Balika vadhu [22]

रामखिलावन की बेटी ,सरस्वती, अब हॉस्टल में नहीं रहती, जब माता -पिता ने पूछा था  - हॉस्टल में रहने में क्या बुराई है ? वहीं रहती। 

तब उसने बताया -हॉस्टल !उसके दफ्तर से बहुत दूर है,आने -जाने में ही बहुत समय बर्बाद हो जाता है।  

जरा ,अपने घर का पता बता देना !

आप लोग आते तो हो नहीं ,पता लेकर क्या करोगे ?


हमें पता तो होना चाहिए कि हमारी बेटी कहाँ रह रही है ?हो सकता है ,कभी मिलने भी आ जाएँ। 

आज वो ही ,पता काम कर गया , अचानक ही ,उसका भाई ,अपनी बहन के घर पहुंच गया।जब वह अपनी बहन से मिलने जा रहा था ,उसकी मां ने बेटी और बेटे के लिए ढेर सारे लड्डू बनाए थे। बहुत सारा सामान खाने के लिए भी दिया था, किन्तु पंद्रह  दिनों पश्चात ही बेटा, उदास होकर, घर वापस आ गया। 

क्यों ,ऐसा क्या हुआ था ? उत्सुकता से परिणीति ने सुनीता से पूछा। 

जब उनका बेटा अपनी बहन के पास पहुंचा, तो अपने भाई को देखकर ,वह  थोड़ा घबरा गई और बोली -तू आज अचानक यहां कैसे चला आया ?

क्यों, मुझे भी पढ़ाई करनी है, क्या मैं आ नहीं सकता ? भाई ने उल्टे उससे  प्रश्न किया। 

नहीं, आ तो सकता है, किन्तु...... कुछ सोचते हुए बोली। 

अब तो तेरी नौकरी लग गई है, कम से कम तेरे पास रहकर पढ़ तो सकता हूं। 

पापा ,कह रहे थे -अपनी बहन के पास रहकर ही, पढ़ लेना। 

अब क्या तू यहाँ रहने वाला है। तू ,यहां नहीं रह सकता। 

क्यों, मैं यहां क्यों नहीं रह सकता ? क्या शहर में रहने का ठेका , तूने ही लिया हुआ है, हंसते हुए वह बोला- और  उसने अपना थैला घर के अंदर रखा और बोला - जा ,फटाफट खाना ले आ !

सरस्वती ,अपने भाई को वहां देखकर वैसे ही परेशान हो गयी थी ,उसके भोजन मांगते ही,वह चिढकर बोली -मैं तेरी नौकर नहीं हूं, जो तुझे खाना बनाकर खिलाऊंगी , सामान तो देख, मां ने बहुत सारा खाना भेजा है ,तेरे लिए भी है , जरा सामान  खोलकर देख  तो सही ! खुश होते हुए उसके भाई ने कहा। वो यह नहीं जानता था कि इसके दिमाग़ में क्या चल रहा है ?वह तो बहन -भाई की हल्की -फुल्की नोक -झोंक ही समझ रहा था।  

सरस्वती ने वह थैला खोला, जो उसका भाई अपने साथ लाया था, उसमें से ढेर सारा खाने का सामान निकाल लिया। मां ने गरमा -गरम पूरियाँ और आलू की सब्जी भी भेजी थी। वह खुश हो गई और दोनों बहन -भाइयों ने खाना खाया। खाना खाने के पश्चात, सरस्वती बोली -यदि तुझे यहां रहकर ही पढ़ना है, तो अपने लिए एक अलग जगह देख लेना। 

क्या, तेरा दिमाग खराब है ? तूने दो कमरों का फ्लैट लिया हुआ है, क्या सारे में फेेलकर सोएगी ? एक कमरा मेरा हो जाएगा, उसके भाई ने जवाब दिया। 

नहीं ,ऐसी तो कोई बात नहीं है किंतु तू लड़का है और मैं लड़की ! ऐसे अच्छा नहीं लगेगा। 

तेरे मन में यह कैसा फितूर है ? हम बहन -भाई हैं, कह कर भाई सोने के लिए चला गया। उसने उस कमरे में देखा, कुछ पैंट शर्ट टंगी हुई है , कमरे से बाहर आकर उसने अपनी बहन से पूछा -सरस्वती ! यह किसकी पैंट शर्ट हैं ? क्या ,तू ऐसे कपड़े भी पहनती है ?

