Shaitani mann [part 14]

यह जो सामने लाल कपड़ों में लड़की बैठी है, वह हमारे स्कूल की 'मेघा' ही तो है। 

क्या बात कर रहा है ? क्या यह'' मेघा है? उसके सभी दोस्त आश्चर्यचकित होते हुए बोले-जब यह छोटी थी ,तब कैसी लगती थी ?

वही तो कह रहा हूं, दोस्तों ! दुनिया कहां की कहां पहुंच गई ? और हम यहीं के यहीं लटके हुए हैं। न जाने मोेहल्ले के कितने लड़कों को बेवकूफ बनाती है ?

तू तो इसके पड़ोस में रहता है ,तेरा क्या हाल है ,कहीं तू भी तो इसके चक्कर में नहीं आ गया ,कहते हुए हर्षित हंसने लगा। 


मैं क्यों बेवकूफ बनूंगा ? मैं इसकी असलियत जानता हूँ ,बचपन से इसे देख रहा हूँ। ये औरों को बेवकूफ बना सकती है ,मुझे नहीं। 

ऐसा तो नहीं , कहीं  इसने तुझे भाव ही न दिया हो,नितिन हँसते बोला। 

उसकी इस बात से रचित चिढ़ गया ,ओये ! नितिन ज्यादा मत बोल ! वरना आज तू मुझसे पिटकर जायेगा।

हम क्या, आज यहाँ लड़ने के लिए इकट्ठा हुए हैं ?सुमित ने पूछा। वैसे एक बात तो है , इसका रहन-सहन, बोलचाल ,कपड़े सब बदल गया, यदि तू हमें नहीं बताता तो हमें पता ही नहीं चलता कि यह मेघा ही है। चल आजा !इससे हमारा परिचय तो करा। 

मुँह बनाते हुए ,रचित बोला -मैं तो इससे बात भी नहीं करता, ये मुझे अच्छी नहीं लगती, 'चुगलखोर' है ,कहते हुए रचित ने इनकार में हाथ हिला दिया।

ओह !अब बात समझ में आई ,इसने अवश्य ही तेरी कोई चुगली कर दी होगी ,इसी कारण तू इससे चिढ़ा हुआ है वरना इतनी हसीन लड़की से भी, भला कोई चिढ़ता है। ला जरा ,दाल इधर कर सुमित खाने पर ध्यान देते हुए बोला।  

वो हसीन !तेरे लिए होगी मेरे लिए नहीं ,मेघा की तरफ  देखकर रचित बोला। 

मुझे तो लगता है ,तेरा तो दिमाग भी, पेट से ही काम करता है ,नितिन बोला। 

तू सच ही कह रहा है ,जब पेट भूखा होता है, तो दिमाग भी काम नही करता है। ये बात भी तू सच ही, कह रहा है, दुनिया कहां से कहां पहुंच गई ? अपने साथ के दोस्तों को देखते हैं, तो लगता है जैसे हम पीछे ही रह गए नितिन ने अपने कॉलेज के दोस्तों को स्मरण करते हुए कहा -वाह !रचित तू कितना सत्यवादी हरिश्चंद्र हो गया है ?  

अब हम ऐसे ही हैं, हमारी परवरिश ही ऐसी है ,तो हम क्या कर सकते हैं ?

ऐसा नहीं है, हम बदलने नहीं चाहते ,यदि हम बदलना चाहे तो हम खुद से भी, बेहतर हो सकते हैं। 

प्रणव ने अपने दोस्तों से पूछा -क्या ये लोग हमसे बेहतर जिंदगी जी रहे हैं ? 

अभी तक तो इन्हें देखकर, ऐसा ही लगता है। 

चलो छोड़ो यार !!! इतने दिनों बाद मिले हैं, हम भी इंजॉय ही करते हैं। या यूं ही दूसरों को देख -देखकर कुढ़ते रहेंगे। अच्छा ! त्यौहार के बाद ,अपने -अपने कार्यों में लग जायेंगे। 

तभी हर्षित बोला - क्या तुम लोग जानते हो ?अनमोल के घरवाले तो उसके लिए लड़की देख रहे हैं। 

क्या बात कर रहा है ?आश्चर्यचकित होते हुए बोले -आज ,क्या धमाके पर धमाके हो रहे हैं ? अरे !वो अनमोल अब क्या कर रहा है ?हमारी नकल मार -मारकर तो आगे बढ़ा। कौन बेवकूफ लड़की है ?जो उस सुल्लड़ से विवाह करेगी। 

कोई उसके जैसी ही होगी ,रचित एकदम से बोल उठा। 

समय का कुछ पता नहीं चलता ,बेचारा स्कूल की फीस भी समय से नहीं भर पाता था और आज उसे देखोगे, तो पहचान नहीं पाओगे, हर्षित बोला।

क्यों ?क्या उसके' सर पर सींग 'निकल आये हैं ,कहते हुए रचित हंसने लगा।  

कुछ भी न समझते हुए सुमित बोला -तुम किसकी बात कर रहे हो ?

