Balika vadhu [10]

कामिनी को ,ऐसा लग रहा था ,जैसे इंस्पेक्टर मृदुल, उन्हें तैयारी के लिए समय दे रहा है किंतु कामिनी सिंह अब इस समय उनके घर में तो बैठी ही है और चौधरियों की बेटी घर में ही होगी, छोटी बच्ची हुई ,तो दौड़ती- खेलती नजर आ ही जाएगी। यह सोचकर वह  चुपचाप रहती है। देवयानी चाय बनाने के लिए कहकर आती है। उसके पश्चात, कुछ ही देर में चाय के साथ मिठाई और फल भी आ जाते हैं। वहां उन लोगों का रहन-सहन देखकर, कामिनी को लग नहीं रहा था, कि यह लोग गांव में रह रहे हैं। गांव में रहकर भी ,उनके रहन-सहन का तरीका किसी शहर से कम नहीं था किंतु कामिनी की पारखी नजरें  इधर-उधर उस लड़की को ही तलाश रही थीं। चाय पीते ही तुरंत बोली -अब उस बच्ची को बुला दीजिए ,जिसका विवाह हो रहा है,उसको आशीर्वाद देते हुए, चलते हैं। 

 जी,जी कहते हुए देवयानी ने, पाखी को आवाज़ लगाई। कुछ देर में ही सुंदर वस्त्रों  से सुसज्जित, हाथ में मेहंदी लगाये,  एक लड़की बाहर आती दिखलाई दी। लड़की देखने से तो उन्नीस से बीस वर्ष की लग रही थी। 


तब कमीनी ने देवयानी से पूछा -क्या ,यह तुम्हारी बेटी है ? 

जी नहीं, रिश्ते में तो नंद लगती हैं  किंतु बेटी ही समझकर पाला है। बेटी की तरह ही रखते हैं। 

तुम्हारा नाम क्या है, कामिनी ने पाखी से पूछा। 

मेरा नाम 'पाखी 'है। 

क्या उम्र है ,तुम्हारी !

19 की हो गई है, देवयानी ने जवाब दिया। 

कितनी पढ़ी हो ?

आठवीं तक गांव में पढ़ी हूं, बाहरवीं प्राइवेट किया है। 

क्यों बाहर पढ़ने नहीं गई ? 

नहीं, घर वालों को ऐतराज होता, स्यानी लड़की को अकेला नहीं भेजते। यहां भैया ने ,अर्जी लगाई है कि यहीं पर  स्कूल 12वीं तक हो जाए। बातचीत से और वहां के वातावरण से कुछ भी ऐसा अनुचित नहीं लग रहा था कि जिसको कामिनी पकड़ सके। 

तुम  इस विवाह से खुश हो। 

हाँ में गर्दन हिलाते हुए पाखी ने नज़रें  नीचे कर लीं। 

तुम्हारा दूल्हा क्या करता है ? स्नातक करके, अपने घर का व्यापार संभालते हैं।यहाँ आकर कामिनी को कुछ भी ऐसा नहीं लगा ,जिस पर शक किया जा सके। जिसने यह लेख लिखा है ,क्या वो गलत थी ?किन्तु उसे कैसे मालूम यहाँ विवाह हो रहा है। उसने ऐसा कुछ तो देखा ही होगा।  तभी कामिनी के मन में एक विचार और कौंधा और देवयानी से बोली - आपकी बच्ची से भी मिल लेते हैं। 

पहले तो देवयानी एकदम से हड़बड़ा गई, अपने को संभालते हुए बोली -वह तो यहीं  कहीं गयी होगी या बाहर बच्चों में खेल रही होगी।

कामिनी ने बड़े प्यार से ,पाखी से प्रश्न किये और पाखी ने भी ,सहजता से उसके प्रश्नों का उत्तर दिया। कामिनी को कुछ भी गलत नहीं लगा। न ही पाखी डरी -सहमी सी नजर आई, किन्तु यदि वो लोग इतनी आसानी से मान जाएँ तो इतने बच्चों को बचा नहीं पाते। कामिनी को लगा जैसे -इस लड़की को पहले से ही सब समझा दिया गया है किन्तु उस लेख में ,जिस बच्ची का जिक्र है ,वो तो मात्र आठ बरस की है ,फिर ये लड़की तो बहुत बड़ी है। इतना बड़ा दृष्टिभृम तो नहीं हो सकता।तब वो इंस्पेक्टर की तरफ देखती है और पूछती है -जो महिला ,आपसे रिपोर्ट लिखवाने आई थी ,उसका क्या नाम था ?

