Balika vadhu [14]

जतिन का शक सही था, उस खिड़की पर, अवश्य ही कोई आया था क्योंकि खिड़की की छोटी सी दीवार पर, एक  पैकेट रखा हुआ था ,जो पहले नहीं था। जतिन को विश्वास हो गया ,अवश्य ही कोई यहाँ है ,उसने तुरंत ही, वह पैकेट उठाया और आसपास नजर दौड़ाई, किंतु कोई नजर नहीं आया इतनी जल्दी कैसे ,कोई जा सकता है? यही सोच कर उसने आवाज लगाई -कोई है ! क्या ,कोई मेरी आवाज सुन रहा है? किंतु उसे कोई भी नजर नहीं आया।न ही,उसकी आवाज पर आया।   न जाने ,इस लिफ़ाफे में क्या है ?देखने से तो लग रहा है ,इसमें खाना है। तब उसने उस पैकेट को खोला, उसमें खाना ही था। उसे बहुत जोरों से भूख लगी थी, तुरंत ही, उसने खाना आरंभ कर दिया। जब पेट भर गया, थोड़ा पानी पिया, मन को सुकून मिला,तब वह फिर से बाहर जाने के लिए सोचने लगा। इससे पहले कि वह कोई प्रयास करता ,तभी उसे चक्कर आया और वह भूमि पर गिर पड़ा। 


जब जतिन की आंख खुली, तो उसने अपने को खुले आसमान के नीचे पाया। पास में ही एक नहर बह रही थी , इस समय न ही ,पूरी तरह से दिन निकला था ,न ही घनेरी रात्रि ! इस समय वह कहां है ?उसे कुछ नहीं मालूम ! आसमान में कुछ तारे अभी भी टिमटिमा रहे थे। उसने अंदाजा लगाया यही कोई ,चार बज रहे होंगे। अभी भी ,उसे थोड़ा सा चक्कर आ रहा था सिर में भारीपन था। सिर को हाथों से पकड़ते हुए ,बुदबुदाया -न जाने ,मुझे क्या खिला दिया ?इसीलिए वो भोजन आया। उसने सामने ही, उस नहर से पानी पिया और अपने  चेहरे को धोया ,आंखों पर भी थोड़े छींटे मारे। आखिर मैं कहां आ गया हूं ? यह मेरे साथ क्या हो रहा है ? कुछ समझ नहीं आ रहा है। उसने इधर-उधर नजर दौड़ाई, शायद ,कोई इंसान ही दिख जाए। 

एक तरफ नहर थी तो दूसरी तरफ, एक कच्ची सड़क ! जिस पर वह स्वयं खड़ा था। वह नहीं जानता था कि मैं कहां पर हूं ? और मुझे कहां जाना चाहिए। किसी से संपर्क भी नहीं कर सकता। न जाने किसने, मेरा फोन भी ले लिया ? यह कार्य, उस गांव के लोगों का हो सकता है किंतु उन लोगों ने मुझे कैसे पहचाना ? यह समझ नहीं आ रहा , जिंदा छोड़ दिया, यही क्या कम है ? मार देते ,तभी मैं क्या कर पाता ?'' जान है तो जहान है.'' यह सोचकर, चुपचाप उस नहर के किनारे बैठा रहा ताकि कोई दिख जाए और उसे पता चले कि वह इस समय कहां पर है ? हो सकता है ,कामिनी जी ने भी ,अपना प्रभाव दिखाया हो इसीलिए उन्होंने  मारने की बजाय छोड़ दिया हो।  

प्रातःकाल का समय ,ठंडी ,ताजी हवा चल रही थी। उसे ठंड का भी एहसास हो रहा था किन्तु कोई भी ऐसा स्थान नजर नहीं आ रहा था ,जहाँ वह अपने को सुरक्षित कर सके। वह सिकुड़कर वहीं बैठा रहा।कमबख्तों !ने ऐसे स्थान पर छोड़ा है ,जहाँ दूर -दूर तक कोई घर या इंसान भी नजर नहीं आ रहा। मैंने सुना है गांव में लोग शीघ्र ही उठ जाते हैं किन्तु यहाँ तो कोई भी दिखलाई नहीं दे रहा। 

