Balika vadhu [28]

सरस्वती और प्रेम, अपने गांव जाने वाली सड़क पर बस से उतरते हैं और गांव की ओर प्रस्थान करते हैं। घर के करीब पहुंचकर, सरस्वती को अजीब सा लगता है। ऐसा लगता है, कि जैसे किसी बड़े कार्यक्रम की तैयारी हो रही हो ,तब वह प्रेम से पूछती  है -हमारे घर पर क्या हो रहा है ?

तुम्हें बताया तो था -पूजा की तैयारी हो रही है। 

 हां,वह तो  मैं तो भूल ही गई थी किन्तु पूजा के लिए इतना सब.......  

अपने घर -परिवार में तुम्हारा ध्यान हो तो, याद भी रहे, तुम्हारा तो अपने गांव और परिवार से मन ही उचट गया है। जब दोनों घर पहुंचते हैं, माता-पिता अत्यंत प्रसन्न होते हैं और कहते हैं -समय से आ गए, अब दोनों झटपट से तैयार हो जाओ !मेहमान आते ही होंगे। 


सरस्वती ने सोचा- पूजा के लिए गांव के लोगों को भी ,बुलाया होगा उनकी दावत भी होगी, इसलिए तैयार होने के लिए कह रहीं हैं किंतु जब मां ने उसे साड़ी दी तब वह चौंक गई और बोली- यह साड़ी मुझे क्यों पहन नी है ? मैं तो सूट पहनती हूं। 

क्या तुझे नहीं पता ?आज तुझे लड़केवाले देखने आ रहे हैं ? तुझे प्रेम ने कुछ नहीं बताया। 

नहीं, प्रेम ने मुझसे  कुछ भी नहीं बताया है, वह तो कह रहा था -घर में कोई पूजा है। 

मजाक कर रहा होगा , आज तुझे देखने के लिए लड़के वाले आ रहे हैं ,लड़का बहुत बड़ी कंपनी में इंजीनियर है।तुम दोनों पढ़े -लिखे हो, नौकरी करोगे , तुम अपने घर -बार की हो जाओगी फिर हमारी चिंता समाप्त हो जाएगी। इतने दिनों से तुम शहर में रह रही थी, किंतु तब हमें लगता था, कि कम से कम हॉस्टल में रह रही हो, सुरक्षित हो किंतु अब तो हमेशा, दिमाग में परेशानी सी महसूस होती है कि  जवान लड़की अकेली, शहर में कैसे रह रही होगी ?

दुनिया रह रही है ,मैं कोई अलग से नहीं रह रही हूं ,खीझते हुए सरस्वती बोली। 

हाँ ,दुनिया तो न जाने कहां-कहां रह रही है? किंतु हमें तो अपने बच्चों का ध्यान रखना होगा। अब तुम्हारी उम्र हो गई है, तुम सही- सलामत अपने ससुराल पहुंच जाओ हमारे लिए, यही बहुत है। 

अभी मुझे विवाह नहीं करना है। 

 क्यों? क्यों विवाह नहीं करना है, पढ़ -लिख लीं , नौकरी कर रही हो और क्या चाहिए ? उम्र बढ़ती जाती है, समय से विवाह होना उचित रहता है। जाओ !जाकर, तैयार हो जाओ ! वे लोग आते ही होंगे। 

आप लोगों ने उन्हें बुलाने से पहले, मुझसे एक बार भी नहीं पूछा। 

इसमें पूछना क्या है ? क्या अपनी जिम्मेदारियां को निभाने के लिए ,हमें तुमसे इजाजत लेनी होगी ? 

किंतु विवाह तो मेरा हो रहा है, और जिंदगी भी मेरी है।

 जिंदगी तुम्हारी है, किंतु इसे जीवन हमने दिया है, इस पर हमारा इतना अधिकार तो बनता ही है, इस अधिकार के नाते, तुम हमें अपने उत्तरदायित्व को पूर्ण करने दो ! जल्दी जाओ !तुम्हारे पिताजी नाराज हो जाएंगे कहते हुए मां, जल्दी से बाहर की तरफ गई, कहीं मेहमान न आ गए हों । 

बिस्तर पर पड़ी हुई साड़ी को देखकर, सरस्वती को क्रोध आता है और साथ ही उसे प्रेम पर भी क्रोध आता है मुझे बहकाकर यहां ले आया। 

पहले तो सरस्वती ने वह साड़ी उठाई और फिर से पलंग पर फ़ेंक दी ,तुरंत ही मन में विचार आया ,मुझे समझदारी से कार्य करना होगा ,कहीं बात बिगड़ न जाये,ये सोचते हुए, सरस्वती चुपचाप तैयार होने लगी। धीरे-धीरे लोग आने लगे, आसपास के लोगों को पहले से ही पता चल गया था। आज लड़केवाले सरस्वती को देखने आ रहे हैं। साथ के लिए, एक दो लोगों को उन्होंने बुलाया भी था। सभी तैयारियां अच्छे से हो रही थीं। बस अब लड़के वालों की प्रतीक्षा हो रही थी। कुछ देर पश्चात ही एक लड़का का दौड़ता हुआ आया और बोला -चाचा ! मेहमान आ गए। 

