Balika vadhu [34]

अचानक ही, रामखिलावन और उसकी पत्नी अंगूरी, अपने बच्चों के पास शहर में पहुंच गए। उन्हें इस तरह अचानक आया हुआ देखकर, सरस्वती को अच्छा नहीं लगा, किंतु माता-पिता हैं ,कुछ कह भी नहीं सकी। किंतु उसके व्यवहार से, स्पष्ट पता चल पा रहा था, कि वह अपने परिवार को देखकर प्रसन्न नहीं है, किंतु अंगूरी को प्रेम ने पहले ही, सब कुछ बता दिया था, इस कारण अंगूरी, उसके इस व्यवहार को समझ रही थी। मां थी, इसीलिए उसके व्यवहार को झुठला देना चाह रही थी,हो सकता है ,उसके मन की बात भी जानना चाहती हो ,तब किसी निर्णय पर पहुंचे। पिता के सामने से उठकर सरस्वती ,इस तरह गई, उसका ये व्यवहार अंगूरी को अपने पति का अपमान लगा। वह भी, अपनी बेटी के पीछे-पीछे रसोईघर में गई और सरस्वती से बोली -तुम यह क्या कह रही हो ? हमने कौन सा तमाशा किया था ?

वही लड़का देखने- दिखाने का...... 



क्या यह तमाशा होता है ? क्या तुझे बात करने की बिल्कुल भी, तहजीब नहीं रही ? अपने पिता के सामने कैसे बातचीत कर रही थी ? वे कितना प्रसन्न हो रहे थे, कि हम बच्चों के पास जा रहे हैं और तुम ऐसा व्यवहार कर रही हो, जैसे- हमने यहां आकर कोई गलती कर दी हो। 

नहीं, पापा तो आपका नाम ही ले रहे थे, आपने  ही यहाँ आने की योजना बनाई। 

तो क्या हुआ ? बड़े लोग तो ,ऐसे ही कहते हैं , किंतु क्या उनकी इच्छा नहीं होगी, अपने बच्चों से मिलने की। मान लो ! मैंने ही अपने बच्चों से मिलने की इच्छा जाहिर की ,तो क्या कोई गलती कर दी ? तुमने एक बार भी अपने पापा से नमस्ते की, उनसे प्यार से बोली, अपने पापा से पूछा -कि पापा ! आप कैसे हैं ?

मम्मी! मैं अभी तो अपने ऑफिस से थक कर आई हूं, आप अपनी शिकायतों का पिटारा लेकर बैठ गईं । 

यह शिकायत नहीं है, जैसे माता-पिता थककर भी, अपने बच्चों के प्रति, अपना कर्तव्य निभाते हैं ,इसी प्रकार तुम्हारा भी कर्तव्य बन जाता है कि अपने व्यवहार से अपने माता-पिता को किसी प्रकार का कष्ट ना दें।

 सरस्वती को कोई भी जवाब नहीं सूझ रहा था, तब वह बोली - मैं अंदर जा रही हूं , कपड़े बदलकर,थोड़ा आराम करूंगी। 

अभी तुम इतनी बड़ी -बूढ़ी भी नहीं हो गई हो, मुझे देखो, मैं जब से गांव से आई हूं तब से, किसी न किसी कार्य में व्यस्त हूं। अब तुम आई हो तो अपने पिता के पास बैठो, उनसे बातचीत करो ! हम लोग, तुम लोगों से ही तो मिलने आए हैं , भोजन करके आराम ही करना है। यदि बात नहीं करनी है तो मेरे कार्य में हाथ बटाओ ! जब मैं नहीं होती, तो क्या तुम भोजन नहीं बनाती हो, खाती भी नहीं हो। 

सरस्वती क्या कहती ? उसे लगा यदि कुछ कह दिया और भैया ने कुछ बता दिया तो कहीं बात उल्टी ही ना पड़ जाए, इसलिए वह चुपचाप अपने कमरे में कपड़े बदलने चली गई। कपड़े बदलने के पश्चात उसका बाहर आने का मन नहीं था,वह अपने माता -पिता से बातचीत ही नहीं करना चाहती थी। न जाने , दूर रहकर बच्चों का मन कैसे अपनों से कतराने लगता है ? उसे माता-पिता के आने की खुशी होनी चाहिए किंतु मन में कोई भाव ही नहीं है। सब अपरिचित से लगते हैं, बल्कि लगता है, इन्हें यहां आना ही नहीं चाहिए था। क्या यह, मेरी गलती है?

