Sazishen [part 106]

हेलो ,तुषार ! तुम्हें जीजा जी कहूं या दोस्त !

अरे ! तुम यहां, क्या तुम्हारी मम्मी गईं  ?

हां ,मम्मी गईं , मुझे यहां कुछ दिन के लिए छोड़ गई हैं, तुषार के करीब आते हुए, शिवांगी बोली। 

यह तो तुमने अच्छा ही किया,किन्तु मम्मी भी,यहीं रह जातीं तो अच्छा होता  

ये सब छोडो ! तुमने  मेरी बात का जवाब नहीं दिया, तुम्हें दोस्त कहूं या जीजा !


दोस्ती का रिश्ता था ,ही कहां ? मैं तुम्हारा सीनियर था। भारतीय होने के नाते, तुम्हारी सहायता करना मैं अपना उत्तरदायित्व समझता था किंतु कभी तुम्हें, दोस्त की तरह नहीं देखा,वरन........ 

वह कुछ कहता उससे पहले ही शिवांगी बोल उठी -अब तो तुम्हारी साली हूँ ,अब तुम मेरी बहन के पति हो , तो जीजा कहना ही ठीक रहेगा। अब तुम यह क्या कह रहे हो ? हमारे बीच कुछ भी नहीं था। वहां हम लोग साथ-साथ घूमते थे साथ-साथ खाते -पीते थे ,आपस में बातचीत भी करते थे। तो क्या, तुम्हारे दिल में मेरे लिए कुछ नहीं था ?

नहीं , मैंने कभी तुम्हें उस नजर से देखा ही नहीं, एक तरीके से देखा जाए तो अपने से छोटे सहयोगी की सहायता करना, बस इससे ज्यादा कुछ नहीं,क्या ,तुम्हें मेरे व्यवहार से कभी ऐसा कुछ लगा? कि हमारे बीच कुछ हो सकता है। 

 क्या हमारे बीच ,दोस्ती भी नहीं थी।

 तुम्हारी और मेरी सोच में बहुत अंतर है, तुमने यह कैसे सोच लिया ? कि मैं तुम्हें अपना दोस्त समझता हूं।

ठीक है ,जो भी तुमने समझा हो,अपनी आँखों की नमी को छुपाते हुए शिवांगी बोली - किन्तु अब तो मैं तुम्हारी साली हूं, इस रिश्ते को तो मानते हो या नहीं, कहते हुए हंसने लगी,और बोली -''साली तो आधी घरवाली होती है।'' 

अच्छा मजाक था, न बाबा न, पूरी घरवाली चाहिए भी नहीं ,पूरी घरवाली ने ही मुझे तंग किया हुआ है , आधी भी आ गई तो, मेरा क्या होगा ? जिंदा भी बचूंगा या नहीं। 

किंतु मैं तो इस रिश्ते का पूरा लाभ उठाऊंगी, आपको छेड़ूगी भी और शरारती भी करूंगी और आपसे अपनी इच्छाएं भी मनवाऊंगी। 

अच्छा साली जी ! यानि की दोनों बहनों ने,जीते जी मेरी वाट लगाने की सोची है ,तुषार मुस्कुराते हुए बोला -अपनी बहन से भी पूछ लेना, उसे  तो कोई आपत्ति नहीं होगी। 

उन्हें क्या आपत्ती होगी ? आखिर मेरी बहन हैं , मेरी खुशियों का ख्याल रखती हैं। अच्छा ,अभी मैं चलती हूं, कोई आवश्यक कार्य हो तो पूछ लीजिएगा, मैं कभी भी हाजिर हो जाऊंगी, कहते हुए मुस्कुराई और कमरे से बाहर चली गई। पता नहीं, कैसी होती जा रही है? इसके व्यवहार में काफी परिवर्तन नजर आ रहा है, हो सकता है, उम्र का तकाजा हो।तुषार सोच रहा था। 

 आजकल कहां घूम रही है ? शिवांगी के पीछे से आवाज आई। 

अरे आंटी जी आप ! चांदनी को देखकर, शिवांगी चौंकी उसे डर लगा कि कहीं इन्होंने मुझे तुषार के कमरे से बाहर निकलते तो नहीं देख लिया है किंतु वह मुस्कुराई और बोली -सही जा रही हो, तुम उसके दिल में अपने लिए जगह बना लो ! बाकी कार्य धीरे-धीरे अपने आप हो जाएगा। यदि तुम उसके दिल में अपनी  जगह बना लोगी तो घर में स्वतः ही जगह मिल जाएगी ,जैसे कल्पना ने ली है। उसने पहले भोली बनकर तुषार के दिल में अपनी जगह बनाई और उसके पश्चात ,अब देखो !घर में भी आ गई, अब तुषार उससे बाहर जाने के लिए भी कहता है, किंतु जाती नहीं है मना कर देती है। 