 अब उगते सूर्य की किरणों ने काफी प्रकाश फैला दिया था , चिड़ियों की चहचाहट सुनाई दे रही थी। प्रातः काल का मौसम अत्यंत सुहावना लग रहा था। वह तो प्रतिदिन ही सुहावना होता है, किंतु यह व्यक्ति की मनःस्थिति पर निर्भर करता है कि उस वक्त वह दृश्य सुहावना लग रहा है, या चिंताजनक या कैसी भी, कोई भी परिस्थिति हो सकती है। किंतु जतिन के लिए भी यह, सुखदायक ही था,उस कैद से छुटकारा तो मिला। तभी दूर से उसे एक व्यक्ति आता  दिखलाई दे रहा था। मन ही मन जतिन ने सोचा -इसी से ही पूछ लेता हूं ,कि इस वक्त मैं कहां पर हूं ?

 जैसे ही वह व्यक्ति उसके करीब आया, उसने अपनी परेशानियों को छुपाते हुए कहा - राम- राम भाई जी !

राम-राम ! कौन हो भैया ! मैं तुम्हें पहचान नहीं पाया। 

वक्त का मारा हूं, परेशानियों में उलझा हूं , क्या आप मेरी मदद करेंगे ? 

मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं ? उस व्यक्ति ने, ठहर कर जतिन से पूछा। 

यह कौन सी जगह है ?

क्या बात कर रहे हो ? यहां आए हो और पता ही नहीं, कि यह कौन सी जगह है ? हंसते हुए वह बोला -क्या हवा में उड़ते हुए आए हो? या नशे में थे। 

भैया ! मैं नशा नहीं करता।

तो फिर यहां कैसे पहुंचे ? 

पहले तो जतिन बताना चाहता था कि उसका कुछ लोगों ने अपहरण कर लिया था किंतु सोचा -यदि वह यह उसी गांव का हुआ तो मुझे रास्ता भी नहीं बतायेगा।  हो सकता है ,अपने लोगों, को ही बुला लाये। अभी कुछ भी कहना उचित नहीं होगा। तुरंत ही, संभलते हुए बोला -यह तो एक बहुत लंबी कहानी है, बस आप मुझे यह बता दीजिए ! इस समय में किस जगह पर हूं यह कोई गांव है या किस शहर के नजदीक हूं और इस जगह से बाहर जाने का कौन सा रास्ता है ?

यह किठोर गांव है , तुम्हें किस गांव जाना है ?

 मुझे किसी गांव नहीं जाना है, मुझे तो दिल्ली जाना है। 

क्या बात कर रहे हो ? वह तो बहुत दूर है। तुम बिना वाहन के यहां तक कैसे पहुंचे ?या किसी ने लूट लिया। 

मैं नहीं जानता,मैं यहां कैसे आया ?

क्या गोल-गोल बातें घुमा रहे हो ? सच-सच क्यों नहीं बताते ? तुम्हारा कोई गलत इरादा तो नहीं है। 

मैं बात यहां गलत इरादे से भला कैसे आऊंगा ? सही बात बताऊं ,तो मेरा अपहरण हुआ था। 

कब ,कहां और किन  लोगों ने किया , घबराते हुए उस व्यक्ति ने पूछा। 

मैं कुछ नहीं जानता, मैं किसी जगह कैद था। 

और तुम वहां से भाग आए, बाकी का वाक्य उसे व्यक्ति ने पूर्ण किया। 

नहीं, मैं भाग नहीं पाया, किंतु उन लोगों ने ही मुझे, यहां छोड़ दिया। 

क्या तुम उन लोगों को पहचानते हो ?

नहीं, मैं कुछ भी नहीं जानता किंतु तुम, पुलिस वालों की तरह क्यों मेरी तहकीकात कर रहे हो? मुझे जाने का रास्ता क्यों नहीं बताते हो ? 

जिस रास्ते कम ही लोग जाते हैं ,उस रास्ते पर जतिन को एकव्यक्ति मिलता है ,आखिर वह कौन है ?वह क्या चाहता है ?और इतनी जानकारी क्यों ले रहा है ?वो जतिन को सही राह दिखलायेगा या नहीं या उसे भटकाने के लिए आया है। आइये !आगे बढ़ते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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