Sazishen [part 105]

नीलिमा की एक बेटी कल्पना का विवाह हो चुका है , और दूसरी शिवांगी, जो आजकल ना जाने कौन सी दुनिया में खोई रहती है जब भी नीलिमा उससे पूछती है कि आखिर उसकी जिंदगी में क्या चल रहा है ? तब वह जवाब देती है, कुछ भी तो नहीं, मेरे ऊपर घर की जिम्मेदारियां आ गई हैं ,इसलिए मैं अपनी परेशानियों में उलझी हूं ,नौकरी भी ढूंढ रही हूं। 

किंतु बेटा !अभी हमने तुम्हारे ऊपर इतना बोझ भार भी नहीं डाला है, यदि तुम्हें यहां नौकरी नहीं मिलती है, तो तुम वापस जाकर ,वहीं पर नौकरी भी कर सकती हो। 



मन ही मन शिवांगी सोचती है- अब वहां जाने से क्या लाभ होगा? वहां अब मेरा कौन होगा? उसकी कुछ यादें थी , जिन्होंने मुझे यहां आने के लिए प्रेरित किया किंतु अब वे भी समाप्त हो गईं , उम्मीद ही नहीं रही ,ऐसे में  क्या मैं ,अपने बहन का घर तोड़ सकती हूं ? अब मुझे जिंदगी में आगे बढ़ना होगा। ऐसी ही अनेक बातें ,अनेक विचार उसके मन में आते रहते।  कई बार अकेले में रो भी देती, फिर स्वतः ही ,अपने मन को समझा भी लेती। नीलिमा कुछ पूछती, तो गोल-मोल जवाब ही देती। नीलिमा को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था, अब तो कुछ दिनों से उसका व्यवहार भी बदलने लगा है। न जाने उसे क्या होता जा रहा है ?

 एक दिन शिवांगी अचानक ही बोल उठी-मम्मा ! क्यों न आज हम दीदी से मिलने चलते हैं।  

'नेकी और पूछ पूछ' मेरी भी इच्छा हो रही थी, बहुत दिनों से उससे मिले नहीं, चलो ! आज चलते हैं, दोनों मां -बेटी तैयार होकर चली जाती हैं। 

अपनी बहन और अपनी मां को देखकर ,कल्पना बहुत खुश होती है और उनके साथ समय बिताने के लिए आज दफ्तर भी नहीं जाती है, वह तुषार से कह देती है -कि आज आप ही चले जाइये , मैं आज मम्मा और अपनी बहन के साथ, समय बिताऊंगी। तुषार भी, बिना कुछ कहे ,चुपचाप चला जाता है। 

शिवांगी, जब से कल्पना का विवाह हुआ है, तब से अब दूसरी बार उसके घर में आती है , उस समय उसका  चांदनी से सामना नहीं हुआ था ,वह चांदनी को जानती ही नहीं थी किंतु आज न चाहते हुए भी, चांदनी को उनके सामने आना पड़ा क्योंकि कोई व्यक्ति,एक ही घर में रहकर  एक या दो घंटा ही तो छुप सकता है या  अपने कमरे में बैठ सकता है। प्रयास को यही था ,कि वह उन दोनों के सामने न जाए किंतु उसे जाना पड़ा। चांदनी को वहां देखकर, अचानक से शिवांगी बोल उठी -अरे आप ,यहां !!!!

उसके इस तरह चौकने पर, कल्पना और नीलिमा ने, शिवांगी की तरफ देखा और उससे पूछा-क्या तुम इसे जानती हो ?

