Shaitani mann [part 15]

नितिन अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट करके आगे बढ़ चुका था तभी सुमित ने कहा- हम भी आ रहे हैं, तुझे जाने की इतनी जल्दी क्या है ?

इसे जाने दे ,इसका घर दूर भी है, हम तो आसपास ही रहते हैं , रचित ने कहा। 

थोड़ा हम भी साथ चल लेते, कुछ देर के लिए तो साथ चल ही सकते हैं, कहते हुए वह लोग भी आपस में एक -दूसरे के पीछे बैठते हुए जैसे आए थे, वैसे ही बैठकर चल दिए। नितिन उनसे थोड़ा आगे था, जब नितिन ने देखा कि वह लोग आ रहे हैं , तो उसने अपनी मोटरसाइकिल की रफ़्तार थोड़ी धीमी कर ली। 

जब वे लोग,नजदीक आए तो हर्षित ने पूछा - क्या अब दीपावली पर मिलना होगा ?


कह नहीं सकता, मम्मी तो आज भी, आने के लिए मना कर रही थीं कि त्यौहार के दिनों में, बाहर नहीं घूमना चाहिए। 

अरे!!! कुछ नहीं होता, घरवालों का कहना मानना चाहिए। अच्छी बात है, किंतु किसी ढकोसले बाजी में नहीं पड़ना चाहिए। अब नहीं  घूमेंगे तो कब घूमेंगे ? रचित बोला। सामान खरीदने के लिए भी तो जाना पड़ता है, तब भी तो घूमना ही हो जाता है।

 तुम्हारी मम्मी ही नहीं ,मेरी मम्मी का भी यही कथन है। 

इसक क्या कारण हो सकता है ?

अरे ,ये सब छोड़ !उनकी बातों में कोई तर्क नहीं है ,तब एक रास्ता आते ही ,नितिन अपने दोस्तों से बोला -अच्छा, मैं इस छोटे रास्ते से निकल जाता हूं, शीघ्र ही घर पहुंच जाऊंगा। जरा ,समय तो देखना !कितना हुआ है ?

ग्यारह बज रहे हैं। 

बहुत देरी हो गयी है ,कहते हुए नितिन ने अपनी मोटरसाइकिल की रफ़्तार बढ़ा दी। 

जब नितिन घर पहुंचा,उसका बदन थरथर काँप रहा था। उसका अंदाजा सही था ,उसकी मम्मी उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। तूने आने में बड़ी देर लगा दी, मैंने तुझसे पहले ही कहा था -इतनी रात्रि में बाहर नहीं जाते हैं , किंतु उनकी बात अनसुनी कर नितिन अंदर चला गया। मोटरसाइकिल खड़ी करके, वह सीधे अपने कमरे में गया और जाते ही, वहां रखी जग में से, गिलास भरकर पानी पिया किंतु अभी उसका गला सूख रहा था। उसने एक गिलास पानी और पिया किन्तु उसकी घबराहट कम नहीं हुई और उसने सीधा जग मुँह लगा लगाकर सारा पानी पी गया। मन को बार-बार समझाने का प्रयास कर रहा था, और स्वयं भी समझने का प्रयास कर रहा था कि आखिर वह क्या चीज थी ? कोई साया था, या कोई इंसान !

 रह -रहकर वह घटना उसके आंखों के सामने घूम रही थी, उसने अपने कपड़े बदले और सोने का प्रयास करने लगा । 

तभी मम्मी अंदर आई और बोली -क्या तूने खाना खा लिया ?

हां ,मैं खाना खाकर ही आया हूं, दोस्तों के साथ खाया है, मैं तो आपसे पहले ही कह कर गया था कि मुझे आने में देर हो सकती है और खाना खाकर आऊंगा। 

वह तो ठीक है, किंतु कई बार मौका नहीं लगता ,आदमी भूखा रह जाता है , मैंने तेरे लिए खाना बना कर रखा हुआ है। मेरे मन में यह विचार था, भूखा हुआ, तो खा लेगा किन्तु तुझे क्या हुआ है ?तेरा चेहरा क्यों उतरा हुआ है ? 

