चौधरी अतर सिंह, अपनी बेटी से मिलने, उसकी ससुराल जा रहे हैं, इसलिए घर में संपूर्ण तैयारियाँ चल रही हैं। उधर जतिन से कामिनी पूछती है -आखिर उसे कैद करके कहां रखा गया था ?वह जो कुछ भी जानता है ,उसके विषय में हमें जानकारी दे दे। जतिन बताता है-' कि मैं किसी, जंगल में एक कमरे में बंद था ,मैं यह भी नहीं जानता कि वह एक मकान था या फिर कोई एक कोठरी , क्योंकि मैंने जब खिड़की से बाहर देखा तो वहां खेत ही खेत नजर आ रहे थे। जब कोई व्यक्ति मुझे खाना देने के लिए, आया तो उसे भी मैं ,नहीं देख पाया। मुझे लगा, जब कोई खाना देकर गया है तो अवश्य ही ,कोई आसपास होगा। मैंने बहुत आवाज लगाई थी -क्या कोई है ,क्या कोई है? किंतु किसी ने भी मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया।
इससे एक बात तो सिद्ध होती है, इस गांव के सभी लोग आपस में मिले हुए हैं एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं। तभी तो ऐसे हालात में भी, मुझ पर ध्यान रखा गया। मेरा फोन भी न जाने कहां गायब कर दिया ?
कहीं तो होगा, किसी के पास तो होगा कामिनी बोली-मेरे पास तुम्हारा नंबर है ,मैं फोन करके देखती हूं,जिस पर होगा ,वह फोन उठाएगा।
मेरे विचार से तो कोई लाभ नहीं होगा, वह लोग बड़े ही चालाक हैं , आप फोन करके देख लीजिए , किंतु मुझे तो लगता है , कोई भी परिणाम नहीं निकलेगा ,शून्य ही होगा। हुआ भी ऐसा ही, कामिनी ने जब फोन लगाया ,तो फोन ही नहीं लगा।
मुझे तो लगता है- मेरा फोन! उन लोगों ने तोड़फोड़ दिया होगा। यदि मेरा फोन मेरे पास होता तो उनके विरुद्ध हमारे पास बहुत से सबूत होते, दुखी होते हुए जतिन बोला।
अब क्या किया जा सकता है किंतु हमारे लिए तो यह भी सही है, कि तुम सही -सलामत वापस आ गए।
हां, यही मैं सोच रहा हूं किंतु यह तो पता लगाना चाहिए कि उन्होंने तुम्हें कहां रखा था ? और तुम कैसे? उस नहर के किनारे पहुंचे जो उस गांव से तो बहुत दूर थी , कोई तो था, जो उनके 'विवाह 'जैसे कार्य में भी, उनका यह कार्य कर रहा था।
सबसे बड़ी बात तो यही है, कि वह लोग हमसे ज्यादा सतर्क थे। हालांकि मैं सतर्क था , फिर भी उन लोगों ने मुझे पहचान लिया।
कामिनी कुछ सोचते हुए गहरी सांस लेते हुए बोली -मुझे तो लगता है, इसमें इंस्पेक्टर भी मिला हुआ है। वही हम लोगों से मिला था, गांव का तो कोई भी व्यक्ति, हमें नहीं जानता था।क्या तुम्हें वो वहाँ दिखलाई दिया ?
नमस्कार ! भाई साहब !
नमस्कार ! नमस्कार !आईये ! आईये ! चौधरी साहब !बैठिये !उनका स्वागत करते हुए ,उनके समधी 'छत्रपाल जी' आगे आये और उन्हें लेकर अंदर बैठक में चले गए। थोड़ी देर में नौकर आया पानी रखकर चला गया। कुछ देर पश्चात, महंगी चांदी की थालियों में नाश्ता भी आ गया।
और सुनाइए ! घर में सब कैसे हैं ?
वहां सब मजे में हैं, किंतु हमारी बिटिया आपके पास है, जब घर में रहती थी, तो घर में चहल-पहल रहती थी, अब उसके बिना घर सूना -सूना सा लग रहा है, सोचा ,आप लोगों से मिलना भी हो जायेगा और कुछ दिनों के लिए बिटिया को, अपने घर ले जाने के लिए आए हैं।
हां ,हां वह तो ठीक है, लिजिए ,आप नाश्ता कीजिए !
