'मन' कितना शैतान होता है ? जगह -जगह भागता रहता है। इंसान अपने इसी' मन' के वशीभूत हो ,न जाने क्या -क्या कर जाता है ?जिनकी 'सकारात्मक 'सोच होती है ,वे अपने मन को मना भी लेते हैं किन्तु जो 'नकारात्मकता; से भरे हैं ,वे अपने मन के अधीन होकर रह जाते हैं। मन जो चाहता है ,करते हैं ,इससे उनको ख़ुशी और सुकून का एहसास होता है। किसी को दर्द देना ,उसके गमों को बढ़ाना ,उन्हें अपने कार्य को करवाने के लिए मजबूर करना और कोई भी कार्य कर ,सफाई से निकल जाना। ये सब उन्हें सुकून देता है ,ऐसे लोगों को अपनी गलतियों का एहसास भी नहीं होता है ,न ही पछतावा !ये सब उनके'' शैतानी मन'' की ही तो कारस्तानी है।अपनी सुख -सुविधाओं ,अपनी इच्छाओ को सर्वोपरी रखते हैं। ''शैतानी मन'' ''न जाने कब कैसी चाल चले ? कोई नहीं समझ सकता। कहते हैं न...... '' मन के हारे हार है , मन के जीते जीत। '' मन में ही इतनी शक्ति होती है -यदि ये हार जाये तो, तो इंसान नकारात्मकता के अंधेरों में खोकर रह जाता है। यदि यही नियंत्रित कर लिया जाये तो जीत का प्रकाश भी यही देखता है।
कहने को तो सभी कार्य ,इंसान ही करता है किन्तु वह अपने विचारों और मन के वशीभूत रहता है। जैसे अनुभव उसे जीवन में मिलेंगे ,उनके आधार पर उसकी एक अगल सोच बनती चली जाती है।कभी -कभी यह सब उसके आस -पास के वातावरण पर भी निर्भर करता है और कभी मिलने वाले नए -पुराने रिश्तों का अनुभव उसे एक दिशा प्रदान करता है। अब वह दिशा उचित भी हो सकती है और अनुचित भी !कई बार परिस्थितियाँ ऐसी हो जाती हैं कि इंसान की सही सोच ,कब नकारात्मकता में बदल जाती है ?वह स्वयं ही नहीं समझ पाता है और यदि उसका वह ''शैतानी मन ''उस पर हावी हो गया ,तब एक नया रास्ता बनता है ,जिस पर हर कोई चलना नहीं चाहेगा , सामान्यजन की नजर में वह गलत राह हो सकती है किन्तु उसके लिए वही उचित है ,जो घटनाएं उसके जीवन में घटीं ,जो उसने महसूस किया ,यह तो सिर्फ़ वही जानता है। तब बनती है ,एक कहानी ! किसी के लिए अत्याचार !किसी के लिए बदला !
आख़िर यह लड़का कहां गया ? अब तो उन्हें घबराहट होने लगी। त्यौहार का दिन हैं , मैंने पचास बार कहा है-त्योहार के दिनों में , घर से बाहर नहीं निकलते हैं ,किंतु मेरी सुनता ही कौन है ?घबराकर रचित की मम्मी बोली। अब उन्हें चिंता होने लगी थी ,आख़िर बिन बताये रचित कहाँ चला गया ? अब तो उन्हें अपनी लापरवाही पर भी मन ही मन क्रोध आ रहा था। बस यही सोचती रही ,होगा कहीं दोस्तों में ,आ जायेगा।
तपेश जी को भी ,अब घबराहट हो रही थी, तपेश जी के पास उसके जितने भी दोस्तों के नंबर थे ,सभी के फोन लगाए और जिनके नंबर नहीं जानते थे ,उन्हीं दोस्तों से पूछ -पूछकर फोन लगाया किंतु सब ने यही कह दिया -अंकल ! हम नहीं जानते ,वह हमसे मिलने नहीं आया। हम लोग तो परसों ही, एक साथ मिले थे। उसके पश्चात, हमारी एक बार भी ,फोन पर बात हुई है और न ही, हम मिले हैं।
नितिन के घर के फोन की घंटी बजी, नितिन के पापा ने फोन उठाया -हेलो !
