शिवांगी ने, जब पहली बार तुषार को, कल्पना के साथ देखा तो उसे बर्दाश्त नहीं हुआ। अब बात हाथ से निकल चुकी थी, उन दोनों का विवाह हो रहा था। किसी ने जानना भी नहीं चाहा कि शिवांगी पर क्या बीत रही है ? जानता भी ,कोई कैसे ? उसने किसी को कुछ बताया ही नहीं था, क्योंकि वह स्वयं ही नहीं जानती थी कि तुषार भी उससे प्रेम करता है या नहीं , विदेश से मुंबई इसीलिए तो आई थी कि वह तुषार से अपने दिल की बात कह सके किंतु यहां तो, कहने -सुनने को कुछ रहा ही नहीं। जिस मौके पर वह आई थी, उसकी बहन के लिए, वह मौका उसकी ज़िंदगी का स्वर्णिम पल था और उसके लिए सबसे बड़ा धोखा !जीवन उसे अंधकारमय नजर आने लगा। अब तो बहुत देर हो चुकी थी ,किन्तु तुषार को अपनी बहन के पति के रूप में देखकर, उसे ज्यादा दुःख हो रहा था। कहीं दूर चला गया होता तो, सब्र कर लेती किन्तु उसकी आँखों के सामने रहकर भी ,अब वह उसका न हो सकेगा।यह सोचकर ही,, उसका दर्द दोगुना होता जा रहा था। तब वह अपनी ज़िंदगी को समाप्त करने के उद्देश्य से, एकांत स्थल पर जाती है। जहाँ उसे चांदनी रोक लेती है और उसे समझाती है।
न ही चांदनी उसे जानती है और न ही ,शिवांगी उसे पहचान पाती है , क्योंकि जब वह नीलिमा के घर कार्य करती थी ,तब शिवांगी बहुत छोटी थी। तब वह शिवांगी से पूछती है -क्या वो लड़का भी, तुमसे प्रेम करता है ?
नहीं जानती, किंतु मुझे बस इतना मालूम है कि मैं उससे प्रेम करती हूं और उसी के लिए मैं यूरोप से यहां आई हूं मैंने अपनी मम्मी और बहन को पहले ही बता दिया था, कि एक लड़का मेरी ज़िंदगी में है और अब वह इंडिया पहुंच गया है, मैं भी उसके लिए वही आऊंगी। इससे पहले कि मैं उनसे कुछ बताती या कहती, उनका विवाह हो रहा था, वो भी मेरी दीदी के साथ........ कहते हुए फिर से जोर-जोर से रोने लगी।
रोओ मत !चुप हो जाओ !शिवांगी को गले लगाते हुए ,चांदनी बोली -आखिर वह ख़ुशनसीब लड़का कौन है ?जिससे तुम इतना प्रेम करती हो।
जावेरी प्रसाद जी का लड़का है ,तुषार ! उसी से मेरी बहन का विवाह हुआ है। शिवांगी की बातें सुनकर, उस महिला की आंखें चमक गईं और अपने शब्दों में मिठास भरते हुए ,हमदर्दी से बोली -जिसको तुम चाहते हो ,पसंद करते हो, उसके लिए लड़ना पड़ता है, पीछे नहीं हटते हैं। तुम इतनी जल्दी हार कैसे मान सकती हो ? अरे, उसने तुम्हारे प्रेमी को पाया और तुम तुषार का प्रेम पा लो !
क्या मतलब ?मैं कुछ समझी नहीं ,यह आप क्या कह रहीं हैं ? अब वह मेरी बहन का पति है।
तो क्या हुआ ? जो रिश्ते बनते हैं ,क्या टूटते नहींं हैं ? विवाह होते हैं तो क्या तलाक नहीं होते हैं ? बस अपने मन में हौसला रखना चाहिए। क्या तुमने शाहरुख़ खान का वो डायलॉग नहीं सुना -जिसको तुम शिद्द्त से चाहो ,तो पूरी क़ायनात उसे तुमसे मिलवाने में जुट जाती है।''कहते हुए मुस्कुराई।
यह आप क्या कह रही हैं ?अपने आंसू पूछते हुए, शिवांगी ने पूछा।
अपना अधिकार ,अपना हिस्सा कई बार छीन कर लेना पड़ता है। बैठे -बिठाये किसी की झोली में नहीं आता ,वह बहुत ही किस्मत वाले होते हैं जिनके हिस्से में प्यार -मोहब्बत बिन मांगे ही, मिल जाते हैं ।
उसकी बातें शिवांगी के दिल पर अब असर कर रही थीं , उसे लग रहा था ,जो भी इन्होंने कहा है वह बहुत सही कह रही है,उसकी बातें शिवांगी के जलते ह्रदय पर मरहम का कार्य कर रहीं थीं। अपने प्यार को पाने की शिवांगी के मन में , एक उम्मीद जगा रही थी। अपने आंसू पौंछकर वह उससे कहती है, आपने मुझे बहुत अच्छी बातें बतलाई , अपने अधिकार के लिए, हमें कभी भी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। आपके विचारों से मैं बहुतप्रेरित हुई हूं, वैसे आप कौन हैं ?
