रामखिलावन का उद्देश्य तो सरस्वती को समझाना ही था किंतु सरस्वती कुछ भी समझने के लिए तैयार नहीं थी। तब उसकी मां अंगूरी को क्रोध आया , और उसने क्रोध में सरस्वती की पिटाई कर दी। पिटाई करने के पश्चात भी, वह उनकी बात मानने के लिए तैयार नहीं थी। तब रामखिलावन जी ने निर्णय लिया, अब इसकी नौकरी छुड़वाकर,इसे गांव वापस ले जाएंगे। यह सुनकर , सरस्वती ने गांव जाने से इनकार कर दिया। सरस्वती क्रोध से पैर पटकते हुए,अपने कमरे में चली गयी। दोनों पति - पत्नी समझ चुके थे ,हमने इसे छूट देकर बहुत बड़ी गलती कर दी है। अब बात हाथों से निकल चुकी है ,समझाने से काम नहीं चलेगा ,थोड़ी सख्ताई बरतनी होगी।
अगले दिन , प्रातः काल जब सरस्वती उठी और अपने दफ्तर जाने के लिए तैयार होने लगी तो रामखिलावन जी बोले -कोई जरूरत नहीं है , कहीं भी जाने की ,रात्रि में भी सरस्वती परेशान रही, ठीक से नींद भी नहीं आई और अब सुबह -सुबह वह चुपचाप तैयार होती रही। तब रामखिलावन जी बोले -अब घर जाने की तैयारी करो ! अपना सामान बांध लो !
मेरा कोई स्कूल नहीं है, जो मैं छुट्टी लूंगी, मेरा दफ्तर है और मुझे जाना होगा ।
तुम्हें एक बात समझ में नहीं आती, जब तुम्हारे पिता ने कह दिया है -हमें कोई नौकरी नहीं करवानी है, घर चलने की तैयारी करो ! इसमें कोई तर्क नहीं होना चाहिए।
अजीब जबरदस्ती है, अंदर जाकर चुपचाप सरस्वती अपना सामान रखने लगी, कुछ देर पश्चात बाहर आई और बोली -मुझे दफ्तर से फोन आया है, वे लोग कह रहे हैं, यदि नौकरी नहीं करनी, तो अपना बाकी का वेतन और अपना सामान लेकर जाओ ! वहां पर मेरे कुछ काग़ज़ भी जमा हैं ,वे भी लेकर आने हैं।
कोई बात नहीं तुम्हारा भाई जाकर ,वे कागज लेकर आ जाएगा।
आप भी न..... क्या बात कर रहे हैं ? प्रेम कैसे जाकर ले आएगा ? उसमें मेरे हस्ताक्षर भी तो होंगे। अब उनके पास उसे रोकने का कोई बहाना नहीं था , मजबूरी में अंगूरी को कहना पड़ा -अच्छा चली जा, किंतु शीघ्र आना !
सरस्वती खुश होते हुए ,तुरंत ही घर से बाहर निकली, तभी रामखिलावन जी बोले -रुको जरा ! तुम अपने भाई प्रेम के साथ जाओ ! और उसके साथ ही वापस आ जाना।
इसकी कोई जरूरत नहीं है, इसको मेरे साथ देखकर सब हसेंगे, मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूं, कहेंगे -' भाई को साथ लेकर आ रही है।'
किसी जिम्मेदार व्यक्ति का साथ में जाना जरूरी होता है।
यह जिम्मेदार है ,यदि यह किसी लड़की से प्यार कर रहा होता ,तब क्या आप लोग इसकी भी ऐसे ही निगरानी करते।
ये बात यहाँ मत करो ! तुम दोनों में हमने कभी कोई फर्क नहीं किया है , और यह भिन्नता तो ईश्वर ने ही, बनाकर भेजी है। उसे गांव से ही पढ़ाया और तुम्हें यहां शहर में रहने दिया। तो यह लड़का -लड़की की भिन्नता की बात तो तुम, करो ही मत।
तब तक तैयार होकर प्रेम भी बाहर आ जाता है, और कहता है -चलिए !
सरस्वती को गुस्सा तो बहुत आता है किंतु चुपचाप, उसके साथ चल देती है। दफ्तर के सामने जाकर उससे कहती है तुम यहीं पर रुको ! मैं अभी अपना काम करके आती हूं।
प्रेम को वहां खड़े हुए, लगभग एक घंटा हो चुका था, किंतु सरस्वती नहीं आई, तब वह, वहां के गार्ड से पूछता है -कोई सरस्वती जी यहां पर काम करती हैं, मुझे उनसे मिलना है ,वो मेरी बहन है।
यहां तो कोई सरस्वती काम नहीं करती।
यह आप कैसी बात कर रहे हैं ?
