आज सुबह से ही, चौधरी साहब के घर में चहल-पहल हो रही है , हर कोई व्यस्त नजर आ रहा है।चमनलाल !ये फलों की टोकरी भी गाड़ी में रख देना ,और मिठाइयां रख लीं या नहीं ,चौधरी साहब ने पूछा।
जी,सब रख दिया है।
अच्छा जाओ !देवयानी से पूछो !और कुछ तो नहीं रखना है ,पता चला ,बात में बोलेगी -'आप जल्दी -जल्दी में निकल गए ,ये सामान तो रह ही गया।
जी अच्छा ,अभी पूछकर आता हूँ ,तभी पीछे से दृष्टि की दादी आकर बोली -ले ये कुछ कपड़े हैं ,इन्हे भी ले जा !
माँ !उसे हम लेने जा रहे हैं ,जब यहाँ आएगी तब भी तो उसे ,पहनने के लिए कपड़े चाहिए या नहीं। जी हाँ ,अब तो आप समझ ही गए होंगे , यह सब तैयारियाँ दृष्टि को लेने जाने के लिए हो रही हैं। चौधरी साहब ने दृष्टि का विवाह, तो करा दिया, उसकी ससुराल भी उसे दिखा दी किंतु उन्होंने उसकी ससुराल वालों से ,पहले ही बता दिया था, बेटी को साल -छह महीने में भेजते रहेंगे, ताकि उसे इस घर में भी रहने की आदत बने, इस घर के लोगों में घुल मिल जाए। तब तक आपके बेटे को पढ़ना है, और ''अपने पैरों पर खड़े होना है। ''नौकरी करनी है तो नौकरी करेगा या कोई व्यापार करना है, तो उसमें हाथ बटायेगा।दृष्टि वहां हो या यहाँ ,तब भी उसकी शिक्षा जारी रहेगी। शर्त के अनुसार आज दृष्टि को लेने जा रहे हैं , चौधरी साहब !
तभी चौधरी साहब के घर के फोन की घंटी बजती है,अब इस समय किसका फोन आ गया ?सोचते हुए ,अंदर आते हैं और फोन उठाते हैं -हेलो !
चौधरी साहब ! मैं इंस्पेक्टर मृदुल बोल रहा हूं ,क्या मैं आज आपसे मिल सकता हूं ?
क्यों, क्या हुआ ? क्या कोई आवश्यक कार्य आन पड़ा है।
आपके गांव की चर्चा, चहुँ ओर फैल गई है, अब लोगों की नजरें , आपके गांव की तरफ होंगीं, मतलब यह है ,कि आपका गांव चर्चा का विषय बन गया है ,मिडिया की भी नजरें टिकीं हैं। आपसे मिलकर ही, कुछ बातें हो सकती हैं।
अभी ,उन्होंने घड़ी में समय देखा और पूछा -अभी , आज तो हम अपनी बेटी को लिवाने जा रहे हैं, वापस आने में ,न जाने कितना समय लग जाए ? इसीलिए आज तो सम्भव नहीं हो पायेगा। कल मिलकर ,बैठकर बातें करते हैं निर्णयात्मक लहज़े में बोले।
जी, जैसा आप उचित समझें,कहते हुए इंस्पेक्टर ने फोन रख दिया।
जतिन आज प्रातः ही संस्था में, अपनी हाजिरी दर्ज कराता है। कामिनी सिंह ने जब उसे देखा तो उसे देखते ही बोली- अब कैसा लग रहा है ? क्या, तुम ठीक हो ?
जी, कल बहुत ही थकान थी, न जाने कितने किलोमीटर चला हूँगा।भूखा भी था , वहां से कोई वाहन भी नहीं जा रहा था, वह कच्चा रास्ता था अपनी उस स्थिति को सोचते हुए जतिन बोला।
क्या तुम जानते हो ? तुम्हारे साथ क्या हुआ ?मुझे लगता है ,तुम उसी गांव में पहुंच गए थे।
जी......
जबकि मैंने मना किया था।
आपके मना करने पर भी मुझे लगा ,मैं जिस कार्य के लिए यहाँ हूँ ,वह तो पूर्ण हुआ ही नहीं ,हमारा दिनभर का परिश्रम व्यर्थ चला जाता। तब मैंने सोचा -उस गांव में न ही ,मुझे कोई जानता है ,न ही, मैं किसी को जा नता हूँ ,एक बार चुपचाप देखकर तो आना चाहिए कि उस गांव में विवाह हो भी रहा है या नहीं ,यही सोचकर मैं गांव के रास्ते की ओर बढ़ चला। मैं परेशान हो सोच रहा था , ऐसा कैसे हो सकता है ? जब विवाह तय हुआ है, तो विवाह होना भी निश्चित है और आप लोगों के कथनानुसार उस मुख्य रास्ते से बारात जानी थी, इसीलिए मैं जानना चाहता था कि बारात आई या नहीं या हम लोगों के कारण उन्होंने अपना निर्णय बदल दिया।
क्या तुम उस गांव में गए ? तुमने वहां जाकर क्या देखा ?