लो ! ये जनाब ,अब सोकर जग रहे हैं ,अरे अपना सहपाठी अनमोल चोपड़ा !

क्या उसकी कोई लॉटरी लगी है ?

मुझे क्या मालूम ?उसकी लगी है या उसके पापा की। 

मैंने तो सुना है ,जो उसकी बड़ी बहन थी,न..... जो उसे पढ़ाती थी ,उसकी सरकारी नौकरी लगी है ,बहुत नोट कमा रही है। 

ऐसी कौन सी सरकारी नौकरी है ,जो'' छप्पर फाड़ पैसा ''आ रहा है ,रिश्वत लेती होगी। 

मुझे क्या मालूम ,किन्तु कोई बहुत बड़ी अधिकारी बनी है। 

भइया !घर में बड़ी बहन हो तो......  मजे ही मजे ! पहले भाई को  ट्यूशन पढ़ाये ,नौकरी लग जाने पर ,महंगावाला फोन दिलाये। 

एक मेरी बहन है ,फोन दिलाना तो दूर ,मेरे हिस्से की भी चीज छीन ले ,रचित नाराज होते हुए बोला। 

अरे ये सब छोडो ! नितिन तुम बताओ ! तुम्हारी ज़िंदगी में कोई लड़की आई या नहीं। 

अरे यार ! हमारी ऐसी किस्मत कहाँ ?जो कोई  लड़की हम पर मरे ,अभी तो कॉलिज के दोस्तों से तालमेल बैठाने में ही ,ज़िंदगी कट रही है।

क्या तालमेल बैठाना ?

हम तो सोच रहे थे ,तेरे मजे ही मजे ही होंगे। 

दूर से देखने और सोचने पर मौज -मस्ती नजर आती है किन्तु जब वहां रहते हैं ,और उस जगह की असलियत पता चलती है ,तो निराशा -परेशानी ही हाथ लगती है। 

अरे यार !ऐसा क्या हो गया ?

मैं भी सोचता था कॉलेज जाऊंगा , बड़ों की टोका -टाकी नहीं होगी ,नए दोस्तों संग खूब मस्ती होगी किन्तु ऐसा न हो सका। वो लोग मस्ती तो करते हैं किन्तु उनकी मस्ती का स्तर ही बिलकुल अलग है। 

किस तरह की मस्ती करते हैं ?उत्सुकता से सुमित ने पूछा। 

पूछ मत, यार !दीवार फांदकर होटल में जाना ,लड़कियों संग नृत्य करना ,रातभर बाहर घूमना। उनका कॉलिज में दबदबा है ,सबकुछ जानकर भी उन्हें कोई कुछ नहीं कहता। 

सब बढ़िया तो है ,ऐसी ज़िंदगी तो हम भी चाहते हैं फिर तू मजे क्यों नहीं कर रहा है ?

करना चाहता तो हूँ किन्तु कर नहीं पाता ,एक कश्मकश में फंस जाता हूँ ,कहते हुए उसने बिल अदा किया और सभी ,हाथों में सौंफ के कई -कई पैकेट लेकर बाहर आ गए। यार !अब चलते हैं ,मम्मी प्रतीक्षा कर रही होंगी ,हालाँकि मैं उनसे देर से ,आने के लिए कहकर आया हूँ किन्तु जब तक मैं नहीं पहुँचूँगा ,वो सोयेंगी नहीं ,कहते हुए अपनी मोटरसाइकिल की तरफ बढ़ चला।

क्या तू अभी भी नहीं समझा ? यह कश्मकश क्यों रहती है ? हम करना तो बहुत कुछ चाहते हैं, किंतु कहीं कुछ गलत न हो जाए, अपने परिवार की अपने लोगों की चिंता कहो या ख्याल ! हमें कुछ ऐसा करने से रोकते हैं जिससे हमारे परिवार के लोग दुखी न हों ,बस यही बातें मनमर्जी से जीने नहीं देतीं , सुमित, नितिन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला। 

हां ,शायद तू सही कह रहा है, कहते हुए नितिन अपनी मोटरसाइकिल पर बैठ, अपने दोस्तों से विदा ले घर की ओर प्रस्थान कर गया। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post