घर आकर , नरेंद्र और नितिन ने, किसी को कुछ भी नहीं बताया किंतु उनके चेहरे की मुस्कुराहट और उनके चेहरे की मुस्कान बहुत कुछ कह रहा थी ,हालांकि उन्होंने स्वयं ही अपने बेटे से कहा था -अपनी मां को कुछ मत बताना किंतु उनकी प्रसन्नता सब बयां कर रही थी।
क्या, आज कुछ हुआ है ? पद्मिनी ने अपने पति के चेहरे की तरफ देखते हुए पूछा।
नहीं, तो ऐसी कोई बात नहीं है।
फिर कैसी बात है ? हमें भी तो पता चले , चेहरे पर यह नूर कैसा ? भोजन तैयार हो गया है, अब तो आपके पापा कमरे से बाहर आ सकते हैं, आप उन्हें भोजन के लिए बुला लाइए !
नरेंद्र जी अपने पिता को लेने के लिए कमरे में गए, और बोले -आईये , पापा जी !चलो भोजन कर लेते हैं।
आज क्या बात है? तेरे चेहरे पर कुछ अलग ही भाव हैं , क्या कुछ हुआ है ? गोविंद जी ने पूछा
अब आपको क्या बताऊं ? आपका पोता बड़ा और समझदार हो गया है मुझे आज उसकी हरकतों पर गर्व हो रहा है।
क्यों, उसने ऐसा क्या किया है ? तब तक नरेंद्र उनकी कुर्सी, खाने की मेज के समीप ले आता है और पद्मिनी ने भोजन भी लगा दिया था। नितिन अपने कमरे में था, तब नरेंद्र जी ने बताया -कि किस तरह उसने एक लड़की को, चार-पांच गुंडो से बचाया और उनकी पिटाई भी करवा दी पूरा विस्तार से वर्णन किया।
यह आप क्या कह रहे हैं ? आपने उसे जाने ही क्यों दिया ? घबराते हुए, पद्मिनी बोली -ऐसे में उन गुंडों का क्या मालूम ?उनके पास चाकू होता या बंदूक होती , तो सारी की सारी हेकड़ी धरी की धरी रह जाती चिंतित स्वर में पद्मिनी बोली।
जब भी सोचोगी ,गलत ही सोचोगी ,इसीलिए मैं तुम्हें यह बात नहीं बता रहा था, तुमने सारी बात का मज़ा किरकिरा कर दिया, ऐसा कुछ हुआ तो नहीं , उस समय तो तुम्हारा बेटा, हीरो बन गया था। क्या एक बच्ची को बचाना? सही नहीं हुआ।
नहीं ,मुझे इस बात का बुरा नहीं लगा कि उसने एक बच्ची को बचाया बल्कि यह बुरा लगा बिना सोचे- समझे किसी के कार्य में इस तरह टाँ ग नहीं अडानी चाहिए। हो सकता है ,उनके पास चाकू, या बंदूक होती तो....... वह क्या कर लेता ?
तुम्हारी बात अपनी जगह सही है, किंतु ऐसा हुआ तो नहीं और जब जैसा होता ,उस समय भी देखते ,किन्तु अब उनके चेहरे की मुस्कान थोड़ी कम हो गयी थी।
अब तुम दोनों ही लड़ते रहोगे ! या भोजन भी परोसोगे उनके झगड़े को विराम देने के उद्देश्य से गोविंद जी बोले -यह बात अच्छी है- कि उसने, किसी लड़की को गुंडो से बचाया, ऐसा होना भी चाहिए , किंतु बहू की चिंता भी अपनी जगह सही है। लेकिन इस बात को तो मैं भी मानता हूं कि बेटा हमारा समझदार हो गया है , तुमने देखा नहीं,किस तरह मेरी परेशानी को देखकर कुर्सी ले आया , यह चीज तुम दोनों ने भी नहीं सोची , जब इंसान कुछ अलग हटकर सोचने लगता है। यह नहीं कि वह हमारे लिए कुर्सी लाया या उसने लड़की को बचाया लेकिन इससे पता चलता है ,उसकी सोच परिष्कृत हो रही है। इसमें अच्छाई भी हो सकती है और बुराई भी, किंतु हमें अपने बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहिए। साथ ही उसे समझाना भी चाहिए, कि वह कोई भी कार्य समझदारी से करें !
क्या बातें हो रही हैं ? अंदर से नितिन आते हुए बोला।
बस ,तुम्हारी मां अभी यही कह रही थी -कि अपने बेटे को भोजन के लिए बुला लो ! फिर शाम को भी काफी सारे कार्य हो जाएंगे और कल से त्यौहार है ही ! और अब पहले ही सोच लेना ! धनतेरस पर किसको क्या लेना है ?
