इंसान -
इस पैसे की दुनिया में,
''ईमान ''बिकता है।
हर बेईमान बिकता है।
दर्द-ए -दिल बिकता है।
समय का हर पल बिकता है।
वस्तुएं ही नहीं, कभी-कभी इंसान भी बिकता है।
बिकाऊ -
पैसे कमाने की होड़ में ,हर ''दगाबाज'' बिकता है।
भूख ,'पेट की आग बुझाने 'को.
'अस्मत' का सौदा होता, तन बिकता है।
भावनाएं अपनी न रहकर उभर आईं , पन्नों पर.......
'' कागज'' का वो पन्ना भी बिकता है।
ममता -
जब अस्मत लग जाती, दाँव पर,
पांच पति होने पर भी , द्रौपदी पर प्रभु का हाथ था।
आज दरिद्र होते इंसान का ,अंग -अंग बिकता है।
इस'''' पूंजीवादी संसार में दिल बिकते हैं। 'ज़िगर' बिकते हैं।
आवश्यकताओं की आड़ में 'ममता 'भी बिकती है।
मुखौटा -
आंसू तो सिर्फ अपने हैं ,दर्द दिया गैरों ने.......
बच्चे के जन्मदिन पर खुशियां भी बिकती हैं।
लगा मुखौटा ! खुशियों का दर्द छुपा मन में, झूठी खुशियां भी बिकती हैं।
मशीन -
मशीन ही बन गया ,मानव !दौलत के लिए,
अब कोख़ भी बिकती ,बन ''सरोगेट मदर''
कुदरत की इस अमानत का अब ,हर हिस्सा बिकता है।
कौन सच्चा, कौन झूठा? मानवों के पत्थर दिल जंगल में,
अर्थ के वास्ते लहू का क़तरा -क़तरा भी बिकता है।
गिरगिट -
न कद्र रही, रिश्तों की, इंसान की तो क्या बिसात है ?
जुड़ जाता है, किसी से भी ,वह जीव ,जीव ही न रहा।
जल -जीव, जल में ,थल -जीव ,थल में ,
इंसान बदलता रहता ,'फितरत'अपनी 'गिरगिट'सा रंग बदलता आया।
विश्वास नहीं आज किसी पर ,अपनों से भरोसा भी बिखरता नजर आया।
पुतली -
''पुतली ''बनी थी ,पहले भी ,आज भी वही नारी !
जब चाहे उपभोग करो! जब चाहे भावों से खेलो!
आज बदला उसका प्यार ,बदली उसकी ममता !
जब चाहे हसरतों से खेलो !जब चाहे कोख़ का व्यापार करो !
इंसानियत -
आख़िर वह भी तो इंसान थी ,
देख ,उसकी सूनी कोख़ !
तड़पते देख उसे ,ममता की चाहत में ,
अपना मन यूँ मार लिया ,
दे उसे ,अपने लहू का क़तरा !
इंसानियत पर एहसान किया।
आख़िर वो भी ,तो इक माँ है ,
माँ ने माँ का दर्द समझ ,
अपनी ममता का परित्याग किया।