वे यहीं काम करती हैं, मेरी बहन है, मेरे साथ ही आई थी और अंदर गई थी, आप अंदर जाकर पूछिए !
'गार्ड' अंदर गया और आकर उसने बतलाया-कि यहां कोई सरस्वती काम नहीं करती है।
ऐसा कैसे हो सकता है ? प्रेम घबरा गया और उससे बोला -आप मुझे अंदर जाने दीजिये ,वो अभी एक घंटे पहले ही तो अंदर गयीं हैं ,कह रहीं थी -अभी आती हूँ।
अरे !आप इस तरह अंदर नहीं जा सकते,थोड़ा इंतजार कर लीजिये। जब गयी है तो इसी दरवाजे से बाहर भी आएगी। तब प्रेम, बाहर खड़ा रहा और आते -जाते लोगों को देखता रहा , उसे एक उम्मीद थी, कि कुछ देर पश्चात और आएंगीं। उसे ढूंढने कीअपनी तरफ से उसने कोशिश भी की थी किंतु सरस्वती नहीं मिली।तब उसने सरस्वती को फोन लगाया ,तो उसने फोन नहीं उठाया। घबराता हुआ, वह घर पहुंचा और बोला - दीदी !भाग गयी।
तू, ये क्या कह रहा है ?होश में तो है ,रामखिलावन जी बोले।
वह दफ्तर ही दीदी का नहीं है, न जाने मुझे किस इमारत के सामने खड़ा कर दिया और स्वयं न जाने कहां से निकल गई ?
बात सुनकर दोनों पति-पत्नी चिंतित हो उठे, और बोले -तुमने उसे आसपास, इधर-उधर कहीं देखा था या नहीं।
मैंने सब जगह ढूंढ लिया किंतु कहीं भी नहीं दिखाई दे रही, न जाने भीड़ में कहां गायब हो गई ?मैंने उन्हें फोन भी लगाया किन्तु फोन भी नहीं उठा रहीं।
तू इतने दिनों से यहां रह रहा है, तूने आज तक, उसके दफ्तर का नाम जानने का प्रयास ही नहीं किया। रामखिलावन जी परेशान होते हुए बोले।
अरे! कैसे पूछता ? जब से यहां आया हूं, कभी सीधे मुंह बात तो की नहीं है। मुझे देखकर परेशान हो गई थी, मुझे तो लगता है, मेरे आने से उनकी परेशानी ही बढ़ी। मुझसे हमेशा खफा रहती थी, और मुझे तो लगता है -वह अरशद भी यही रहता था ,क्रोध में आकर प्रेम ने अपना शक भी जाहिर कर दिया।
जिसे सुनकर, अंगूरी माथा पकड़ कर बैठ गई। हाय राम ! यह लड़की न जाने कौन से दिन दिखला कर छोड़ेगी ? अब क्या होगा ?
थोड़ी प्रतीक्षा कर लेते हैं, वरना पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे।
यह आप क्या कह रहे हैं ?बात पुलिस तक नहीं पहुंचनी चाहिए। दोनों बाप -बेटा बाहर जाकर उसे ढूंढ़ लाओ !वो हमारे कलेज़े का टुकड़ा है ,थोड़ा रास्ता भटक गयी है। पुलिस में जाने से बहुत बदनामी हो जाएगी।
सही तो कह रहा हूं, वह यहां से बहाना लेकर गई है और उस ''अरशद'' के पास पहुंच गयी होगी ,होगी क्या उसके पास ही गयी है ,वे विश्वास के साथ प्रेम से बोले। क्या तू इतना भी नहीं जानता ?वो अरशद कौन है ? कहाँ रहता है ? गुस्से से प्रेम पर भड़कते हुए रामखिलावन जी ने पूछा।
उसे मैंने यहीं पर, एक बार देखा था, जब मुझे कुछ शक हुआ तब मैं कॉलेज जाना ही कम कर दिया, जिस इंसान ने ठान लिया है कि मुझे अपनी जिंदगी बर्बाद करनी है , उसके पीछे कहां तक घूमेंगे ?
जब तुझे इस विषय में पता चल गया था, तो तूने हमें क्यों नहीं बताया ?