तभी इशारे से चांदनी ने , शिवांगी को कुछ भी बताने से इनकार कर दिया , तक शिवांगी बोली -मुझे ऐसा लगा, जैसे मैंने इन्हें कहीं देखा है। नीलिमा और कल्पना उसकी बात सुनकर मुस्कुराई और बोलीं  -अवश्य ही देखा होगा ,किंतु उस समय तुम बहुत छोटी थी इसलिए पहचान नहीं पाई। इससे पहले कि दोनों कुछ बातें और करतीं या कहतीं  शिवांगी वहां से उठकर बोली -मैं अभी आती हूं।  चांदनी को ढूंढते हुए ,शिवांगी  दूसरी मंजिल पर पहुंच गई और बोली -मैम ! आप यहां , मैं नहीं जानती थी, कि आप मेरी बहन की सास हैं। उस दिन जो कुछ भी हुआ ,उसे सबको भुला दीजिए। 

वह सब तो मैं कब का भूला चुकी हूं, किंतु पहला प्यार कभी भी,भुलाया नहीं जाता, मैं जानती हूं कि तुम तुषार से प्रेम करती हो, वह तुम्हारा हो सकता है। जो तुम्हारे लिए बनी है, जो चीज तुम्हारी है उस पर तुम्हारा अधिकार होना चाहिए। 

आप ये सब अब रहने दीजिए! अब मैं सब भूल चुकी हूं, और भूलकर आगे बढ़ चुकी हूं। 

यह सब कहना आसान है, किंतु इस बात को निभा पाना और समझ पाना बहुत मुश्किल है, कि जिसे हम प्यार करते हैं वह किसी और के पहलू में है , बड़ा क्रोध आता है। इसे देखो! कल्पना की तरफ इशारा करते हुए, शुरू से ही माँ के साथ रही , तुम्हें पढ़ने के बहाने दूर भेज दिया। तुम्हारे प्यार पर अधिकार जता लिया, यह तुम्हारा और क्या-क्या छिनेगी ? बहन है, या दुश्मन ! 

किंतु मुझे ऐसा कुछ भी नहीं लगता। 

तुम भी ,कितनी भोली हो ? कभी-कभी कुछ लोग अपने होकर भी अपना सब कुछ छीनकर ले जाते हैं और हमें पता ही नहीं चलता। इस बात का एहसास तब होता है ,जब तक बहुत देर हो चुकी होती है। अब तुम यहां से जाओ ! वह दोनों बहुत चालाक हैं, उन्हें तनिक भी भनक लग गई ,कि तुम मुझसे मिली हो और मुझे जानती हो , न जाने तुम्हारा क्या अहित कर दें ?इसीलिए तो मैंने तुमसे ,इन्हें कुछ भी बताने के लिए इशारे से मना किया था।  तुषार मेरा बेटा है, मैं उससे बड़ा प्रेम करती हूं और मैं चाहती थी , कि मेरे घर में तुम जैसी बहू आती किंतु यह दोनों मां -बेटी ने ,न जाने कैसा चक्रव्यूह रचाया, तुषार को अपने जाल में फंसा लिया , यहां तक कि  मेरे पति को भी नहीं बक्शा , वे भी आजकल तुम्हारी मां के कहने में रहते हैं। तभी तो  देखो, मेरे घर में ,मेरा ही बेटा विवाह करके आ गया और मुझे पता ही नहीं चला। 

शिवांगी मन ही मन सोच रही थी, मेरी मम्मा और दीदी तो ऐसी नहीं थी, फिर भी इस तरह कैसे बदल गई ? उन्हें तो मैंने पहले भी बताया था कि एक लड़का है जिससे मैं प्रेम करती हूं। क्या, दीदी को प्रेम करने के लिए तुषार ही मिला था। हो सकता है ,इनका ही कोई षड्यंत्र हो। न जाने यह क्या चाहतीं  हैं ? सोचते हुए ,वह आगे बढ़ रही थी। 

तुम कहां चली गई थीं  ? वॉशरूम गई थी और थोड़ा सा टचअप करने गई थी कहते हुए ,न चाहते हुए भी ज़बरन ही चेहरे पर मुस्कान ले आती है।  अच्छा एक बात बताओ ,दीदी !क्या मैं कुछ दिनों के लिए यहीं  रह जाऊं ? 

हां, तुम यहां रह तो सकती हो, मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी किन्तु मम्मा अकेली रह जाएँगीं। 

हाँ ,वो तो है। 

कोई बात नहीं ,मैं सब संभाल लूंगी ,तुम्हारी अपनी बहन के पास रहने की इच्छा है तो कुछ दिनों के लिए यहीं रह जाओ !किन्तु इसकी सास से बचकर रहना। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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