अच्छा, यह कहकर सभी परिवार वाले, सक्रिय हो गए। हलवाई से भी , गरमा -गरम नाश्ता तैयार करने के लिए बोल दिया। सरस्वती की मां तुम अंदर जाकर देखो !तुम्हारी बिटिया तैयार हो गई या नहीं , बस यही उम्मीद करते हैं कि लड़के को लड़की देखते ही पसंद आ जाए। कुछ देर पश्चात ,घर के सामने एक गाड़ी आकर खड़ी हो गई। उसमें से एक लड़का, एक अधेड़ पुरुष एक अन्य और लड़का और दो महिलाएं बाहर आईं। सरस्वती की मां उनमें से किसी को भी नहीं जानती थी, उनके एक कमरे की खिड़की, उस सड़क की ओर खुलती थी , जिससे वहां से आते-जाते लोगों को देखा जा सकता था इसलिए वह इस खिड़की में से खड़ी होकर, उन लोगों को देख रही थीं और उत्सुकता से, सरस्वती से बोली -सरस्वती इधर आ ! देख शायद वह लड़का है जो नीले सूट में है। सरस्वती आना तो नहीं चाहती थी, किंतु मां के कहने पर उसनेअनमने भाव से , खिड़की से बाहर झाँका। 

है न, लड़का सुंदर ! कितना अच्छा लग रहा है ? तुम दोनों की जोड़ी बहुत ही अच्छी लगेगी। 

सरस्वती ने लड़के को देखा ,लड़का पढ़ा -लिखा,आकर्षक लग रहा था, किंतु वह तो अरशद से प्यार करती है ऐसे में वह कैसे, किसी और लड़के को देख सकती है ? हालाँकि यह अरशद से ज्यादा पढ़ा- लिखा, आकर्षक व्यक्तित्व का है किन्तु अरशद भी किसी से कम नहीं, वह तो सारा दिन दुकान पर बैठा रहता है। उसकी जान को अनेक परेशानियां है, वरना वह भी, इससे कम नहीं, मन ही मन सरस्वती ने अपने मन को समझाया। वह तो अपने अरशद की हो चुकी है। अब चाहे कोई भी आये ,अरशद ही उसका पति होगा। मन ही मन उसने कुछ निश्चय किया और खिडकी से पीछे हट गयी।

 बेटी के हटते ही, माँ ने पूछा -बता तुझे लड़का केेसा लगा ?

ठीक है ,कहकर सरस्वती चुपचाप बैठ गयी माँ को चिंता हुई और बोली - तू इस तरह चुप क्यों है क्या तुझे लड़का पसंद नहीं है ?पढ़ा -लिखा है ,देखने में भी अच्छा है ,परिवार भी अच्छा है ,अच्छा कमाता है और क्या चाहिए ?

ज़िंदगी में यही सब नहीं होता ,इंसान की अपनी इच्छा भी होती है ,उसका स्वभाव भी होता है। मान लो !ये देखने में अच्छा है ,व्यवहार में अच्छा न हुआ। 

यह सब तो बाद में पता चलता है ,किसी भी लड़के अथवा लड़की का व्यवहार उसके प्रति या परिवारवालों के प्रति केेसा  है ?इसीलिए तो घरवालों का यही प्रयास रहता है कि उनकी बेटी को पति और बेटे को बहु अच्छी मिले। बेटा !यह तो एक लॉटरी है ,यह कैसी खुलती है ?किस्मत की बात है। अब इसमें कुछ नहीं किया जा सकता इसीलिए परिवार और ख़ानदान देखकर ही ,विवाह करते हैं।

इतना सब करना ही ना पड़े, यदि विवाह से पहले लड़का- लड़की एक दूसरे को पहले से ही देख लें, मिलकर बातें कर लें।

 इतना सब ,देख समझ कर भी, हमने यही सोचा -अब बच्चे पढ़ -लिख कर समझदार हो गए हैं , तो क्यों न एक दूसरे से मिलवा दिया जाए ?ताकि दोनों आपस में एक -दूसरे को समझ सकें। बेटा ! माता-पिता अपने बच्चों के दुश्मन नहीं होते , समय के साथ अपने बच्चों के लिए, अपनी सोच भी बदल लेते हैं। हमारे समय में तो माता-पिता ने अपनी तरफ से जिससे विवाह तय कर दिया ,वही ठीक है। तेरे पापा को मैंने विवाह के बाद ही देखा था। उससे पहले किसी के कहने पर, बस उनकी तस्वीर दिखाई थी।            


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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