तुझे इस बात से क्या मतलब है ? आराम कर रहा है ,तो चुपचाप आराम कर ले ! बाद में बात करेंगे ,कहते हुए वह फोन पर किसी से बातें करने लगी -यार ! मैं क्या कर सकती हूं ? मुझे क्या मालूम था वह अचानक इस तरह आ जाएगा। कुछ दिन के लिए तुम अपना सोच लो ! न जाने वह फोन पर किससे  बातें कर रही थी ? उसके चेहरे पर भाव आ जा रहे थे। देखने से तो ऐसा ही लग रहा था जैसे उसके भाई ने यहां आकर कोई गलती कर दी हो। सरस्वती के व्यवहार से भी लग रहा था कि उसे अपने भाई का यहां आना अच्छा नहीं लगा। 

सुबह प्रेम उठा,और तैयार होकर सरस्वती से बोला -मुझे जल्दी से कुछ खाने को दे दे ! कॉलिज में आज फॉर्म भरना है ,कहीं देर न हो जाये। खाना क्या बनांना था ?माँ ने जो मठरी और लड्डू दिए थे वही चाय के साथ पकड़ा दिए। चाय के साथ ,कुछ मठरी खाकर वह कॉलिज के  लिए निकल  गया। तब सरस्वती ने फिर से फोन लगाया ,उधर से किसी ने फोन नहीं उठाया। निराश होकर वो तैयार होकर दफ्तर जाने के लिए निकल गयी। वो बार -बार फोन लगाकर किसी से बात करने का प्रयास कर रही थी किन्तु हर बार ही उसका फोन काट दिया जाता। भाई का आना अब उसे मुसीबत लग रहा था। किन्तु उससे कहे भी तो क्या ?

आज सारा दिन ,दफ़्तर में परेशानी में ही गुजरा ,शाम को उसका फोन लगा ,फोन उठते ही उसने शिकायत की -मैं सुबह से तुम्हें फोन लगा रही हूँ ,तुमने मेरा फोन क्यों नहीं उठाया ?

कैसे उठाता ? तुमने मेरा मूड़ ही खराब कर दिया। 

अब मुझे क्या मालूम था ?कि वो इस तरह अचानक आ जायेगा ,तुम्हारे कारण, ही तो मैंने हॉस्टल छोड़कर यह घर लिया है और तुम मुझे नखरे दिखा रहे हो। 

ये तुम्हें नखरे लग रहे हैं ,क्या तुम्हें अच्छा लग रहा है ?

नहीं ,मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा है , अब आ ही गया है,तो कर भी क्या सकती हूँ ?मैं कोशिश तो यही करूंगी कि वो घर वापस चला जाये या फिर अपने लिए अलग घर ले ले ,जो भी है ,दो -तीन दिनों में कुछ न कुछ तो करना ही होगा। 

जैसी तुम्हारी इच्छा !जो भी करना है ,तुम्हें करना है किन्तु तुम्हें इसका शीघ्र ही हल निकालना होगा।

अच्छा हम घर में नहीं ,बाहर तो मिल ही सकते हैं। 

हाँ देखते हैं ,कहकर उसने फोन काट दिया।

अच्छी ख़ासी ज़िंदगी गुजर रही थी ,प्रेम ने आकर सबकुछ गड़बड़ कर दी, अभी तक तो कोई आया नहीं  था,अब अचानक  ही ,प्रेम को भेज दिया। नौकरी लगते ही ,इनका प्रेम उमड़ पड़ा। जब एक बेटी अपने परिवार के लिए ऐसे बोल रही है ,तो दूसरा आदमी कैसे चुप रह सकता है ?उसने ''आग में घी डालने ''जैसा कार्य किया। 

वही  तो मैं कह रहा हूँ ,इन घरवालों को अपने बच्चों की खुशियां नजर नहीं आतीं ,हमेशा उनकी खुशियों में ख़लल डालते रहते हैं। तुम अपने इस भाई को यहाँ से भगाओ ! वैसे मैं ईरानी होटल में हूँ ,तुम चाहो तो आ  जाना। 

हाँ देखती हूँ ,यदि वो घर पहुंच गया होगा तो पूछेगा ,अब तक कहाँ थीं ?

बस, इसी तरह डरती रहना ,एक न एक दिन तो उन्हें समझना ही होगा और तुम्हें उन्हें सम्पूर्ण सच्चाई बतानी होगी वो तो मैं बता दूंगी किन्तु अभी मुझे पैसों की जरूरत है इसीलिए थोड़ा रुकी हुई हूँ। 

आखिर ये सरस्वती किससे  बातें कर रही है ?उससे इसका क्या संबंध है ?क्या वो प्रेम को अपने पास रहने देगी या नहीं !आइये आगे बढ़ते हैं -बालिका वधु के साथ  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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