना चाहती हूँ। 

क्या तुमसे लड़के ने नौकरी के लिए मना कर दिया था ?

नहीं तो..... फिर तुमने अकेले ही ये निर्णय कैसे लिया ?तुम्हें पता है ,पूरे गांव को खबर है कि सरस्वती को लड़केवाले देखने आये थे। सभी उम्मीद लगाए बैठे हैं, कि लड़केवालों ने क्या जबाब दिया ?उन्हें क्या मालूम हमारी बेटी ने ही इस विवाह से इंकार कर दिया। लड़का अच्छा पढ़ा -लिखा है। अच्छा कमाता है ,और क्या चाहिए ?चलो !हम मानते हैं ,लड़का जम नहीं रहा या कम पढ़ा -लिखा है तब तो इंकार करने का कारण बनता है। इसमें कितनी बदनामी होती है ?माता -पिता ने लड़केवालों को बेटी को दिखाने के लिए बुला लिया और बेटी ने रिश्ते से ही इंकार कर दिया। 

इसमें बदनामी कैसी ?तुनकते हुए सरस्वती बोली। 

तुम इज्जत -बेइज्जती क्या समझोगी ?सबसे पहले तो तुमने हमारा ही अपमान किया,जो हमारी पसंद के लड़के को ठुकराया ,ये बात भी  छोडो !तुमने उन मेहमानों का भी अपमान किया ,जिनको हमने बुलाया था। वे क्या ये नहीं सोचेंगे ?हमें बुलाकर इन्होने हमारी बेइज्जती की है। 

अब सरस्वती क्या जबाब देती है ?क्या रामखिलावन को अरशद के विषय में पता चल पायेगा ?या सरस्वती का विवाह उस लड़के से हो जायेगा ,आइये -आगे बढ़ते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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