नितिन अपने के बचपन के दोस्तों से, मिलने जाता है , तब सभी अपने -अपने अनुभव और अपनी नाकामी का रोना रोते हैं ,जीवन में वे क्या चाहते हैं और क्या बन रहे हैं ? उस ज़िंदगी से आश्चर्यचकित हैं। ज़िदगी उन्हें नए -नए अनुभव दे रही है ,उन्हें जिंदगी में क्या बनना है और परिस्थितियाँ उन्हें क्या बना रही हैं ? बिल्कुल अलग ही दिशा में जा रहे हैं ,कभी उन्हें लगता है- परिवार वाले साथ हैं तो कभी लगता है, कि हम परिवार के कारण पिछड़ गए हैं। कॉलेज में मिले नए दोस्तों को देखकर लगता है, कि वह जीवन में काफी पीछे रह गए हैं। दौड़ना चाहते हैं ,किन्तु अपने को बंधा महसूस करते हैं। सही मार्ग क्या है ?किधर जाना है ?कुछ सूझ नहीं रहा है। मंजिल की तलाश में हैं ,सभी को साथ लेकर चलना चाहते हैं किन्तु राह नजर नहीं आ रही।
अपने यही अनुभव एक दूसरे से बांट रहे हैं। घर वालों को उनसे बहुत सी उम्मीदें हैं ,वो भी बहुत कुछ करना चाहते हैं लेकिन हर व्यक्ति की क्षमता अलग-अलग होती है।शौक अलग हैं ,मंजिल की तलाश सभी को है ,वो मंज़िल कौन सी है ?किस राह जाना है ?बस यही समझ नहीं आ रहा। परिवार की भावनाओं का खयाल रखें या अपनी ,उम्र के इस पड़ाव पर भटकाव महसूस होता है। रचित कहता है- मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा, मैं एक कलाकार बनना चाहता हूं किंतु घर वाले कह रहे हैं कि कलाकार की जिंदगी भी कोई जिंदगी होती है ,खाने के लाले पड़ जाते हैं ,जबरदस्ती मेरे मुझे आगे पढ़ने के लिए धक्का दे रहे हैं किंतु मेरा मन आगे पढ़ाई में है ही नहीं, मजबूरी में कॉलेज में दाखिला तो ले लिया है किंतु इधर-उधर धक्के ही खाने पड़ रहे हैं विषय भी मेरे मनपसंद के नहीं हैं। मैं वो करना चाहता हूँ ,जिसमें मुझे सुकून मिले। हमारे माता -पिता अपनी इच्छाओं को हम पर थोपते हैं ,अपनी आकांक्षाओं की उड़ान,, हमारे पंखों से लेना चाहते हैं।
मैं मानता हूं ,हमारे माता-पिता के भी कुछ सपने होते हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वह हमारे सपनों पर ही हावी हो जाए। हम तो स्वयं ही भटक रहे हैं हमें मंजिल की तलाश है लेकिन किस रास्ते से उस मंजिल तक पहुंचना है, मुझे समझ नहीं आ रहा और ऐसे समय में, कोई सही सुझाव नहीं देता। हम परेशान इसलिए हो रहे हैं कि हम स्वयं क्या चाहते हैं ?अभी हम अपने आप को ही नहीं समझ पाए हैं। दूसरों के सुझाव पर चलने का प्रयास तो करते हैं किंतु लगता है ,वह रास्ता हमारे लिए सही नहीं है। तब क्या करें? हर्षित ने पूछा।
क्यों ?तू तो पढ़ाई में बहुत अच्छा था, फिर बन जाता कोई इंजीनियर या डॉक्टर या फिर कोई अध्यापक ! मुझे यह सब कुछ करना ही नहीं है, मैं तो देश-विदेश घूमना चाहता हूं किन्तु घरवाले...... पूछ मत यार !जब किसी की नौकरी या पढ़ाई सुनते हैं तो जीना दूभर कर देते हैं। वो देख ले !तिवारी जी के बेटे की नौकरी लग गयी और तुम यूँ ही ,मटरगस्ती करते रहना इसीलिए मैं उनको कुछ बताता नहीं।