मुझे ध्यान नहीं ,वैसे अब तो अपने स्वयं ही अपनी आँखों से सब कुछ देख ही लिया है ,यहाँ कुछ भी गलत नहीं है। वो न जाने कहाँ से आई और ऐसे ही किसी पर कोई भी इल्ज़ाम लगा देना तो पागलपन है। 

वो ऐसे ही तो ,इस गांव में नहीं आई होगी ,हो सकता है ,यहाँ किसी से मिलने आई हो ?यहाँ उसका कोई रिश्तेदार या जान -पहचान वाला हो, तब उसने यह सब देखा हो।  

तब इंस्पेक्टर ने सोचा -ये कुछ ज्यादा ही दिमाग़ लगा रही है ,कुछ देर यहीं रही तो...... शायद कुछ न कुछ सबूत ही ढूंढ़ ले ,तब वह कहता है -मुख्य मुद्दा क्या था ?जिस लड़की का विवाह हो रहा है ,वह कम उम्र तो नहीं ,यह अब आप अपनी आँखों से देख चुकी हैं। अब आप पाखी से भी मिल लीं ,अब चलें ,काफी देर हो चुकी है ,विवाह वाला घर है ,हमारे आने से ,इन लोगों को असुविधा हो रही होगी कहते हुए उठ खड़ा हुआ।  यहाँ आपको कुछ भी नहीं मिलेगा। 

कामिनी के मन में अनेक प्रश्न उभर रहे थे ,जो जबाब पाना चाहते थे किन्तु प्रत्यक्ष कुछ कर भी नहीं पा रही थी। तब उसने तिरछी निगाहों से इंस्पेक्टर की तरफ देखते हुए पूछा -आप इतने यकीन से यह सब कैसे कह सकते हैं ?कि यहाँ कुछ मिलने वाला नहीं है। 

जब कुछ है ही नहीं ,तो क्या मिलेगा ?अपनी मोटरसाइकिल पर बैठते हुए बोला -आपने मुझसे कहा था मुझे आप उस लड़की से मिलवाइये ! और अब आप उससे मिल लीं ,अब आप ही बताइये ! आपको किसकी तलाश है ?

उस छोटी बच्ची की ,जिसका जिक्र उस लेख में था। 

मेरी एक बात समझ में नहीं आ रही ,आपने उस लेख पर ही इतना विश्वास कैसे कर लिया ?आपको इतने लोगों पर विश्वास नहीं हो रहा, जो प्रत्यक्ष है। 

कई बार ,आँखों देखी और कानों सुनी भी गलत हो जाता है किन्तु यह सब मैं आपसे क्यों कह रही हूँ ,व्यंग्य से उसकी तरफ देखते हुए बोली। 

क्या मतलब ?

जैसे आप कुछ समझते ही नहीं ,इंस्पेक्टर साहब !इतने भोले भी मत बनिये !उसकी मोटरसाइकिल पर पीछे बैठते हुए कामिनी बोली। इंस्पेक्टर ने कामिनी को उनके लोगों के पास उतार दिया जो इतनी देर से उसी की प्रतीक्षा कर रहे थे और स्वयं थाने के अंदर चला गया। 

क्या हुआ ?कुछ मिला सरोजिनी ने पूछा ,कुछ नहीं किन्तु कुछ तो है ,जो नजर में नहीं आ रहा। यहाँ दिक्क़त ये इंस्पेक्टर ही है। मुझे लगता है ,इसने पहले ही ,वहाँ सबको सूचित कर दिया। अब कुछ तरीके से चल रहा था। मेरे सामने एक उन्नीस साल की लड़की को खड़ा कर दिया किन्तु जब मैंने उनकी अपनी बेटी से मिलना चाहा तो बहाना बना दिया। हो न हो उस बच्ची का ही विवाह हो रहा हो और वो कुछ बता न दे इसीलिए उसे छुपा दिया।इन लोगों की सच्चाई को बाहर लाने के लिए ,अब हमें ,एक काम करना होगा। रह्स्य्मयी तरीके  से कामिनी बोली। 

वो क्या ? आइये आगे बढ़ते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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