जब से नितिन अपने दोस्तों से मिलकर आया है ,तब से वह बहुत घबराया हुआ है , रात भर उसे नींद नहीं आई , सुबह उठते ही, उसने तुरंत ही रचित को फोन किया। रचित चाहता तो था कि वह अन्य दोस्तों को भी बुला ले किंतु उन सबके लिए नितिन ने उससे मना कर दिया। अभी तक रचित, उसकी बातों को सुनकर गंभीर नहीं था लेकिन नितिन से मिलकर वह गंभीर हो गया। तब रचित उससे पूछता है -कि तू मुझसे क्या चाहता है ? ऐसे में मैं तेरी क्या मदद कर सकता हूं ?
मदद क्या करनी है ? मेरे साथ उस स्थान पर चल ! पता तो चले ,आखिर वह क्या चीज थी ?
इसमें पता क्या करना है, जो भी था, अब क्या वह वहां होगा ? रचित ने उसको टालना चाहा।
नहीं ,यार ! मैं देखना चाहता हूं, क्या मुझसे कोई इंसान टकराया था या फिर कोई साया !
जो भी टकराया था, वो रात्रि में हुआ था ,अब दिन है ,अब वो वहाँ नहीं होगा। अब वहां जाकर ,क्यों ''बैठे -बिठाये मुसीबत मोल ले रहा है।'' ''जो हो गया सो हो गया'' दोबारा जाने से, वापस तो लौटकर नहीं आएगा। हो सकता है, हम किसी मुसीबत में पड़ जाए।
क्या तुझे डर लग रहा है ? तू जाना क्यों नहीं चाहता है ?मैं भी तो चल रहा हूँ।
नहीं ,यार !डर तो नहीं लग रहा है, किंतु त्योहार के दिनों में ,मेरी मम्मी भी मना करती हैं कि घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। मैं तो बहुत सारे कार्य छोड़कर आया हूं, बाद में देख लेंगे ,रचित लापरवाही से बोला।
नहीं, मुझे अभी जाना है, मैं जानना चाहता हूं, अब रात्रि नहीं है , दिन निकल रहा है। आसपास लोग भी घूम रहे होंगे तो अब डर किस बात का ?
कहीं ऐसा न हो ,वहां जाकर देखने के चक्कर में ,हम ही न फंस जायें ,हम ही शक के घेरे में आ जाएँ।
अब तू इतनी मुश्किल से आ ही गया है, तो फिर क्यों न एक बार दिन की रोशनी में सब कुछ देख लिया जाए। मेरे मन में जो वहम बना हुआ है वह समाप्त हो जाए।तभी नितिन ने उसे लालच दिया और बोला - साथ के साथ तेरे घर भी छोड़ आऊंगा।
उसकी बातों को सुनकर रचित तैयार तो हो गया लेकिन उसका मन नहीं मान रहा था, वह कब्रिस्तान में जाना नहीं चाहता था किंतु बार-बार नितिन के कहने पर उसे जाना पड़ा। फिर नितिन ने उससे कह भी दिया था -उधर के उधर ही, उसे उसके घर भी छोड़ आएगा।
कब्रिस्तान के समीप पहुंच कर, नितिन अपनी मोटरसाइकिल रोक देता है , और दोनों कब्रिस्तान के अंदर प्रवेश करते हैं ,तभी रचित बोला-तू क्या कब्रिस्तान के अंदर गया था ? उसके बाहर से ही तो निकला होगा। फिर अंदर क्यों ले आया ?
हां ,मैं तो भूल ही गया था। आओ !चलो बाहर चलते हैं। वे उस रस्ते पर देखते हुए आगे बढ़ रहे थे ,कहीं भी कुछ नहीं दिखलाई दिया। हां एक जगह खून के धब्बे नजर आये थे किंतु उन्हें देखकर कहा नहीं जा सकता था कि वह किसके खून के धब्बे थे ?
देख रचित !मुझे लगता है, अवश्य ही रात्रि में मेरी गाड़ी से कोई टकराया है , न जाने, वो कौन था ?