लेकिन बच्चू ! देश-विदेश घूमने के लिए भी तो पैसा चाहिए।
जैसा हमारे माता-पिता ने किया कि कुछ पढ़ाई की माता-पिता के कहने पर पढ़ाई की ,आगे बड़े सफल रहे आगे बढ़े नहीं तो व्यापार किया और शादी करके अपना सुचारूपूर्वक जीवन को चलाते हैं किन्तु आज भी उनके मन में कहीं कोई ख़लिश है ,काश....... लेकिन मुझे यह सब नहीं करना है।
हमें क्या करना है क्या नहीं ?हम स्वयं ही नहीं जानते लेकिन मैंने अपने कॉलेज में देखा लड़के खूब मस्ती कर रहे हैं, घूम रहे हैं और उन्हें सब कुछ जानकारी भी है अपने जीवन का अध्याय स्वयं लिख रहे हैं। कुछ तो भटके हुए हैं किंतु कुछ संभल ही रहे हैं। जीवन की अच्छाई -बुराई उन्हें सब नजर आ रही है हम तो यहां माता-पिता के छत्रछाया में पले है इसीलिए जीवन की कठिनाइयों से परे हैं अभी हमने धरातल पर पैर नहीं रखा है।
तुम लोग भी न.... क्या बातें लेकर बैठ गए ,वे हमारे माता -पिता हैं ,उनकी ज़िंदगी के अपने कुछ अनुभव हैं ,वे चाहते हैं ,हम उनके अनुभवों का लाभ उठाकर ,जीवन में सफल हों। हो सकता है ,अब हमें ये उचित न लग रहा हो किन्तु कोई भी कार्य करने से पहले हमें ,आर्थिक रूप से मजबूत होना होगा। कब तक हम उन पर बोझ बने रहेंगे ?अपना खर्चा तो हम उठा नहीं सकते ,जब हम इस क़ाबिल हो जाएँ। तब क्या अपने सपनों के जितनी चाहो, उड़ान भरना। उन्होंने हमें पाल -पोस दिया,इस लायक बनाया कि हम कुछ कर सकें ,सोच सकें। रास्ता अब हमें तय करना है।
अरे यार !यही सब बातें करने के लिए क्या हम यहाँ आये हैं ? कितना समय, व्यर्थ में ही गँवा दिया, चलो ! कहीं चलकर अच्छा सा डिनर करते हैं। बहुत दिनों पश्चात मिले हैं , कम से कम अच्छी बातें तो कर सकते हैं। अचानक रचित बोला-तुम बियर लोगे।
क्या बात कर रहा है ?
क्या हम दूसरों को ही देखते रहेंगे, हम भी बड़े हो गए हैं, हमें भी जिंदगी से कुछ नए अनुभव लेने चाहिए नई चीजें सीखनी चाहिए ,नई -नई चीजें खानी-पीनी चाहिए। बस दूसरों को देखकर कुढ़ते रहो !
रचित को इस तरह कहते देखकर,सभी को आश्चर्य हो रहा है।
यार ! इसमें तो अपने को, बहुत बदल लिया है, सभी आश्चर्य से बोल रहे थे।
तभी रचित बोला -अपने को बदलना न बदलना यह हमारे हाथ में है, अब तुम हॉस्टल में रहते हो कॉलेज में रहते हो वहां तो माता-पिता नहीं आ रहे हैं। अपने मन का खाओ और पियो !अब आगे बढ़ने से तुम्हें किसने रोका है ?मजे करो।
ये मेन्यू कार्ड लो !और अच्छा सा कुछ मंगा लो !बहुत जोरों से भूख लगी है।
तभी वहां कुछ लड़कियों ने प्रवेश किया ,रचित उन्हें देख रहा रहा था।
अरे !उन्हें क्या देख रहा है ?हम ऐसे लड़के नहीं है ,चल बता ,तू क्या खायेगा ?
जब भी सोचेगा !गलत ही सोचेगा। मैं उस लड़की को देख रहा हूँ ,जो लाल कपड़ों में है।
क्यों ?उसमें क्या खास है ?
ख़ास यही है ,कि ये हमारे पड़ोस में रहती है।
तो क्या हुआ ?क्या तुम लोगों ने भी ,इसे नहीं पहचाना.......
नहीं ,कुछ ध्यान नहीं आ रहा ,कौन है ?