रामखिलावन और अंगूरी अपने बच्चों से मिलने शहर में आते हैं ,वो देखना चाहते थे ,हमारे बच्चे शहर में कैसे रह रहे होंगे ?साथ ही ,बेटी से उसके दिल की बात जानना चाहते थे किन्तु वहां आकर' अंगूरी' को लगता है,उसका बेटा प्रेम कुछ कहते-कहते रुक गया। आखिर क्या बात होगी ? इसी बात को जानने की इच्छा ने उसे, सोने नहीं दिया और वो बेटे के पास पहुंच गयी। प्रेम ने माँ से आराम करने के लिए कहा ,तब वो बोली - रात को तो सोई थी, किंतु अब नींद कैसे आती ? मुझे कुछ अजीब सा लग रहा है , तुम दोनों बहन- भाई हमसे कुछ छुपा तो नहीं रहे हो, मुझे बहुत चिंता हो रही है।
नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है , प्रेम ने सोचा- जब तक सच्चाई को छुपाया जा सकता है, छुपाने का प्रयास किया जाए ,पहले दीदी से, मैं ही पूछ लूंगा कि आखिर वह चाहती क्या है ? प्रेम को चुपचाप कुछ सोचते हुए देखकर, तब एकदम से अंगूरी उसके करीब आकर बोली -मेरे सिर पर हाथ, रख कर बोल ! तुम लोग मुझसे कुछ भी नहीं छुपा रहे हो ,कहते हुए उसका हाथ तुरंत ही अपने सिर पर रख लिया, प्रेम सोच भी नहीं सकता था ,माँ इस तरह कसम खिलवाएगी ,कुछ देर वह चुप रहा।
उसको चुप देखकर अंगूरी बोली -जो कुछ भी यहाँ हो रहा है ,मुझे सब सच-सच बता !
मैं सोच रहा था -दीदी, आ जाती उनके सामने ही सारी बातें हो जातीं ।
नहीं, तब तक मुझे चैन नहीं आएगा, जो कुछ भी हो रहा है, वह तू मुझे बता दे !तेरे पापा अभी सो रहे हैं।
मम्मी ! गंभीर होते हुए प्रेम बोला-मैं जब यहां पर आया था तो मुझे देख कर दीदी खुश नहीं हुई थी, बल्कि यह कह रही थी-' कि तू अपना कहीं और जगह ठिकाना कर ले।'
क्यों, भला ! वह ऐसा क्यों कह रही थी ? क्या बहन -भाई एक साथ नहीं रहते ? तुझे देख कर खुश क्यों नहीं हुई? तू तो उसका भाई है,वो भी सगा भाई !
वह मुझे देखकर इसलिए खुश नहीं हुई, क्योंकि वह आजकल किसी और को देखकर खुश होती है।
कौन है? वो ! जिसने बहन -भाई के प्रेम को छीन लिया।
''अरशद''
आश्चर्य से, अंगूरी की आंखें फैल गईं , और बोली- कि यह 'अरशद' कौन है ?
जिससे दीदी प्रेम करती है ?
यह तू क्या कह रहा है ? क्या कोई लड़का है ?प्रेम ने हाँ में गर्दन हिलाई। क्या वह अपनी बिरादरी का है ?
''बिरादरी'' तो क्या वह अपने 'धर्म' का भी नहीं है।
उसके इतना कहते ही अंगूरी ने ''माथा पीट लिया'' और घबरा कर बोली -यदि तेरे पापा ने सुन लिया, तो कितने नाराज होंगे ? इस लड़की ने ये क्या अनर्थ कर डाला ?इन्हें पता चल गया तो..... न जाने इस घर में क्या भूकंप आ जाए? इस लड़की ने क्या कर दिया ?क्या तेरी उससे कोई बात हुई या नहीं ?