वहां तो बाकायदा शादी हो रही थी।
बारात उस मुख्य रास्ते से नहीं गयी , इसका अर्थ है, वहां पर एक दूसरा भी रास्ता होगा।
यह तो मुझे नहीं मालूम, यह सब देखने का मौका मुझे मिला ही नहीं।
वहां पर तुम्हें किसी ने पहचाना तो नहीं !!!
मुझे तो ऐसा ही लगता था, किंतु किसी ने तो मुझे पहचान हीलिया होगा। तभी तो........ मुझे बेहोश करके एक कमरे में बंद कर दिया था।
तुम अपने फोन से हमारी सहायता भी तो ले सकते थे हमें कोई भी, संदेश दे देते , हम समझ जाते।
कैसे दे देता ? उन लोगों ने न जाने मेरा फोन भी कहां गायब कर दिया ? उस फोन में तो मेरे पास ,उनके विरुद्ध बहुत से सबूत थे। उन्होंने में मुझे बेहोश करके, मेरा सब सामान गायब कर दिया।
क्या तुम्हें इतना भी नहीं पता चला कि तुम्हें किसने बेहोश किया ?
कैसे पता चलता ? एक व्यक्ति के साथ मैं एक गली में जा रहा था, मेरा उद्देश्य था कि बारात से पहले ,उस घर में शीघ्र पहुंचने का ताकि मैं उस बालिका की कुछ तस्वीरें ले सकूं किंतु उससे पहले कि मैं वहां पहुंचता। किसी ने मुझे बेहोश कर दिया।
हो सकता है तुम जिस व्यक्ति के साथ जा रहे थे उसी ने तुम्हारे साथ ऐसा किया हो।
सोचते हुए ,जतिन बोला -मुझे तो ऐसा नहीं लगता।
क्यों तुम्हें क्यों नहीं लगता ?
क्योंकि वह तो मुझसे आगे चल रहा था , यदि उसे मेरे साथ ऐसा व्यवहार करना था तो वह पीछे मुड़ता मैं उसके पीछे था तभी अंधेरा होते ही, मेरा मतलब है -उस गली में, एक निश्चित दूरी पर ही रोशनी आ रही थी। वहां कोई खंबा भी नहीं था। अंधेरा आते ही, एकदम से किसी ने मेरे मुंह पर कपड़ा ढका और जैसे ही मैं उ अपने को छुड़ाने के लिए संघर्ष कर रहा था , तभी किसी ने मुझे बेहोश कर दिया। जब मेरी आंख खुली, तब मैं एक कमरे में था। जिसमें सिर्फ मटके में पानी भरा हुआ रखा था बाकी कुछ भी नहीं था। एक खिड़की थी, जिससे मुझे सामने के खेत नजर आ रहे थे। दूसरी खिड़की बहुत ऊपर थी। मैंने उसे खिड़की को ही काफी तोड़ने का प्रयास किया लेकिन मेरे पास वहां पर कुछ भी ऐसा सामान नहीं था जिससे मैं उस खिड़की को तोड़ने में सफल हो पाता।
तब तुम उस कमरे से बाहर कैसे आए? कामिनी ने, उत्सुकता से पूछा।
गहरी सांस लेते हुए जतिन ने अपनी आंखें मूंदी और अपने हाथों को ऊपर किया और सर पर रखा बोला -मुझे लगता है, खाने में मुझे कुछ दिया था।
खाने में दिया था, इसका मतलब तुम्हें खाना देने के लिए कोई तो आया होगा। उस आदमी से ही, बात करते उस आदमी का चेहरा तो देखा होगा कामिनी को एक उम्मीद जगी।
मेरे सामने कोई भी नहीं आया, जब मैंने देखा खिड़की पर पहले से ही खाना रखा हुआ था। मुझे बहुत भूख लगी थी और मैंने वह खाना खा लिया उसके पश्चात मुझे पता नहीं क्या हुआ ? और मैं कैसे उस नहर के किनारे पहुंचा।