नहीं ,ऐसा कुछ भी नहीं है ,मैं भोजन कर चुका हूं , मम्मी के साथ इस तरह बातें करने से, थोड़ा ,उसका ध्यान उस घटना से दूर हो गया , उसकी घबराहट भी अभी भी बनी हुईथी । मम्मी के जाते ही ,वह कमरे में अकेला रह गया और वह घटना फिर से उसकी आंखों के सामने घूमने लगी। उसने अपना मन भटकाने के लिए, एक गाना चला दिया और लेटकर सोने का प्रयास करने लगा कुछ देर के लिए उसकी आंख लगी थी किंतु तुरंत ही घबरा कर उठकर बैठ गया। 

अगले दिन जब नितिन, उठा, तो उसने अपने दोस्त रचित को फोन किया। 

क्या हुआ ? आज क्यों फोन किया ? तू तो कह रहा था कि दीपावली पर मिलना नहीं हो पाएगा। 

हां, किंतु अब मैं तुझसे मिलना चाहता हूं, मेरे घर ही आ जाना। 

क्या कुछ हुआ है ?अन्य दोस्तों को भी लेकर आऊं ,रचित उसके लहजे को सुनकर बोला। 

नहीं ,तुम अकेले ही आना ,उनको क्यों परेशां करते हो ?हां, कुछ ऐसा तो है ,जो तुझसे मिलकर ही समझने  का प्रयास करूंगा , मैं थोड़ा परेशान हूं। बस तू ही चला आ ! 

रचित को उसके फोन से ऐसा तो लग रहा था, कि शायद वह  कुछ परेशान है किंतु उसने फोन पर नहीं बताया, न जाने क्यों बुलाया है ? सोचकर बोला -यार !घर में काम बहुत है, किंतु तूने बुलाया है तो मैं आ जाता हूं, मैं 10:00 बजे तक पहुंचाने का प्रयास करूंगा।  

हां हां जल्दी आ जाना, कोई जरूरी काम है ,कहकर नितिन ने फोन रख दिया।

आज क्या फिर से कहीं जाना है, नितिन की मां ने उसको तैयार होते हुए, देखकर पूछा। 

 हाँ ,रचित के साथ कहीं जाना है। रचित जैसे ही नितिन के घर पहुंचा नितिन पहले से ही तैयार था और मोटरसाइकिल स्टार्ट करके, बोला - 1 मिनट मेरे साथ चल !

रचित ने अपनी मोटरसाइकिल उनके घर पर ही खड़ी की और नितिन के पीछे बैठ गया। हम लोग कहां जा रहे हैं ? रचित ने उत्सुकता से पूछा। 

बताता हूं, तो फिर बोला -मैं कल घर आकर बड़ा परेशान रहा ,मुझे रात भर नींद नहीं आई।कहते हुए उसने एक बगीचे में अपनी मोटरसाइकिल खड़ी की और अंदर आ गया। 

अब कुछ बताएगा भी ,क्या हुआ ?मुझे यहाँ क्यों बुलाया ?

तुझे जो मैं बताना चाहता हूँ ,उसे सुनकर तुझे बहुत आश्चर्य होगा। कल मैं छोटे रास्ते से आने के लिए उस कच्चे रस्ते से आ रहा था। उधर कब्रिस्तान भी है। 

हाँ ,मुझे मालूम है ,क्या तूने वहां कोई भूत -वूत देख लिया क्या ?

रचित मुस्कुराते हुए बोला। 

पता नहीं ,वो क्या था ?अचानक मेरी गाड़ी के नीचे आ गया ,भूत था या कोई महिला क्योंकि जब मैं तेज गति से उधर से निकल रहा था तभी वो मेरी गाड़ी के नीचे आ गयी। 

कोई भूतनी होगी जिसका दिल तुझ पर आ गया और तेरी गाड़ी के नीचे आ गई। 

ये मज़ाक नहीं, नितिन उसे डांटते हुए बोला -जब मेरी मोटरसाइकिल उस पर चढ़ी,तो मैं भी गिर पडा किसी की चीख मुझे सुनाई दी। मैं पहले ही,घबराया हुआ था ,मैं उठा और मोटरसाइकिल उठाई और भाग खड़ा हुआ क्योंकि मम्मी ने कहा था -'होली ,दीवाली' पर 'तंत्र -मंत्र 'और' जादू -टोने' होते रहते हैं और आत्माएं भी घूमती रहती हैं। उस जगह कब्रिस्तान था इसीलिए मैं कुछ ज्यादा ही घबरा रहा था इसीलिए भाग खड़ा हुआ। डर के कारण ,उसे देखा भी नहीं। 

अब तू ,मुझसे क्या चाहता है ?रचित ने उससे पूछा 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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