Balika vadhu [30]

परिणीति माथुर '' पूनिया''गांव में क्या आई ? आते ही, उसने हलचल मचा दी, उसने वहां पर देखा -जहाँ हमारा देश कितनी उन्नति कर रहा है ,लोग ''मंगल ग्रह'' तक पहुंच चुके ,ऐसे समय में ,उस गांव में, आज के समय में भी'' बाल विवाह ''हो रहे हैं। दिल्ली आकर ,इसके विरुद्ध परिणीति ने, एक लेख लिखा ,जिसके कारण, ''बचपन बचाओ संस्था ''के सदस्य सक्रिय हो जाते हैं। उसकी इस हरकत के कारण, गांव में रहने वाली, गांव के विद्यालय की अध्यापिका सुनीता ,को जवाब देना पड़ गया क्योंकि ''परिणीति माथुर,'सुनीता की ही रिश्तेदार है। गांव में आगे कुछ बवाल न हो इसीलिए, गांव के चौधरी 'अतर सिंह जी 'जो कि ''ग्राम पंचायत ''के सदस्य भी हैं और उनकी पत्नी देवयानी, सुनीता से ही ,परिणीति को समझाने के लिए कहते हैं।


आज रविवार की छुट्टी है, चौधरी अतर सिंह जी के यहां से सुनीता के लिए संदेश आया था। न जाने, मुझे क्यों बुलाया है ? सुनीता समझ तो रही थी, परिणीति के कारण ही, यह सब हो रहा है। अब न जाने क्या विपदा आ गई ? जो मुझे इस तरह से बुलाया गया है , मन में अनेक विचार चल रहे थे, हलचल हो रही थी, न जाने क्या -क्या सुनने को मिलेगा ? न जाने, वे लोग क्या कहेंगे ? जब वह चौधरी अतर सिंह की हवेली पर पहुंचती है, तब उनकी पत्नी देवयानी, उससे अच्छे से बात करती है और सुनीता से कहती है -अपनी उस रिश्तेदार को समझाओ ! हमारे गांव के रीति -रिवाज अलग हैं , हमारे बड़ों ने जो भी निर्णय लिया है, देश के लिए तो नहीं कह सकते किंतु इस गांव की भलाई के लिए आवश्यक है। इस गांव की बहू- बेटियों के लिए जो उचित होगा, वही सोचकर उन्होंने निर्णय लिया है। किंतु दृष्टि के विवाह में, जो भी घटनाएं अथवा दुर्घटनाएं हो रही थीं , वह उचित नहीं था किंतु हमने आपके कारण, सब सहन किया। आप दो-तीन वर्षों  से इस गांव में रह रही हैं कभी हमारे मान सम्मान में, या हमारे व्यवहार में ,आपको कुछ भी गलत लगा हो तो हमें बताइए !

नहीं ,इस गांव के लोग, बहुत अच्छे हैं , आप लोगों ने भी हमेशा साथ दिया है ,हमारी आवश्यकताओं का ख्याल रखा ताकि हमें इस गांव में रहकर कोई परेशानी न हो, सुनीता ने जवाब दिया। 

तब आपको अपनी बहन को समझाना चाहिए, उचित -अनुचित ,अच्छा- बुरा हम भी समझते हैं। हम कानून के विरुद्ध नहीं हैं , किंतु यह हमारे गांव का कानून है। इसमें कोई दखलंदाजी करें,यह हमें पसंद नहीं है। हम बच्चियों की शिक्षा के विरुद्ध नहीं हैं, किंतु हम उन्हें अपने तरीके से, परवरिश देना चाहते हैं। इसमें किसी बाहरी व्यक्ति को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। तब वह इस कानून को बनाने का कारण भी ,सुनीता को बताती हैं , जिसे सुनकर सुनीता को भी लगता है ,जो भी हो रहा है ,उचित ही है। उनके कहे अनुसार एक दिन सुनीता, परिणीति को, उस गांव की कहानी बताती है -कि  किस कारण से, गांव के लोग आज भी ''बाल विवाह ''की प्रथा को बनाए रखना चाहते हैं। 