देखा मम्मी ! मैं कह रहा था,न.... दीदी अब पहले जैसी नहीं रही , उसके व्यवहार में बहुत बदलाव आ गया है, उसे लगता है, अब हम उसका परिवार ही नहीं रहे। 

दूर रहकर बच्चों के साथ, ऐसा ही होता है, जिसमें कि उसकी उम्र भी, उस दौर से गुजर रही है, जहां इंसान अपने सही और गलत की पहचान नहीं कर पाता है, अंगूरी प्रेम को समझा रही थी -' सभी बच्चों का व्यवहार एक जैसा नहीं होता, कुछ बच्चे तो अपने माता-पिता से मिलने के लिए तड़पते रहते हैं। आते ही गले मिलते हैं किंतु इसकी जिंदगी में, अब कोई और आ गया है जो हमसे महत्वपूर्ण है, उसके कारण इसके  इस व्यवहार में बदलाव आया है। जाओ ! उससे कहो , खाना बनवाने में मेरी मदद करेगी। अब तक मैं उसे बच्ची समझ रही थी, तो उससे  कार्य नहीं करवाती थी , यह मेरा प्यार था, मेरी ममता थी किंतु वह नहीं जानती है, यदि वह कठोर होगी, तो मेरी' ममता' भी कठोर हो जाएगी। अब इतनी छोटी भी नहीं रही, कि मैं खाना बनाकर परोसती रहूं। उसके जितनी मैं एक बड़ा परिवार संभालती थी, उसे यहाँ भेज...... हम मिलकर भोजन करेंगे।

 मां की बात सुनकर, प्रेम, सरस्वती को बुलाने चला गया।सरस्वती अपने कमरे में ,खिड़की के पास फोन लिए खड़ी थी।   अरे ! आप यहां क्या कर रही हो ? इतनी देर से मम्मी, आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं।  चलो ! खाना बनाने में उनकी मदद करो !

 बना तो रही हैं, वहां  जाकर, मैं ही क्या कर लूंगी ?

यह सब मुझे नहीं पता, मम्मी ने बुलाया है, जाकर उनके कार्य में हाथ बटाओ !

 तुम चलो ! मैं आती  हूं, तभी वह किसी को फोन करती है, फोन नहीं लगता है, तो वह झुँझला जाती है। पता नहीं यह अरशद भी न जाने कहां रहता है ? तभी उसे अंगूरी का स्वर सुनाई दिया -सरस्वती ! जरा इधर आना तो....... 

इन्हें आज मेरे ही हाथ का खाना, खाना है। मुँह बनाते हुए बोली - आती  हूं,यह कहकर वह फोन, बिस्तर  पर पटक कर बाहर चली जाती है। रसोई में पहुंचकर माँ से बोली -अब क्या हुआ ? क्यों इतनी आफत मचा रखी है ?

क्यों, क्या तुम्हें भूख नहीं लगी है ?

 नहीं, मुझे अभी भूख नहीं है। 

कोई बात नहीं, अपने पापा और भैया को भोजन परोसो  ! जब दौड़-दौड़ कर काम करोगी। तो स्वयं ही भूख लग जाएगी। तुझे तो स्वयं ही कहना चाहिए था कि मम्मी ,आप हटो ! मैं भोजन बनाती हूं , जब भी तू मुझसे मिलने गांव आई थी, तो मैं ही खाना बनाती थी , कभी तुझसे  नहीं कहा- कि खाना बना और खा ले  !

मम्मी आप भी न...... , यह  क्या बेतुकी बातें करने लगीं हैं ?

ये बातें बेतुकी नहीं हैं , इससे भाव समझ आते हैं , तुम्हारे मन में अपने मां-बाप के प्रति प्रेम होता , तो तुम्हें एहसास होता कि पहली बार मेरे माता-पिता मेरे पास आए हैं , अब मम्मी उम्र भी हो गई है ,उनके पास बैठती  हूं ,बातें करती हूं  और भोजन बनाकर खिलाती हूँ , किंतु तुम्हारे मन में तो, वह भाव ही नहीं है।'' जब मन में भाव अच्छे होते हैं, विचार अच्छे होते हैं, तो व्यवहार स्वतः ही अच्छा हो जाता है। '' 

क्या ?अब भोजन करते समय उस बात को छेड़ा जायेगा, जिसके लिए दोनों पति -पत्नी बच्चों के पास आये हैं। अंगूरी जवान लड़की के साथ ,समझदारी से काम लेने का प्रयास कर रही है ,क्या वो इसमें सफल हो पायेगी ? सरस्वती का क्या जबाब होगा ?जानने के लिए चलिए आगे बढ़ते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post