मेरी कई बार बात हुई , जब मैं कॉलिज जाता ,वो अरशद यहाँ आ जाता ,मुझे तो लगता है ,वो यहीं रहता था। इसीलिए अब मैं कॉलिज कम ही जाता हूँ।
बेटे की बात सुनकर ,अंगूरी ने उसके सिर पर हाथ रखा ,जैसे कह रही हो ,'अपने मन पर इतना बड़ा बोझ लिए बैठा था ,अपने घर की इज्जत के लिए, कितना बड़ा उत्तरदायित्व उठाये हुए था ?उसकी आँखें नम हो आईं , हम दोनों पति-पत्नी गांव में रहकर, अपने बच्चों को सुविधा देने का प्रयास कर रहे हैं। बेटी को, इसीलिए पढ़ाया- लिखाया ताकि वह अच्छे घर -परिवार में जाए ,अपने पैरों पर खड़ी हो जाए और इस शिक्षा का उसने यह लाभ उठाया, उसने क्या सीखा ? अपने ही घरवालों से, अजनबी हो गई है । मन ही मन अंगूरी घबरा रही थी, रामखिलावन को जब यह बात पता चलेगी, तो क्या होगा ? सोचकर ही, उसके आंसू निकल आए, उसे लग रहा था जैसे-संपूर्ण जिंदगी की कमाई, व्यर्थ चली गई। कोई सुनेगा तो, क्या कहेगा ? हमारे दिए संस्कार, शिक्षा, सब व्यर्थ गई।आँखों में अश्रु लिए,वह चुपचाप आकर पति के बराबर में लेट गई। बार-बार घड़ी में समय देख रही थी, आज 6 ही नहीं बज रहे थे।गांव में तो काम करते ,कितनी जल्दी छह बज जाते थे ,आज यह दिन न जाने कितना बड़ा हो गया है ?
दिन काटे नहीं कट रहा है , मन में न जाने कितना भूकंप, और उथल-पुथल मचा हुआ था। वह कार्य कर रही थी किंतु किसी भी कार्य में मन नहीं था। जैसे ही दरवाजे पर आहट होती, तुरंत ही उधर, जाती , रामखिलावन से उसका यह बदला हुआ ,व्यवहार छुपा नहीं रहा ,उसने महसूस किया कि अंगूरी, बेटी की कुछ ज्यादा ही प्रतीक्षा में है फिर सोचा -माँ है ,बहुत दिनों पश्चात मिलेगी ,तब वह बोला -बेटी की, इतनी चिंता हो रही है, आज तो तुम उससे मिल ही लोगी, तब भी परेशान हो रही हो।
क्या आपके लिए चाय बना दूं ? बातों को बदलते हुए, अंगूरी ने पूछा।
नहीं, बिटिया को आने दो ! उसके साथ ही चाय पियेंगे।
छह बजने में ,पांच मिनट ही हैं, चाय चढ़ा देती हूं ,तब तक शायद ,वह भी आ जाए, यह कहकर वह वहां से चली गई, किंतु मन ही मन सोच रही थी- न जाने, आज क्या होगा? वह क्या जवाब देगी ?
दरवाजे पर आहट होती है, उसे लगता है, शायद, सरस्वती आ गई है, बाहर से आवाज आती है -कुछ अ स्पष्ट से स्वर थे, जिन्हें समझ नहीं पा रही थी, बेटी ही होगी यह सोचकर, चाय लेकर आती है। बाहर बेटी ही थी, मां और पिता को देखकर, सरस्वती अचंभित सी हो गई , उसे कुछ समझ नहीं आया कि वह क्या करें ? भाई तो छोटा था, इसलिए उसे संभाल लिया किंतु माँ और पिता से क्या कहें ? उनके आने पर वह खुशी जाहिर करना तो दूर, नमस्ते भी करना भी भूल गयी और बोली -अरे !आप लोग आए हैं, आप लोगों ने आने से पहले कुछ बताया भी नहीं।
ट्रे से चाय उठाकर रामखिलावन के हाथ में पकड़ाते हुए ,यह बात अंगूरी ने भी सुनी ,क्यों ?बेटा !माता -पिता को अपने बच्चों ,के पास आने के लिए पहले सूचना देनी होगी ,अंगूरी ने जबाब देने से पहले,सरस्वती से प्रश्न पूछा।
नहीं, मम्मी !ऐसी कोई बात नहीं है ,मैं तो बस इसलिए कह रही थी- यदि हम दोनों चले गए होते तो, आप लोग शाम तक बाहर ही खड़े रह जाते,चाय की प्याली ट्रे में से उठाते हुए सरस्वती बोली - वो तो अच्छा हुआ प्रेम यहीं पर था।
तुम्हारा कहना सही है ,बेटा !किन्तु तुम्हारी माँ की योजना थी कि अचानक चलकर बच्चों को वो क्या कहते हैं ?एकदम से प्रेम बोल उठा -'सरप्राइज ' हाँ, वही सरप्राइज देते हैं और हमारा मिलना भी हो जायेगा।
अभी तो मिलकर आये थे ,जब आपने वो तमाशा करवाया था ,वह कुर्सी से उठकर,चाय की प्याली को रसोई में रखने चली गयी। अंगूरी को सभी बातें, प्रेम पहले से ही , बता चुका था वो अपने को मानसिक रूप से बेटी के किसी भी व्यवहार के लिए तैयार कर चुकी थी वह समझ भी गयी, वो क्या कहना चाहती है ?