हेलो नमस्कार जी ! मैं रचित का पापा बोल रहा हूं, क्या हमारा रचित वहां आया था?
आपका रचित तो यहां नहीं है , क्यों क्या हुआ ?
कल से रचित घर नहीं आया है, हम सोच रहे थे -किसी दोस्त के पास गया होगा,आ जायेगा किन्तु जब रात्रि में भी नहीं आया ,तब हमें चिंता होने लगी।
क्या बात कर रहे हैं ? आपका बेटा कल से घर नहीं आया है और आप अब पूछताछ कर रहे हैं। कितनी बड़ी लापरवाही है ?त्यौहार के दिनों में कहाँ जा सकता है ?आप उसे फोन लगाइये !उन्होंने सुझाव दिया।
घबराहट के कारण रचित के पापा की आवाज काँप रही थी,बोले -जी, उसका फोन भी नहीं लग रहा है और मैंने उसके दोस्तों से भी पूछा ,उनमें से किसी को कुछ भी मालूम नहीं है इसीलिए नितिन को फोन किया ,शायद उसे कुछ मालूम हो !
तभी नितिन सीढ़ियों से नीचे उतरता उन्हें दिखलाई दिया ,नरेंद्र जी तुरंत ही बोले -लीजिये !नितिन भी आ गया ,आप उसी से पूछ लीजिये !नितिन को उनके वार्तालाप के विषय में कोई भी जानकारी नहीं थी। तब वह इशारे से अपने पापा से पूछता है ,कौन है ?
रचित के पापा हैं ,ले उनसे बात कर ,कहते हुए उन्होंने उसे फोन का रिसीवर उसे थमा दिया।
हैलो !
हैलो !नितिन बेटा !रचित कहाँ है ?उन्होंने उससे सीधे -सीधे यही प्रश्न किया जिसके कारण नितिन अचकचा गया और बोल उठा -मुझे क्या मालूम ?
ऐसा मत कहो !मुझे तुमसे ही उम्मीद थी ,कि तुम मुझे सकारात्मक जबाब दोगे ,क्योंकि तुम उसके ज्यादा करीब थे। मैंने उसके सभी दोस्तों से पूछ लिया ,किसी को भी कुछ नहीं मालूम !क्या उसकी तुमसे भी कोई बात नहीं हुई ?
नहीं अंकल ! हम सभी परसों ही मिले थे ,उसके पश्चात हमारी कोई बात नहीं हुई। आप चिंता मत कीजिये !मैं उसको फोन करके देखता हूँ।
कोई लाभ नहीं है ,मैंने उसका फोन कई बार लगाकर देखा है किन्तु घंटी भी नहीं बज रही है। अब तो मुझे लगता है ,अवश्य ही उसके साथ कोई दुर्घटना घटी है ,कहते हुए उन्होंने फोन काट दिया।
नितिन के पीछे, उसके दादाजी अपनी कुर्सी पर बैठे थे ,जिसे नितिन, उनके लिए लेकर आया था इसीलिए अब वो कुर्सी पर इधर -उधर घूमते रहते हैं। अभी भी वो ,यही सोचकर अपने कमरे से बाहर ,उसके पास आये थे -इसके दोस्त के साथ क्या हुआ ?क्योंकि आवाजें उनके कमरे तक भी पहुंच रहीं थीं ,किन्तु नितिन को इस तरह नकारते देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ। घर में सभी व्यस्त थे, किन्तु वो तो नहीं थे इसीलिए जब नितिन ने रचित को अपने साथ चलने के लिए बुलाया था ,तब वो अपने कमरे की खिड़की से उन्हें जाते देख रहे थे। अब इस समय नीतिन ने रचित के पापा से स्पष्ट इंकार कर दिया। इससे पहले कि वो, उससे कुछ पूछते ,नितिन फोन रखकर चला गया, किन्तु अपने दादाजी के मन में प्रश्न छोड़ गया। वे जानना चाहते थे ,उन्होंने रचित को कल अपने घर पर देखा था ,तब नितिन ने रचित के पिता से इंकार क्यों किया ?