तब वह एक लड़की सरस्वती की कहानी परिणीति को सुनाती है -सरस्वती को देखने के लिए लड़के वाले आते हैं किंतु कुछ भी जवाब दिए बगैर चुपचाप चले भी जाते हैं , तब परिणीति पूछती है, आगे क्या हुआ ? क्या सरस्वती ने अपने माता-पिता के कहने पर विवाह कर लिया ? या नहीं ! या उसने अरशद से विवाह किया ,उत्सुकता से परिणीति ने सुनीता से पूछा। 

 उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया, पता नहीं, उनके मन में क्या चल रहा होगा ? मैं तो सोच रही थी- कि तुरंत ही जवाब दे देंगे। अपनी बेटी की तरफ देखकर सरस्वती की माँ बोली -हमारी बेटी में, क्या कोई कमी है ? उनका लड़का पढ़ा -लिखा, समझदार है, तो हमारी बिटिया भी कोई कम नहीं है। वह भी पढ़ी -लिखी है शहर में नौकरी करती है और क्या चाहिए ?

तुम कुछ देर शांत भी रहोगी, अरे उन्हें सोचने -समझने का मौका तो दीजिए, आपस में सलाह -मशवरा करेंगे ,एक-दो दिन में जवाब दे देंगे। पत्नी की बेचैनी को देखकर, रामखिलावन कहता है। 

आसपास के घरों में भी चर्चा हो जाती है और लोगों को पता भी चल जाता है कि सरस्वती को लड़के वाले देखने आये थे , किंतु अभी कोई जवाब नहीं दिया है।गांव में ,ऐसी बातें छुपती ही कहाँ है ?कोई छुपाना भी नहीं चाहता ,छुपायेगा वो..... जिसके मन में छल होगा।  

अतरी ताई!जिन्हें सारा गांव इसी नाम से जानता है ,वो थोड़ा रामखिलावन के घर से दूर रहतीं हैं ,आज उन्होंने पुष्पा को देखा ,जो रामखिलावन के घर के नजदीक ही रहती है। तब वे उसे देखकर पूछती हैं -पुष्पा !ओ पुष्पा ! सरस्वती को देखने लड़केवाले आये थे ,उन्होंने क्या जबाब दिया ?

मुझे तो लगता है, उन्हें लड़की पसंद नहीं आई, वरना तुरंत ही जवाब दे देते,पुष्पा अपना अंदाजा लगाकर ताई से कहती है। 

लगता तो कुछ ऐसा ही है, किंतु आजकल पढ़े-लिखे बच्चों का कुछ पता नहीं चलता, किसी के मन में क्या चल रहा है? कहा नहीं जा सकता। रामखिलावन की बहू तो कह रही है -उन्होंने कहा है, एक-दो दिन में जवाब देंगे। हर किसी को लड़की का शहर में रहना भी, अच्छा नहीं लगता है -लड़की अकेली शहर में रहती है, न जाने, किस- किससे, मिलती- जुलती होगी? कैसे लोगों में उठती- बैठती होगी ? बाहर घूमने वाली हुई तो घर कैसे संभालेगी ?

ताईजी !यह तो सब की, अपनी-अपनी सोच पर निर्भर करता है, किसी को पढ़ी-लिखी लड़की चाहिए किन्तु आजकल अनपढ़ लड़की से भी कोई विवाह नहीं करना चाहता ,अब लड़की जाए तो जाए कहां ?

लड़का भी तो पढ़ा -लिखा है ,सभी ऊंच -नीच समझता होगा। रामखिलावन भाईसाहब ,ने पहले ही सब बता दिया होगा ,तभी तो ये लोग आये। पहले कमाने के लिए, पति ही,घर से बाहर निकलता था ,उसी की कमाई से घर चल जाता था या घर बैठे ही, लड़की कोई न कोई कार्य कर लेती थी किंतु आजकल ऐसा नहीं है, अब तो दोनों पति-पत्नी न कमायें तो घर के खर्चे पूरे नहीं होते। सभी के शौक भी बढ़ गए हैं ,अपने शौक पूरे करने के लिए, और वह भी शहर में दोनों आदमियों को कमाना पड़ता ही है। चलो देखते हैं ! एक-दो दिन में क्या जवाब आता है ?मुझे तो अपनी चिंता हो रही है ,अपनी बिट्टो का क्या होगा ? 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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