घूंघट में वो ! सिमटी,लजाई सी,
कुछ सहमी,शरमाई, मुस्काई सी,
वो झीना घूंघट !मेरे दिल का अरमान था।
घूंघट में घबराया सा, वो.... मेरा चांद था।
न जाने, कितनी आशाएं, आकांक्षाएं !
लुभावने वो पल !!! और उनमें' मैं,'
घूंघट की मर्यादा को समेटे,
आशाएँ लिए सकुचाया सा मन था।
उसकी उठती, गिरती पलकें ,
मुझ पर टिकती औ झुक जातीं
घूंघट की आड़ में ,लजा जाती,
शर्म औ हया का वो ,पहने गहना ,
अरमानों भरा जीवन,भर संग रहना।
खोया -खोया सा दिल का अरमान था।
हटा घूंघट ! मेरी बाहों में मेरा चांद था।