मेरा नाम 'चांदनी' है , मैं ऐसे ही ,हताश ,निराश लोगों के मन में जीने की उम्मीदें जगाती हूँ। ज़िंदगी से बेज़ार लोगों के हौसले बढ़ाती हूं उन्हें आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती हूं ,मेरा यही कार्य है।
मुझे आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा ,अब मैं ,अपने घर वापस जाउंगी और प्रयास करूंगी ,अपने प्यार को पाने के लिए ,तब तक शिवांगी ने ,कल्पना की ससुराल में चांदनी को नहीं देखा था किन्तु आज उसे यहाँ देखकर चौंक गयी। जैसे ही ,वो कुछ कहना चाहती थी ,चांदनी ने उसे इशारे से कुछ भी कहने से मना कर दिया।
ये कौन है ?अनजान बनते हुए शिवांगी अपनी माँ और बहन से बोली।
क्या तू इसे नहीं जानती ?
नहीं ,
अरे ! यही तो तुषार की माँ है ,यानि कल्पना की सास है !
यह सुनकर ,शिवांगी मन ही मन प्रसन्न हुई ,यानि की तुषार की माँ को तो मैं पहले से ही पसंद हूँ। जब वो मेरे साथ हैं तो फिर मुझे क्या ग़म है ?सोचते हुए मुस्कुराने लगी। उसने आगे कुछ सुना ही नहीं उन्होंने क्या कहा ?और वो ये भी जानती हैं कि मैं तुषार से प्रेम करती हूँ।
तू क्यों मुस्कुरा रही है ?कल्पना ने शिवांगी की तरफ देखते हुए पूछा।
कुछ नहीं ,मैं तो सोच रही थी ,आप कितनी भाग्यशाली हो जो आपको इतनी अच्छी सास मिली।
शिवांगी की यह बात सुनकर दोनों माँ -बेटी उसका चेहरा देखने लगीं ,वे सोच रहीं थीं -ये क्या कह रही है ?यह आज ही तो इससे मिली है ,इसने इसकी अच्छाई कब देख ली ?
शिवांगी को कल्पना के साथ उसके घर में रहते हुए, लगभग एक सप्ताह हो गया था उसकी नजदीकियाँ यह तुषार से कुछ ज्यादा ही बढ़ रही थीं। पहले तो कल्पना यह सोचती रही की है साली -जीजा का हंसी मजाक है किंतु अब उसे लग रहा था जैसे चांदनी भी उसका सहयोग कर रही है। शिवांगी तो बच्ची नहीं रही है ,बड़ी हो गई है। तुषार भी कोई बच्चा नहीं है, मेरा पति है , तुम दोनों ही समझदार हो। हर रिश्ते की एक सीमा होती है। तुम दोनों का हंसी मजाक ,मैं समझ सकती हूं किंतु अब तुम्हें अपने कार्य के लिए गंभीर होना चाहिए ,इतनी पढ़ाई की है कोई अच्छी सी नौकरी ढूंढ लो और मम्मी की सहायता करो !
दीदी !यह आप क्या कह रही हैं, मम्मी को भला हमारी सहायता की क्या आवश्यकता है ? वह तो कह देती हैं-मैं सक्षम हूं , मैं अपनी देखभाल स्वयं कर सकती हूं लापरवाही से शिवांगी बोली।
हां ,मैं समझती हूं , मम्मी हम पर बोझ नहीं बनना चाहती हैं, किंतु तुम उनकी उम्र तो देखो ! और अथर्व भी तो उनके साथ है उसके भी कर काम करने पड़ते हैं मेरे विचार से तो अब तुम्हें, घर पर जाना चाहिए, कल्पना ने शिवांगी से कहा।
क्या शिवांगी अपने घर जाएगी, वह अब अपने परिवार के लिए चिंतित क्यों नहीं है ? क्या उससे तुषार की नजदीकियां बढ़ती जा रही हैं ? यह रिश्ता आगे क्या गुल खिलाएगा ? जानने के लिए पढ़ते रहिए - साज़िशें