कहते तो यही हैं , कि बेटी के माता -पिता को ,बेटी के घर का पानी भी नहीं पीना चाहिए , अब जब आपने इतना सारा नाश्ता लगवा ही दिया है, तो इसका अपमान भी नहीं कर सकते, कहते हुए उन्होंने एक समोसा उठाया और खाने लगे।
आजकल सब चीजें बाजार से आती हैं, कौन सा, हमारे घर में बन रही हैं ?
हां ,यह भी ठीक है, जमाना बदल रहा है लोगों की सोच बदल रही है , हमें भी बदलना होगा। नहीं बदले, तो यह रीति- रिवाज !
बदलने भी नहीं चाहिए, यही संस्कार तो है जो समाज को, संसार को आगे बढ़ाते हैं, किंतु समाज में जो वि कृतियां फैल रही हैं, उनको भी, हमें ही तो संभालना होगा।
तभी दौड़ती हुई, दृष्टि आई और बोली- पापा !आप कब आए ? मुझे अभी कुछ देर पहले, सूरज ने बताया - कि तेरे पापा आए हैं।
दृष्टि की बात सुनकर दोनों समाधियों ने एक दूसरे की तरफ देखा, मुस्कुराते हुए अतर सिंह जी बोले -तुम जानती हो ,सूरज कौन है ?
हां, मुस्कुराते हुए दृष्टि बोली -उसकी मम्मी ने बताया-वह मेरा पति है और जब मैंने सूरज से पूछा -कि तुम मेरे क्या लगते हो ? तो कह रहा था -'मैं तुम्हारा दोस्त लगता हूं।'
तुम्हें उसके साथ रहना अच्छा लगता है, क्या उसकी दोस्ती तुम्हें पसंद आई ?
हां ,वह अच्छा है, वह मेरे साथ खूब खेलता है, मेरे लिए एक बहुत सारे खिलौने भी लाया है, कहते हुए उसने एक बर्फी का टुकड़ा उठाया और खाने लगी।
अच्छा ,अब बताओ ! क्या तुम्हें अब घर जाना है या नहीं , हम तुम्हें लेने आए हैं।
हां ,मुझे मम्मी से मिलना है, कहते हुए दृष्टि रोने लगी।
इतने दिनों से सूरज के साथ खेलकर मन को बहला रही थी ,किन्तु अपने मायके का स्मरण होते ही उसकी रुलाई फूट पड़ी। अब रोने की क्या बात है ? यह सामने जो बैठे हैं ,ये तुम्हारे दूसरे पापा हैं, सूरज की मम्मी यानी तुम्हारी सासू मां, वह तुम्हारी भी माँ लगीं और सूरज तुम्हारा दोस्त है, अभी तुमने बताया -'कि उससे तुम्हारी दोस्ती हुई है, तब रोने की क्या बात है ?'
वह मुझे अच्छा लगता है किंतु मम्मी भी अच्छी लगती है ,मुझे मम्मी से मिलने जाना है।
घर चलना है तो जल्दी तैयार हो जाओ ! और अंदर जाकर, सूरज से और अपनी दूसरी मां से पूछो ! क्या मैं अपने घर मिलने जा सकती हूं ?
अपने पिता की बात सुनकर, दृष्टि प्रसन्न हो गयी और दौड़कर बाहर जाते हुए चिल्ला रही थी -दोस्त !सूरज ! सूरज!!! तभी उसने अपनी सास को आते हुए देख लिया , और बात बदलते हुए बोली -दोस्त !तुम कहां हो ?क्योंकि अभी दो दिन पहले ,सूरज की दादी ने दृष्टि को डांटा था कि लड़कियाँ अपने पति का नाम नहीं लेती हैं। तब वह अपनी सास या दादी के सामने सूरज का नाम नहीं लेती है।
क्यों क्या हुआ ? उसकी सास ने पूछा।
मुझे,मेरे पापा लेने आए हैं, उन्होंने कहा है -मैं आपसे पूछकर आऊं ,क्या मैं अपने घर जाऊं ?
तुम्हें जाना है तो........ अपने दोस्त को क्यों पुकार रही हो ? क्या उसे भी साथ लेकर जाओगी? हंसते हुए उसकी सास ने पूछा। यह बात तो दृष्टि के ध्यान में आई ही नहीं,वह वापस मुड़ गयी और अपने पापा से यह पूछने के लिए कि क्या मैं अपने दोस्त सूरज को भी ,अपने संग ले जा सकती हूँ ?
अपनी बेटी की बात सुनकर अतरसिंह जी बहुत हँसे और बोले -जैसी तुम्हारी इच्छा !ये बात सूरज से ही पूछ लो !