या थी भी हो सकती है।
हां, वही तो मैं कह रहा हूं, अवश्य ही कोई था। कोई आत्मा तो नहीं थी।
भला आत्मा के भी कहीं रक्त होता है।
तू बेकार में ही परेशान हो रहा है , हो सकता है ,वह कोई जानवर ही हो।
यदि जानवर भी था, तो कहीं नहीं कहीं तो पड़ा ही होगा।
तू भी क्या बात करता है ?हो सकता है ,उसे हल्की चोट आई हो कुछे देर पश्चात चला गया हो।
पास में ही जंगल है ,चलकर उधर देखते हैं।
नहीं ,मुझे नहीं जाना है, अब हमें घर चलना चाहिए। धूप बढ़ रही है, घर वाले परेशान हो रहे होंगे। मैंने तो सुबह से नाश्ता भी नहीं किया है। तूने बुलाया और तेरे बुलाने पर मैं चला आया।
ठीक है, वापस चलते हैं कहकर वापस हो लिए........ नितिन घर आकर नहाया और नहाकर उसने भोजन किया और सो गया। रात भर का जगा हुआ था ,अच्छे से नींद नहीं आई थी इसलिए बिस्तर पर पडते ही नींद आ गई।
अगले दिन दीपावली थी, घर पूरी तरह से साफ -सुथरा जगमगा रहा था, घर में पटाखे खील बताशे, सब कुछ आया था। नहीं था ,तो रचित अपने घर पर नहीं था। न जाने कहां चला गया है ? किसी से कुछ कह कर भी नहीं जाता। क्या तुमने रचित को देखा ? उसकी मम्मी ने अपने पति से पूछा -नहीं ,मैंने तो कहीं नहीं देखा। मैंने उसे कल से ही नहीं देखा।
यह आप क्या कह रहे हैं ?
हां, मैंने कल उसे जाते हुए देखा था, मैंने पूछना भी चाहा था कि वह कहां जा रहा है , किंतु उसे पीछे से टोकना उचित नहीं लगा। मैंने सोचा -किसी दोस्त के यहां जा रहा होगा। उसके बाद मैंने उसे नहीं देखा, तुमने उसे कब देखा ? मैं तो कल अपने काम में व्यस्त थी। थककर सो गई थी। कल उसने भोजन भी नहीं किया था। मैंने दुर्गा को उसे बुलाने के लिए भेजा था किंतु वह तो खेल में मस्त थी ,कहने लगी -भाई !अपने किसी दोस्त के यहाँ गया होगा ।
तुम भी कितनी लापरवाह हो, कल से तुमने अपने बच्चों को नहीं देखा और तुमने यह भी नहीं जानना चाहा कि वह कहां गया है ? घर में है या नहीं।
तुमने तो उसे देखा था, तुमने उसे जाते हुए भी देखा था। कम से कम उसे जाते हुए देखकर पूछ तो लेते किसके साथ और कहां जा रहा है ? क्या उसके साथ कोई था ?
नहीं, मुझे कोई नहीं दिखाई दिया , आखिर यह लड़का कहां गया ? दुर्गा ! दुर्गा !
जी पापा ! कहते हुए दुर्गा बाहर आई।
क्या तूने अपने भाई को देखा?
नहीं ,मैंने नहीं देखा। कल दोपहर भाई, घर से बाहर निकला था ,मैंने पूछा था -तो मुझे डांट दिया, और बोला -छोटी है ,छोटी ही बनकर रह, मेरी बड़ी बहन मत बन! फिर मैंने कुछ पूछा ही नहीं।
तुमने रात्रि में खाने पर भी, उस पर ध्यान नहीं दिया।
मैं भी अकेली, क्या-क्या करती रहूं ? जब इन बच्चों को डांटना चलती हूं या आपसे कहती हूं कि इनका ध्यान रखा करो !और उनकी गलती पर इन्हें डांट दिया करो या मैं डांटती हूं तो मुझे रोक देते हैं-अब बच्चे बड़े हो रहे हैं ,बात -बात में टोका -टाकी ठीक नहीं। अब ये लोग इतने लापरवाह हो गए हैं कि बिना बताए ही, घर से निकल जाते हैं ,रचित ने बताया भी नहीं, कि मम्मी मैं कहां जा रहा हूं ? जरा उसे फोन तो लगाइए। हो सकता है -अपने किसी दोस्त के घर रह गया हो घबराते हुए उसकी मम्मी बोली।
तपेश जी घबराते हुए रचित को फोन लगाते हैं, किंतु रचित का फोन ही नहीं लग रहा था।