Shaitani mann [part 11]

नितिन अपने पिता के साथ कुछ घरेलू और त्यौहार में सजावट के सामान की खरीदारी करने बाज़ार जाता है, रास्ते में एक जगह भीड़ देखकर वह रुक जाता है। उसके पिता ,उस भीड़ को नजरअंदाज कर ,उसे आगे बढ़ने के लिए कहते हैं और वहआगे चल देता है, तभी उसे, उस भीड़ में से एक लड़की की आवाज सुनाई देती है। तब वह अपने पिता की बात न सुनकर , उस भीड़ के अंदर प्रवेश करता है। वह देखता है, कुछ आवारा किस्म के लड़के, एक लड़की के साथ बदतमीजी कर रहे हैं किंतु वहां खड़े लोगों में से किसी, का भी यह साहस नहीं था कि उन लड़कों को, उस लड़की से गलत हरकत करते हुए देखकर, उन्हें रोक सके और डांट सके। तब नितिन आगे बढ़कर उनसे पूछता है -क्या बात है ? यह क्या हो रहा है ?

तुझे क्या लेना, तू अपने काम से कम रख, उनमें से एक लड़के ने नितिन से कहा। 

यह लड़की कौन है ?



तुझे क्या मतलब ! क्या तेरी कुछ लगती है ? उनमें से एक अकड़ते हुए बोला। 

तब तक नितिन के पिता भी उसे भीड़ को चीरते हुए ,आगे आ गए थे, और वह मन ही मन घबरा रहे थे कि कहीं यह, उन लड़कों से पंगा न ले ले। उनकी घबराहट जब ज्यादा बढ़ गई जब वह उनसे तर्क करने लगा। उसके जवाब में नितिन ने कहा- हाँ ,यह मेरी बहन लगती है, इसने क्या तुझसे कहा है या तेरे  साथ कुछ किया है उस लड़की की तरफ देखते हुए ,उस लड़के से पूछा।

हहहह !ये भला हमारे साथ क्या करेगी किन्तु हम इसके साथ बहुत कुछ कर सकते हैं ,तेरी बहन लगती है, तो बचा ले ! व्यंग्य से मुस्कुराया अपनी बहन को!!!!! साली,  बड़ी अकड़ दिखाती है। 

क्यों न दिखाएं ? तेरे बाप का दिया खा रही है ,एकदम से नितिन की आवाज़ भी तेज हो गयी। अब तो नरेंद्र जी की हालत खराब हो गई ,उन्हें लग रहा था , त्योहार के दिनों में, जरूर हाथ -पैर तुड़वाकर मानेगा। वे उसका हाथ पकड़ कर, उसे भीड़ में से खींच कर ले जाना चाहते थे किंतु उस लड़की का चेहरा देखकर,साहस न जुटा सके।इस समय,इतनी भीड़ में, नितिन  ही तो उसके साथ खड़ा था। 

तू हमसे क्यों ,दुश्मनी मोल ले रहा है, क्या तू हमें नहीं जानता ? 

क्यों ? तुम क्या यहां के कलेक्टर हो ,जो तुम्हें जानना जरूरी है ,साफ-साफ नजर आ रहा है, कोई गुंडे -मवाली हो। कहते हुए ,उसने उस लड़की का दुपट्टा जमीन से उठाकर उसे दिया तभी उसकी तरफ एक आदमी यह कहते हुए लपका तेरी तो.......

नितिन शायद, इसी इंतजार में था और उसने पलटकर अपना बचाव किया और बड़ी फुर्ती से, उसके जबड़े पर मारा। वहां खड़े सभी लोग ,देखते के देखते रह गए। भीड़ में जैसे भगदड़ मच गई। तभी नितिन ने खड़े होकर कहा -तुम लोग ,इतने कायर हो चुके हो ,कितने लोग हो ?और इन  चार-पांच आदमियों को नहीं संभाल सके। यह कोई फिल्म नहीं है, कि इसे बचाने हीरो आएगा और हीरोइन को बचाएगा। अरे.......  तुम सब चाहते,तो इस बच्ची को बचा सकते थे। क्या फायदा तुम लोगों की भीड़ होने का ? कल को हमारी मां -बहन ,बेटी भी हो सकती है। तब क्या इसी तरह खड़े देखते रहोगे ? एक-एक आदमी पर चार -चार, पांच- पांच टूट पड़ते , तब ये , कुछ भी नहीं कर सकते थे। 

अरे ! हमें क्या मालूम ,यह झगड़ा किस बात पर है ? वैसे ही ''किसी के फटे में टाँग नहीं अड़ाते। 