गोविंद जी बोले -मुझे तो कुछ नहीं लेना है,मेरे लिए तो यही काफी है कि अब मैं इस घर में इधर -उधर जा सकता हूँ ,अपने कमरे में पड़े -पड़े बोरियत महसूस कर रहा था। अपने पोते की तरफ देखते हुए बोले -बेटा !खुश रहो !हमेशा अच्छे कार्य करो !किन्तु संभलकर.......
घर में बहुत कुछ सामान आ चुका है , कुछ नया लाना ही है तो छोटा-मोटा सामान मंगवा लूंगी। कहते हुए, पद्मिनी रसोई घर में चली गई।
भोजन करते हुए, नितिन को जैसे कुछ स्मरण हो आया और उसने अपना फोन उठाया, और किसी से फोन पर बातें करने लगा। पापा आप मेरे दोस्तों को तो जानते हैं ? न जाने कौन कहां है ?लेकिन मैंने सोचा -शायद वह लोग भी आए हुए होंगे इसलिए उनसे भी मिल लेते हैं , आप सुमित को तो जानते ही हैं , उसका एम.बी.बी.एस लिए चुन लिया गया है , उससे ही पूछ रहा था।
अच्छी बात है, बच्चे काबिल हो जाते हैं माता-पिता के लिए तो यही सुकून है। तुम्हारा दोस्त प्रणव आजकल कहां है ? वह दिखलाई नहीं देता।
वह पहले तो अपने पिता का व्यापार संभाल रहा था , उसके पश्चात अब एम्,बी. ए. कर रहा है। और अब सुनने में आया है वह फिर से बाहर गया है नौकरी कर रहा है।
उसका मन भटका हुआ है ,अभी वो सही से कोई निर्णय नहीं ले पा रहा है ,रोटी लाते हुए पद्मिनी बोली।
मम्मी आप ये सब क्यों कर रही हो ?संतोष कहाँ है ?
कहाँ होगी ?अपने घर में होगी।
क्या ,वो आज आई नहीं।
नहीं ,उसे भी तो त्यौहार पर छुट्टी चाहिए। ऐसे समय में ही काम अधिक बढ़ता है और इन लोगों को भी छुट्टी चाहिए। तुम परेशां न हो ,अपनी जगह किसी और को भेजने के लिए कहकर गयी है। तुम बताओ ! प्रणव , अपने पिता के बिजनेस को नहीं संभाल रहा ? पद्मिनी ने पूछा।
मन है ,बदलता रहता है नितिन ने अपना तर्क दिया , अब मिलेगा तो बात होगी। शाम को मुझे आने में थोड़ी देरी हो जाएगी ,दो -चार दोस्तों से मिलने जाऊंगा ,मेरी फ़िक्र मत करना खाना भी बाहर ही खा लूंगा।
और सुना यार! जीवन में क्या चल रहा है ? कुछ लड़की-वड़की का चक्कर....... क्या कुछ नया सीखा, प्रणव ने नितिन से पूछा।
नहीं लड़की -वड़की तो नहीं, किंतु वहां कॉलेज के लड़कों को देखकर तो लगता है ,हम बहुत पीछे रह गए। वह लोग कितने आजाद विचारों के हैं ,हॉस्टल में रहते हैं किसी की कोई परवाह नहीं ,मौज -मस्ती लड़की शराब, सिगरेट यार खूब मजे हैं।
तूने भी तो मजे किए होंगे।
नहीं, मजा नहीं किया अभी तो मैं उन लोगों को देख रहा हूं ,समझ रहा हूं ,कैसे लोग हैं? क्या उनके घर वालों ने कभी उन्हें समझाया नहीं ?हमारे यहां तो मम्मी को पता चल जाए तो पीछे पड़ जाएंगीं , कॉलेज छुड़वा देंगीं। पता नहीं, कैसे वह, यह सब कर लेते हैं, मैं तो अभी पशोपेश में ही फंसा हुआ हूं। कुछ लोगों के माता-पिता पैसे भिजवा देते हैं।
अरे यार ! रईसों की औलाद हैं , पैदाइशी ,मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं, मौज- मस्ती वह लोग नहीं करेंगे तो क्या हम जैसे करेंगे ? यहां तो सुबह उठते ही, मां की हिदायतें शुरू हो जाती हैं। पिता की चिंता दिखलाई देने लगती है , तभी तो मैं पढ़ाई छोड़कर व्यापार में लग गया था किंतु व्यापार में मन नहीं लगा तब सोच रहा था आगे पढ़ाई कर लेता हूं। जिंदगी भी न जाने यह क्या करवा कर छोड़ेगी ? तू इंजीनियर बन गया तो बाहर ही नौकरी करेगा ,तब माता-पिता को परेशानी होगी या नहीं।
अरे यार जबकि जब देखेंगे ! अभी यह दो-तीन साल तो यहां निकल जाए, हो सकता है ,माता -पिता को तब तक मेरे बगैर रहने की आदत पर बन जाए।