मन ही मन शिवांगी सोच रही थी ,आखिर मां और दीदी ने मुझे इनसे बचकर रहने के लिए क्यों कहा ? यह तो अच्छी बातें करती हैं, मेरा कितना ख्याल रखती है ? उस दिन जब मैंने , तुषार और दीदी को एक साथ देखा था तो मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ था और सोच रही थी -यह कैसे हो सकता है ? इसके लिए ही तो मैं मुंबई आई हूं और यह यहां विवाह कर रहा है और वह भी मेरी बहन के साथ ! इसने मुझे कितना बड़ा धोखा दिया ? इस बात को वह चाहकर भी नहीं, भुला पा रही थी। आखिर इस जीवन में रखा ही क्या है ? 

बचपन से ही पढ़ाई में परिश्रम किया और आगे बढ़ना चाहा एक दोस्त भी मिला किन्तु जब परिणाम की बारी आई तो फल दीदी ले गई। उसके मन में न जाने कितने विचार आ जा रहे थे ?सब उथल-पुथल हो रहा था और वह आगे बढ़ती जा रही थी ?उसे पता नहीं था कि उसे कहां जाना है ?और क्या करना है ? वह जाकर एक बगीचे में बैठ गई। मन इतना व्यथित हो रहा था, कि वह घर वापस जाना ही नहीं चाहती थी। तब सोचा -मैंने, इस जिंदगी से पाया ही क्या है ? क्यों न, इस जिंदगी को ही खत्म कर लूं और वह उस बगीचे, के ऊंचाई स्थल पर चलती चली गई। वह बगीचा एक पहाड़ी पर बना हुआ था, वहां से यही वह गिरती, तो किसी को पता भी नहीं चलता। पीछे की तरफ काफी झाड़ियां थीं। उस तरफ, आसपास कोई नहीं था जो उसे यह करते हुए देख लेता इसलिए वह बगीचे के पीछे की तरफ चली गई जहां से, कई फुट नीचे खाई है। पता नहीं, यहां से कूद कर वह जिंदा बच भी पाएगी या नहीं ,अब बचना ही किसके लिए है ? यह सोचकर वह, जैसे ही कूदने वह वाली थी, तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया। 

मुझे छोड़ दो ! मुझे छोड़ दो! तड़पते हुए शिवांगी बोली। 

तुम ,क्यों कूद रही हो ? क्या कारण है ?जो तुम्हें ,यह कदम उठाना पड़ रहा है। पहले तुम मुझे अपनी समस्या बताओ ! हो सकता है, मैं उसका निवारण कर सकूं। 

आप कौन होती हैं ? जो मेरी समस्या को ,मेरी परेशानी को समझेंगी। मेरी परेशानी का हल किसी के भी पास नहीं है इसलिए मुझे यहां से कूदना है। 

यह जीवन बड़ी मुश्किल से मिलता है, अब मिला है, तो इसका उपयोग करो !इसको नष्ट मत करो ! ऐसा नहीं'' कि समस्या है तो उसका निदान नहीं है ,कोई समस्या है तो उसका निदान भी है।'' 

मेरी समस्या का कभी कोई निदान नहीं हो सकता, रोते हुए शिवांगी बोली।

 मेरे लिए तुम अजनबी हो और तुम्हारे लिए मैं अजनबी हूं, इसलिए तुम मुझे अपनी परेशानी,अपना  दर्द बता सकती हो। हो सकता है, मैं कोई उपाय सूझा सकूं। 

मेरी समस्या भी बहुत बड़ी है और उसका निदान भी कुछ नहीं है जिस लड़के से मैं प्रेम करती थी। परसों उसने मेरी बहन से शादी कर ली, मैं नहीं जानती थी, कि वह मेरी बहन से प्रेम करता है। जब से मैंने  उन दोनों को एक साथ देखा है ,मुझसे वह सब देखा नहीं जा रहा। मैं रात -दिन उसके सपने देखती थी उसके साथ जीवन व्यतीत करना चाहती थी और उसी के लिए मैं यहां आई थी किंतु जब मैंने  उसको अपने जीजा के रूप में देखा , तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ। अब मैं, अपनी बहन से भी नहीं कह सकती, कि इससे तो मैं प्रेम करती हूं। 

क्या वह भी, तुम्हें प्रेम करता है ? 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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