किस्सा ,कोई भी हो ,तुम्हें इतना तो दिख रहा है, कि वह एक लड़की है और यह लोग उसकी बेइज्जती कर रहे हैं , यह जानने के लिए, इतना ही काफी है। तभी एक लड़का, गुस्से से आगे बढ़ता हुआ आया तभी नितिन ने भी ,उसका हाथ थाम लिया और बोला -देख ! क्या रहे हो, सब टूट पडो ! क्योंकि उसने दूसरे लड़के को चाकू निकालते देख लिया था। उसके इतना कहते ही ,भीड़ में से सभी लोगों ने एक-एक लड़के को पकड़ लिया और उनकी जमकर कुटाई कर दी। तब तक नितिन भीड़ में से ,उस लड़की को लेकर बाहर आ गया अलग ले जाकर उससे पूछा - यह लोग तुम्हारे साथ क्यों झगड़ रहे हैं ?

ये ऐसे ही ,आवारा घूमते रहते हैं, मेरे कॉलेज में भी पीछा करते हैं। जब मैं इन लोगों से तंग आ गई तब मैंने इन्हें समझा,ना चाहा , तब एक लड़के ने मेरा दुपट्टा खींच लिया। मैंने उसके, तमाचा मारा तो वह मुझसे ,उसका बदला ले रहे था। 

तुमने ही, बढ़ावा दिया है। जब ये  शुरू में ही ,तुम्हें तंग कर रहे थे तो तुम्हें पुलिस को बताना चाहिए था। तुम सब बर्दाश्त करती रहीं इसीलिए इन्हें यह मौका मिला। 

हाँ, मैं मानती हूं, मेरी गलती है किंतु आप समझते नहीं हैं। एक लड़की पुलिस के पास, किसी की शिकायत करने जाती है तो सबसे पहले तो उसके परिवार वाले ही रोकते हैं। कहते हैं -क्यों ?दुश्मनी मोल लेना ,उसके पश्चात बदनामी का डर, इतनी सब बातें सोचते हुए, मैं चुपचाप ही बर्दाश्त कर रही थी।तब भी ,कुछ तो इतना कह देतीं  हैं -इसने ही कुछ ,मौका दिया होगा ,वरना हमें तो कोई न छेड़ता। 

 वही तुमने गलती की है , अभी तो दुपट्टा ही खींचा था, यदि भीड़ में इससे भी ज्यादा ओछी  हरकत कर बैठते तो ,तब तुम किसे मुंह दिखातीं , मेरा कहा मानो ! तो अब अपने पिता के साथ जाकर, इनकी पुलिस में रिपोर्ट करा दो ! 

नितिन को ढूंढते हुए ,उसके पिता भी वहीं आ पहुंचे और अब सीधे अपने घर जाओ !अब तो ये आ गया किन्तु हर जगह हर आदमी एक जैसे नहीं होते ,नरेंद्र जी ने उस रोती हुई लड़ी से कहा। 

 हो सकता है ,अपना बदला लेने के लिए यह लोग कुछ और हरकतें कर बैठें इससे पहले ही पुलिस को सूचित करना आवश्यक है। 

नरेंद्र जी के चेहरे पर अब क्रोध नहीं मुस्कान थी , उसे लड़की से बोले -बेटा !अब  अपने घर जाओ और अपने घर वालों को संपूर्ण बात बताना। हमारी किसी भी तरह की सहायता की जरूरत पड़े तो 'गोविंद विला 'में आ जाना कहते हुए ,अपने बेटे की तरफ गर्व से देखा और उस लड़की को भेज दिया।

 तभी जैसे नितिन को कुछ याद आया, और बोला -पापा !आपने ध्यान नहीं दिया ,उस लड़की का नाम तो पूछ लेते। 

हां, यह बात तो स्मरण ही नहीं रही, चलो ! देख कर पहचान लेंगे ,हम उम्मीद करेंगे ,हमारी आवश्यकता ही न पड़े। अब चलो ,कुछ खरीदारी कर लें  , वरना घर में तुम्हारी मां का भाषण सुनना पड़ेगा। कभी मैं भी ,ऐसा ही था ,तुम मुझपर ही गए हो। 

और अब !!!!

अब तो मेरी तो सारी उम्र तुम्हारी माँ से डरते -डरते ही गुजर गई कहते हुए मुस्कुरा दिए, नितिन भी हंसने लगा। आज उन्हें अपने बेटे पर गर्व हो रहा था। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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