Bant jati hun,kirdaron mein

जब, मैं लिखती हूं, क़िरदारों में ,बँट जाती हूं।  

समेट, अपने आप को........ 

स्वयं से ही सवाल, स्वयं ही जवाब देती हूं। 

स्वयं ही माँ , तो कभी बेटी,बहु बन जाती हूं। 



समेट अपना दर्द पन्नों पर, जीवन तलाशती हूं। 

भरती बिन पंखों उड़ान,धरा पर छा जाती हूँ। 

स्वयं बनती सवाल, उलझन को सुलझाती हूं। 

 जब किरदारों में बँट जाती हूं,

 लम्हों को स्मरण कर ,स्वयं को खोजती हूँ।  

 जीवन सफ़र मेरा अपना,तब ' मैं 'होती हूं। 

चुरा लेती हूं, कुछ लम्हें !अपने लिए जीती हूँ। 

अपने लिए जब.........  अकेली 'मैं 'होती हूं। 

उन किरदारों, को अपने में जीती हूं। 

बँट कर भी मैं ,मैं होती हूं। 

जब मैं लिखती हूं, ख्वाबों को जीती हूं। 

दर्द को महसूस कर, दवा भी बनती हूं। 

 कांटों में उलझी भी, कभी मुस्कुराती हूं।

 कभी जी उठती हूं तो कभीबुझ सी जाती हूं। 

कभी स्वयं की प्रेरक बन, आगे बढ़ जाती हूं। 

जब मैं लिखती हूं, जीती हूं ,उन लम्हों को,

और किरदारों में बँट जाती हूं।

खेलती हूँ ,क़िरदारों से ,वक़्त संग बह जाती हूँ। 

मिल आती....  न जाने, कितनी परछाइयों  से ,

इक नया जहाँ जी आती हूँ ,जब मैं लिखती हूँ। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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